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नक्सल प्रभावित बस्तर में चुनाव कराना हमेशा रहा है चुनौती

सुदूर इलाकों में हेलीकॉप्टर से मतदान दल भेजे जाते हैं। जंगल में कई किलोमीटर पैदल चलकर मतदान कर्मी उन गांवों तक पहुंचते हैं जहां मतदान केंद्र बनाए जाते हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 03:44 PM (IST)
नक्सल प्रभावित बस्तर में चुनाव कराना हमेशा रहा है चुनौती
नक्सल प्रभावित बस्तर में चुनाव कराना हमेशा रहा है चुनौती

रायपुर, जेएनएन। लोकसभा चुनाव के आते ही नक्सली एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। शनिवार को छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा थी। इससे पहले लगातार दो दिन तक वारदात कर नक्सलियों ने अपनी मौजूदगी दिखाने की कोशिश की। चुनाव के दौरान बस्तर में नक्सल हिंसा का पुराना इतिहास रहा है।

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सुदूर इलाकों में हेलीकॉप्टर से मतदान दल भेजे जाते हैं। जंगल में कई किलोमीटर पैदल चलकर मतदान कर्मी उन गांवों तक पहुंचते हैं जहां मतदान केंद्र बनाए जाते हैं। इस दौरान ईवीएम लूटने और मतदान कर्मियों को मारने पीटने की घटनाएं आम हैं। चुनावों को नक्सली चुनौती के रूप में लेते हैं।

राज्य में नवंबर-दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी नक्सलियों ने गड़बड़ी करने की बहुत कोशिश की थी। दंतेवाड़ा जिले के नीलावाया गांव में फोर्स को एंबुश में फंसाने की कोशिश की थी जिसमें दूरदर्शन के एक कैमरामैन की मौत हो गई थी। नीलावाया गांव के मतदान केंद्र को उसके बाद 9 किमी दूर शिफ्ट किया गया। विधानसभा चुनाव में इसके अलावा नक्सली कोई वारदात नहीं कर पाए।

नक्सली चुनाव के दौरान धमकी देते रहे कि अगर किसी की उंगली पर अमिट स्याही दिखी तो उंगली काट देंगे फिर भी आदिवासी नदी नाले पार कर वोट देने पहुंचे। विधानसभा में कमोबेश शांत रहने वाले नक्सली लोकसभा में खासतौर पर ताकत की नुमाइश करना चाहते हैं।

मोदी के दौरे के पहले उन्होंने पखांजुर के माहला इलाके में फोर्स को एंबुश में फंसाया और बीएसएफ के चार जवानों की हत्या कर दी। इसके अगले ही दिन धमतरी जिले में सीआरपीएफ के गश्ती दल पर हमला किया जिसमें एक जवान की मौत हो गई। हालांकि फिलहाल नक्सल घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा बदनाम सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिलों में फिलहाल कोई वारदात सामने नहीं आई है।

नक्सल हिंसा का पुराना इतिहास

मई 2013 में विधानसभा चुनाव से पहले नक्सलियों ने झीरम घाट में कांग्रेस के काफिले पर हमला किया जिसमें कई बड़े नेताओं की मौत हो गई। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला, महेंद्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और अन्य नेताओं की हत्या के बाद बस्तर में कांग्रेस का बढ़त मिली थी पर राज्य में सरकार नहीं बना पाई।

2014 के लोकसभा चुनाव के पहले नक्सलियों ने दरभा इलाके में ही सीआरपीएफ के दल पर हमला किया जिसमें 15 जवानों की मौत हो गई। मतदान कराकर लौट रहे दल की बीजापुर जिले में बस उड़ा दी जिसमें सात मतदान कर्मी मारे गए। 2008 में बीजापुर के पीडिया गांव में मतदान दल को वापस लेने गए हेलीकॉप्टर पर गोली चलाई जिसमें फ्लाइट इंजीनियर की मौत हो गई।

चार महीने पहले विधानसभा चुनाव के दौरान भोपालपटनम में भाजपा नेता जगदीश कोंड्रा की हत्या कर दी। 2008 के चुनाव में दंतेवाड़ा में दो भाजपा नेताओं की हत्या की। चुनाव प्रचार के दौरान हत्या की इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं।

इवीएम मशीन छीनने, मतदान दलों पर गोलीबारी जैसी घटनाएं तो हर चुनाव में होती हैं। बस्तर में न हेलीकॉप्टर सुरक्षित हैं न पदयात्रा फिर भी सरकारी कर्मचारी सिर पर कफन बांधकर लोकतंत्र की मशाल जलाने जंगल में जाते हैं।

नेता सतर्क हैं

अंदरूनी इलाकों में चुनाव का कोई माहौल नहीं है। नेता अंदर जा ही नहीं रहे हैं। बस्तर में चुनाव का पूरा माहौल सड़कों और पुलिस कैंपों के आसपास ही दिख रहा है। नक्सलियों ने चुनाव प्रचार के लिए आने वाले नेताओं को जन अदालत में लाने की बात कही है। ऐसे में प्रचार करने कौन जाएगा। नेता भले नहीं जा रहे हैं, सरकारी कर्मचारियों ने स्वीप कार्यक्रम के तहत मतदाता जागरूकता अभियान सुदूर नक्सल गांवों तक चलाया।


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