लोकसभा चुनाव: BJP व PM मोदी विरोध की सियासत, पर लालू को मंजूर नहीं कन्हैया
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की राजनीति भाजपा के खिलाफ है। लेकिन भाजपा व पीएम मोदी के खिलाफ बड़े चेहरे कन्हैया को लालू प्रसाद यादव का समर्थन नहीं मिल रहा है। जानिए इसके कारण।
पटना [अमित आलोक]। लोकसभा चुनाव को लेकर दलीय तस्वीयरें अब करीब-करीब साफ हो चुकी हैं। यह तय हो गया है कि वाम दल महागठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे। भारतीय कम्युानिष्ट पार्टी (भाकपा) की कोशिशों के बावजूद जब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बेगूसराय से कन्हैया कुमार को महागठबंधन का प्रत्याशी बनाने को राजी नहीं हुआ तो वाम दलों ने भाकपा के टिकट पर कन्हैया को अपना साझा उम्मीदवार घोषित कर दिया। सवाल उठता है कि आखिर क्या है कन्हैया में, जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ इस बड़े चहरे को गले लगाने से राजद कतरा गया?
बेगूसराय में ये ठोक रहे ताल
बिहार में सत्ताधारी राजग से बेगूसराय में ताल ठोक रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी गिरिराज सिंह को भाकपा से वाम दलों के साझा उम्मीदवार कन्हैया कुमार चुनौती देंगे। बेगूसराय में महागठबंधन से राजद के तनवीर हसन ताल ठोक रहे हैं। जीत-हार के संबंध में फिलहाल भले ही कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन तय है कि जीत की राह आसान नहीं होगी।
जातियों में उलझा वोटों का गणित
गिरिराज सिंह और कन्हैया कुमार भूमिहार जाति से हैं। बेगूसराय में इस जाति के करीब 4.75 लाख वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। यहां भूमिहार के अलावा अन्य कथित अगड़ी जातियों के वोट भी बड़ी तादाद में हैं। करीब दो लाख कुशवाहा व कुर्मी वोटर भी हैं। यह समीकरण गिरिराज के पक्ष में जा सकता है। लेकिन कन्हैया व गिरिराज दोनों के एक ही भूमिहार जाति से होने के कारण भूमिहार वोटों का बिखराव हो सकता है। कन्हैया का युवा व स्थानीय होने का लाभ भी मिल सकता है। उन्हें भाजपा विरोधी वोट भी मिलेगे, यह तय है।
उधर, राजद को अपने परंपरागत 2.5 लाख मुस्लिम व 1.5 लाख यादव वोट बैंक पर भरोसा है। अगर कुछ पिछड़ी जातियों के वोट भी राजद की ओर शिफ्ट हो गए तो कन्हैया व गिरिराज के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। कन्हैया व राजद के बीच भाजपा विरोधी वोटों का बिखराव भी तय है। अगर ऐसा हुआ तो गिरिराज की राह आसान हो जाएगी।
गत चुनाव परिणाम, एक नजर
एक तथ्य यह भी है कि पिछले कुछ चुनावों में बड़ी संख्याा में भूमिहारों ने राजग का समर्थन किया था। 2004 के लोकसभा चुनाव में राजग की ओर से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राजीव रंजन सिंह, 2009 में डॉ. मोनजीर हसन और 2014 में भाजपा के भोला सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इनमें मोनाजिर मुसलमान तो शेष दो राजीव रंजन और भोला सिंह भूमिहार जाति से थे।
गत लोकसभा चुनाव में बेगूसराय की सीट पर भाजपा के भोला सिंह ने करीब 58 हज़ार वोटों के अंतर से राजद के तनवीर हसन को हराया था। उस चुनाव में भाकपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह को करीब 1.92 लाख वोट ही मिले थे।
राजद ने रोकी महागठबंधन में एंट्री
महागठबंधन में कन्हैाया को तवज्जोी नहीं देने के पीछे भाकपा को बेगूसराय में मिले कम वोट का तर्क दिया जा रहा है। बिहार में भाकपा-माकपा के कम जनाधार की बात भी कही जा रही है। पुलवामा में आतंकी हमले व बाद के घटनाक्रम में उभरे राष्ट्रवाद के कारण भी देशद्राह के आरोपों से घिरे कन्हैया से महागठबंधन ने दूरी बनाना बेहतर समझा।
लालू ने लिखी विरोध की असली पटकथा
