चुनावी चौपाल: कांग्रेस के घोषणापत्र से सैनिक परिवारों में नाराजगी, सियासत के वादों में ‘देशद्रोह’ कैसे आया!
चुनाव को लेकर कांग्रेस ने घोषणापत्र जारी किया है। देशद्रोह कानून (124 A) को खत्म व अफस्पा की समीक्षा करने का वादा किया गया है। कांग्रेस के इस वादे से सैनिक परिवारों में नाराजगी है।
लोकेश पंडित। उत्तर प्रदेश के शामली का बनत कस्बा बुधवार को अपने दो बेटों की नहीं, बल्कि देशद्रोह कानून (124 ए) के खत्म किए जाने के वादों पर गमगीन था। इस कस्बे ने पुलवामा आतंकी हमले में अपने दो बेटे प्रदीप कुमार और अमित कोरी को खोया था। चुनाव निकट था तो परिवार को रिश्तेदारों के दिलासे और सियासी वादे भी खूब मिले।
कांग्रेस के घोषणापत्र पर माहौल को सवाल की जरूरत नहीं थी, चौखटों और चौराहों पर बाकी मुद्दों पर लोगों की राय अलग थी, लेकिन देशद्रोह कानून व अफस्पा (आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट)-1958 खत्म करने के वादे शहीद के कस्बे को मंजूर नहीं थे।
बनत में आज भी दो बेटों का बचपन उनकी शहादत को सलाम करता है। पुलवामा में आतंकियों की कायराना हरकत पर गांव वाले गम और गुस्से से भर जाते हैं। जैसे को तैसा वाक्य नहीं, एक भाव था जिसने पास ही एक घर की चौखट पर लगी चौपाल का पता बताया। संदर्भ कांग्रेस का घोषणापत्र था और चर्चा प्रदीप की शहादत तक आ पहुंची थी। शहीद प्रदीप कुमार के पिता जगदीश कहते हैं कि कहने और सहने में बड़ा फर्क है। समीक्षा करने से पहले कांग्रेस व राहुल गांधी सोचें। एक तरफ वह देशद्रोह कानून खत्म की बात कहते हैं, दूसरी ओर अपने पिता के हत्यारों के जेल से रिहा होने का विरोध करते हैं।
दो बेटों की शहादत पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, ज्योतिरादित्य सिंधिया व राजबब्बर भी बनत आए थे। कुछ वादों के साथ सांत्वना दे गए थे। तब राहुल-प्रियंका ने कहा था कि उन्होंने ऐसी ही घटना में पिता को खोया है। वह इस दर्द को समझते हैं। हर कदम पर सहयोग और साथ का वादा किया गया था। पिता जगदीश कहते हैं कि चंद दिनों बाद ही वादे-इरादे में बदलाव आ गया है। हुक्के की गुडग़ुड़ाहट के बीच ही जयदेव संवेदनात्मक हो जाते हैं-हद हो गई, अब देशद्रोह कानून खत्म होगा। हमने अपने जिगर के टुकड़ों को खोया है।’ उनकी बात को धर्मवीर सिंह व ओमपाल सिंह आगे बढ़ाते हुए उम्मीद करते हैं...अच्छा होता, अगर पार्टिर्यों में आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई व देश विरोधी बात करने वालों को फांसी देने में होड़ मचती। बैठक में हर कोई कांग्रेस-भाजपा के रुख पर तीखे तर्क रख रहा था।
बुजुर्गों के बीच बैठे सतेंद्र कुमार कहते हैं कि ऐसा क्यों नहीं लगता कि यह हमारा नहीं, देश का नुकसान हुआ है। सुरक्षा सिर्फ हमारा नहीं, देश का विषय है। यशपाल सिंह की बेचैनी उन्हें बोलने पर मजबूर करती है और वो कहते हैं कि देशद्रोह कानून में संशोधन हुआ तो देश टूट जाएगा। सवाल भी उठाते हैं कि चुनावी वादों में देशद्रोह कैसे आ गया? दुष्यंत सिंह कहते हैं कि जब आप अपने दर्द की बातें कहते हो तो हमारे दर्द का अहसास भी होना चाहिए। गोपाल, ओम सिंह, रामकुमार, सोहेल व रविन्द्र उनका समर्थन करते हुए इस विषय को शहादत का अपमान बताते हैं
शहादत पर राजनीति क्यों
कांग्रेस के घोषणापत्र पर शहीद प्रदीप कुमार के पिता बेहद खफा दिखे। उन्होंने कहा, बेटे की शहादत पर भाजपा के केंद्रीय मंत्री वीके सिंह व सत्यपाल सिंह आए। उन्होंने बहुत कुछ कहा और आश्वासन दिया। उम्मीद थी, केंद्र सरकार उनके जख्मों पर मरहम लगाएगी। एयर स्ट्राइक ने राहत दी। राहुल-प्रियंका ने सिर पर हाथ रखकर प्रदीप की पत्नी, बेटों को आश्वासन दिया था वह हर कदम पर उनके साथ हैं। इससे ऐसा लगा, सरकार और विपक्ष हमारे गम व दुख में साथ है। अब शहादत पर राजनीति हो रही है। वह रुंधे गले से कहते हैं, कांग्रेस हो या दूसरी पार्टी जो ऐसा करेगा, उसे भगवान माफ नहीं करेगा।
रियायत नहीं, सेना के हवाले किया जाए कश्मीर
अमित कोरी के भाई प्रमोद कुमार कहते हैं कि चुनाव जल्द समाप्त हो जाएंगे। सरकार किसी की बने, सभी को याद रखना चाहिए कि उन्होंने पुलवामा के कायराना हमले के बाद क्या वादे किए थे। वह कहते हैं कि कश्मीर में रियायत का मतलब उसे देश से अलग करना है। ऐसे में देशद्रोह कानून हो या अफस्पा, इसमें सख्त प्रावधान किए जाएं।