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Lok Sabha Election 2019: अब ‘ब्रह्मास्त्र’ पर टिकी है कांग्रेस की आस

कांग्रेस के पास जिताऊ उम्मीदवारों का भी टोटा इसलिए अन्य दलों से आए नेताओं पर दांव लगाने की तैयारी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 09:24 AM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 03:02 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: अब ‘ब्रह्मास्त्र’ पर टिकी है कांग्रेस की आस
Lok Sabha Election 2019: अब ‘ब्रह्मास्त्र’ पर टिकी है कांग्रेस की आस

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। उत्तर प्रदेश में पिछले तीन दशक से सियासी वनवास झेल रही कांग्रेस को अब प्रियंका गांधी से चमत्कार की आस है। पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्रों में सिमट जाने वाली कांग्रेस से सपा, बसपा व राष्ट्रीय लोकदल जैसे क्षेत्रीय दल भी फासला बनाए रखने में ही अपना भला समझते हैं।

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आलम यह है कि सपा-बसपा भी अपने गठबंधन में कांग्रेस को साथ रखने का राजी नहीं हुए। केवल रायबरेली व अमेठी में गठबंधन उम्मीदवार न उतारने का एलान कर कांग्रेस को हल्के में निपटा दिया। उधर, बसपा प्रमुख मायावती आए दिन कांग्रेस को भाजपा की श्रेणी में खड़ा करते हुए निशाना साधने से नहीं चूक रही हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए असहज स्थिति है। वहीं, राजस्थान विधानसभा चुनाव में गठबंधन कर लड़े रालोद ने भी उप्र में कांग्रेस से चुनावी दोस्ती करना मुनासिब नहीं समझा और मात्र तीन सीटें लेकर सपा-बसपा गठबंधन में शामिल हो गया। उप्र में भाजपा की बढ़त को रोककर केंद्र की सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही कांग्रेस को अब केवल प्रियंका से ही अच्छे दिन आने की उम्मीद है।

मिशन उप्र को कामयाब बनाने के लिए कांग्रेस ने प्रदेश को संगठनात्मक दृष्टि से दो भागों में बांट कर प्रियंका गांधी व ज्योतिरादित्य जैसे दिग्गजों को प्रभारी बना कर बड़ा दांव लगाया है। दोनों के बीच क्रमश: 41 व 39 संसदीय सीटों का बंटवारा कर तीन-तीन राष्ट्रीय सचिवों को सह-प्रभारी बनाया गया है। कार्यभार संभालते ही प्रियंका व सिंधिया ने मात्र तीन दिन में ही प्रदेश की सभी 80 संसदीय सीटों की समीक्षा की और 1500 से ज्यादा कार्यकर्ताओं से संवाद भी किया। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने के साथ ही 2022 में प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने का टारगेट भी दिया गया है। 

 

कमजोर टीम और फ्रंटफुट पर खेलने की तैयारी

राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी को राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त करने और उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों का प्रभारी बनाते हुए राजनीतिक पारी फ्रंटफुट पर खेलने की बात कही थी, लेकिन कमजोर प्रदेश संगठन को उबारने की पहल नहीं की। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा से गठबंधन करने के बाद से प्रदेश संगठन की स्थिति में सुधार का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज नौ फीसद वोट ही जुटा सकी। प्रदेश में लोकसभा की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहद लचर रहा। गोरखपुर व फूलपुर में उसकी जमानत जब्त हुई, जबकि कैराना में पार्टी उम्मीदवार भी न उतार सकी और बिना मांगे ही गठबंधन के उम्मीदवार को समर्थन देना पड़ा। राहुल गांधी भले ही किसान हित की लड़ाई में अगुवा बनने के लिए संघर्षरत हों, लेकिन प्रदेश में गत छह वर्ष से भंग पड़े किसान विभाग का गठन एक माह पूर्व ही हो सका। इसी तरह अल्पसंख्यक विभाग भी निष्क्रिय हो चुका है।

जिताऊ उम्मीदवारों का टोटा

प्रदेश में सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही कांग्रेस के पास जिताऊ उम्मीदवारों का भी टोटा है, इसलिए अन्य दलों से आए नेताओं पर दांव लगाने की तैयारी है। अन्य दलों के अधिकतर बागियों को कांग्रेस की सदस्यता दिलाने की घोषणा दिल्ली में हो रही है।


2014 में उप्र में जीती थी दो सीट

अब तक कांग्रेस 11 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर चुकी है। जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, आरपीएन सिंह, राजाराम पाल, निर्मल खत्री, इमरान मसूद व सलमान खुर्शीद जैसे नाम शामिल है। सूत्रों का कहना है कि दूसरी सूची तैयार करने के लिए छोटे दलों से भी तार जोड़े जा रहे है।


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