ये कारण अपनी जगह, लेकिन इससे बड़ा कारण कुछ और भी रहा। इसकी पटकथा रांची में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने लिखी। कहा जा रहा है कि लालू नहीं चाहते कि उनके बेटे तेजस्वी यादव के सामने कोई और युवा नेता खड़ा हो।
तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार हमउम्र हैं। दोनों की राजनीति भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध पर टिकी है। दोनों का मकसद एक है। ऐसे में लालू नहीं चाहते कि महागठबंधन की जमीन पर कन्हैया का उभार हो। राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति के लिए कन्हैया को बिहार में जमीन की तलाश है, पर लालू यादव उसे देने को तैयार नहीं हैं।
नई नहीं कन्हैया व तेजस्वी की दूरी
कन्हैया से तेजस्वी की दूरी कोई नई बात भी नहीं। बीते 25 अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान में भाकपा की रैली से पटना में रहकर भी तेजस्वी ने दूरी बना ली थी। औपचारिकता के लिए राजद की ओर से प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे और बेगूसराय के संभावित प्रत्याशी तनवीर हसन को भेज दिया गया था। दूसरी ओर कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रीय छवि के गुलाम नबी आजाद ने शिरकत की थी। पटना के अखिल भारतीय आयुविज्ञान संस्थान (एम्स) में कन्हैया के डॉक्टरों के साथ हुए विवाद के दौरान भी तेजस्वी ने मौन धारण कर लिया था। अब राजद ने कन्हैया के खिलाफ बेगूसराय में ताल ठोक दी है।
‘तेजस्वी को ले असुरक्षा भाव में लालू’
जदयू इस मामले को अपने चश्मे से देखता है। जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि लालू अपने बेटे तेजस्वी यादव को लेकर राजनीतिक असुरक्षा के भाव में रहते हैं, इसलिए वे उनके आसपास युवा नेता खड़ा ही नहीं होने देते। कन्हैया को समर्थन नहीं देने का फैसला उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है। उन्होंंने यह भी कहा कि लालू भूमिहारों से नफरत करते हैं। उनके समारोह में पहले 'भूरा बाल साफ करो' का नारा लगता था। (यहां 'भूरा बाल' का तात्पर्य भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण व लाला जातियों से है।) त्यागी ने यह भी कहा कि लालू यादव ने एक भी भूमिहार को टिकट नहीं दिया है।
वोटों का बिखराव नहीं चाहते कन्हैया
बेगूसराय में महागठबंधन की जमीन नहीं मिलने के कारण वोटों के बिखराव की चिंता कन्हैया को भी है। अपनी जीत का दावा करते हुए उन्होंने उन सभी सीटों पर महागठबंधन के पक्ष में वोट मांगने की घोषणा की, जहां वाम उम्मीदवार नहीं होंगे। कन्हैया कहते हैं कि भाजपा के खिलाफ गोलबंदी बहुत जरूरी है। ऐसे में जहां-जहां वाम दलों के उम्मीेदवार नहीं होंगे, वे महागठबंधन के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या महागठबंधन के उम्मीदवार कन्हैया से चुनाव प्रचार कराएंगे?
कौन हैं कन्हैया, डालते हैं एक नजर
कन्हैया कुमार छात्र जीवन से ही भाकपा से जुड़े रहे हैं। वे भाकपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय छात्र परिषद (एआइएसएफ) के नेता रहे हैं। वे 2015 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुए थे। वे बिहार के बेगूसराय के मूल निवासी हैं। उन्होंने एक किताब (बिहार टू तिहाड़) भी लिखी है।
फरवरी 2016 में जेएनयू में कश्मीरी अलगाववादी व भारतीय संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया, जिसमें कन्हैया भी आरोपित किए गए। दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। बाद में दो मार्च 2016 को उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया। यह मुकादमा कोर्ट में लंबित है।
फिलहाल कन्हैया कुमार भाकपा के नेता हैं। वे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा की नीतियों के खिलाफ चेहरा बनकर उभरे हैं। वे बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट पर वाम दलों के साझा उम्मीदवार हैं।