Election 2019: लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के लिए मुसीबत बनी ट्राइबल पार्टी
राजनीतक जानकारों का मानना है कि बीपीटी भले ही जीतने की स्थिति में न हो लेकिन वागड़ के सियासी समीकरणों को जरूर बदलने में लगी है।
डूंगरपुर,बांसवाड़ा, नरेन्द्र शर्मा। कभी महाराणा प्रताप के साथ मुगलों के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाला मेवाड़ (राजस्थान का उदयपुर संभाग)अंचल का आदिवासी तबका आज राजपूतों के सामने बड़ी चुनौती पेश कर रहा है। मेवाड़ के इतिहास में महाराणा प्रताप के बाद अगर किसी का नाम सम्मान से लिया जाता है तो वह है उनके साथ युद्ध में रहे भील राजा राणा पूंजा का।
पिछली कई सदियों से साथ-साथ रहते आए राजपूत और भील आदिवासियों के बीच जो सौहार्द्र और भरोसा रहा है, वह इन दिनों दरकता दिख रहा है। खासकर मौजूदा चुनाव में इस इलाके के आदिवासियों ने न सिर्फ अपनी अलग पार्टी बनाई है, बल्कि वे इलाके का सियासी समीकरण बदलने की कोशिश में है। डूंगरपुर पूर्व राजपरिवार के सदस्य और राज्यसभा सांसद हर्षवर्धन सिंह का कहना है कि यह सच है कि पिछले दिनों यहां आदिवासियों की राजपूतों से टकराव की छिटपुट घटनाएं हुई है। वे इसे बदलते माहौल के संकेत के तौर पर देखते है जो मेवाड़ के सामाजिक माहौल के लिए अच्छे संकेत नहीं है। कुछ युवकों में जो भटकाव आ रहा है, वह सैकड़ों साल से चले आ रहे हमारे आपसी रिश्ते के लिए ठीक नहीं होगा।'
ऐसा है सियासी समीकरण
मेवाड़ की कुल 28 विधानसभा सीटों में से 16 और लोकसभा की 4 में से 2 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है। अभी तक यहां कांग्रेस और भाजपा ही चुनाव लड़ते रही है,लेकिन पिछले दो साल से आदिवासियों को महसूस हुआ कि राजनीतिक पार्टियां उनका फायदा उठाकर स्वार्थ सिद्ध करता रहा है। मेवाड़ अंचल के डूंगरपुर,बांसवाड़ा,प्रतापगढ़,उदयपुर,चित्तौड़गढ़ और राजसमंद जिलों में 70 से 75 फीसदी तक आदिवासी आबादी रहती है।
करीब एक दशक पहले तक आदिवासी पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के साथ थे, लेकिन पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की मेहनत और पीएम नरेंद्र मोदी के नाम के चलते पिछले दस सालों में भाजपा पर आदिवासियों ने भरोसा किया। धीरे-धीरे आदिवासियों को महसूस होने लगा कि दोनों ही पार्टियां उनका फायदा उठा रही हैं। नतीजा यह हुआ कि आदिवासियों ने यहां अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली।साल 2016 में आदिवासी युवाओं ने भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा बनाया और देखते ही देखते इस मोर्चे ने कई कॉलेजों में छात्र संघ के चुनाव जीत लिए। कुछ समय बाद इसी मोर्चे ने राजनीतिक पार्टी बनाने की कवायद शुरू की, जिसके बाद इस इलाके में भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी का जन्म हुआ।
आज बीटीपी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में आ गई है । विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने 16 सीटों पर उम्मीदवार उतारे इनमें से 2 पर जीत दर्ज की । बीटीपी के अध्यक्ष वेलाराम धोगरा का कहना है कि आजादी के बाद से कभी भी कांग्रेस और भाजपा ने हमारी नहीं सुनी। आदिवासियों की मांग संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूची को पूरी तरह से लागू करने की है। उन्होंने कहा कि अब हमारा मकसद मेवाड़ से दो सांसद बनाने का है ।
गुजरात के आदिवासियों से मिल रही मदद
मेवाड़ इलाके के आदिवासियों को गुजरात के आदिवासियों से काफी मदद मिल रही है और इन चुनावों में गुजरात के बड़े आदिवासी चेहरे छोटूभाई वसावा को काफी अहम भूमिका में देखा जा रहा है। राजनीतक जानकारों का मानना है कि बीपीटी भले ही जीतने की स्थिति में न हो लेकिन वागड़ के सियासी समीकरणों को जरूर बदलने में लगी है।