Bastar Lok Sabha Seat: BJP का गढ़ है छत्तीसगढ़ की बस्तर सीट, 6 बार जीत चुकी है चुनाव
भारतीय जनता पार्टी का गढ़ कही जाने वाली छत्तीसगढ़ की बस्तर सीट पर आठ उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर सियासी पारा चढ़ा दिया है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। भारतीय जनता पार्टी का गढ़ कही जाने वाली छत्तीसगढ़ की बस्तर सीट पर आठ उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर सियासी पारा चढ़ा दिया है। इनमें भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों समेत आठ प्रत्याशी शामिल हैं। आपको बता दें कि बस्तर में पहले चरण (11 अप्रैल) में मतदान होना है। उससे पहले हर पार्टी चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में जुट गई है। इस सीट से बीजेपी लगातार 6 बार से जीतती आ रही है, इसलिए बीजेपी के लिए यह एक सम्मान की लड़ाई भी है। आज हम आपको यहां का चुनावी इतिहास और गणित बताते हैं-
पहले ही चुनाव में हारी कांग्रेस
1952 से लेकर 1999 तक यह सीट मध्य प्रदेश के अंदर आती थी। 2000 में मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद यह छत्तीसगढ़ में आ गई। देश में पहली बार हुए चुनाव में इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा ने जीत हासिल की थी। कोसा यहां से पहले सांसद चुने गए। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार सुरती किसतिया को भारी वोटों के अंतर से हराया। कोसा ने पहले ही चुनाव में 177588 वोट हासिल किए, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार सुरती महज 36257 वोट ही जुटा पाए। इसके बाद 1957 में हुए चुनाव में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की और निर्दलीय उम्मीदवार को हराया। 1952 के चुनाव में हारने वाले सुरती किसतिया को कांग्रेस ने फिर से अपने टिकट पर यहां से चुनाव मैदान में उतारा। इस बार सुरती ने निर्दलीय उम्मीदवार बोदा दारा को बुरी तरह हराया। सुरती ने अपने खाते में 140961 वोट बटोरे, वहीं बोदा सिर्फ 41684 वोट ही जुटा पाए और बुरी तरह से हार गए।
निर्दलियों ने लगातार चार बार कांग्रेस के हराया
1957 में बड़ी जीत दर्ज कराने वाली कांग्रेस के लिए आने वाले चार लोकसभा चुनाव बहुत बुरे साबित हुए। 1962, 1967, 1971 और 1977 में कांग्रेस लगातार चार बार हारी। 1962 में दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। 87557 वोट पाकर निर्दलीय उम्मीदवार लखमू भवानी ने जीत हासिल की। वहीं दूसरे नंबर पर भी निर्दलीय उम्मीदवार बोदा दादा ने कब्जा जमाया। कांग्रेस इस साल तीसरे नंबर पर पहुंच गई। 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार जे सुंदरलाला ने यहां से जीत का परचम लहराया। उन्होंने अखिल भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार आर झादो को बुरी तरह हराया था।
सुंदरलाल ने 53798 वोट अपने नाम कर जीत दर्ज की थी, वहीं झादो को सिर्फ 36531 वोट ही मिल पाए थे। दोनों के बीच हार का फासला करीब 17 हजार वोट का था। 1967 के चुनाव तक कांग्रेस की लोकप्रियता कितनी घट चुकी थी, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ना सिर्फ हारी, बल्कि लुढ़कर पांचवें नंबर पर पहुंच गई। इसके बाद 1971 के चुनाव में भी एक निर्दलीय उम्मीदवार लम्बोदर बलियार ने जीत हासिल की।
1980 में इस उम्मीदवार ने कांग्रेस को दिलाई जीत
1977 के चुनाव में लम्बोदर कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्होंने इस सीट से फिर चुनाव लड़ा, लेकिन वह कांग्रेस को जीत नहीं दिला पाए। भारतीय लोक दल प्रत्याशी रिगपाल शाह केसरी शाह ने लम्बोदर को भारी वोटों के अंतर से हराया। रिगपाल को इस साल 101007 वोट मिले, वहीं लम्बोदर सिर्फ 50953 वोटों पर ही सिमट गए। लगातार चार चुनावों में हार का मुंह देखना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था, जिससे पार्टी को किसी भी तरह ऊबरना था। इसलिए 1980 में हुए चुनाव में उन्होंने एक नए उम्मीदवार को टिकट दिया। कांग्रेस ने इस बार लक्ष्मण करमा को अपने टिकट पर मैदान में उतारा। लक्ष्मण ने कई सालों बाद कांग्रेस को आखिरकार यहां से जीत दिलाई। लक्ष्मण ने जनता पार्टी उम्मीदवार समारू राम प्रगानिया को हराया।
सालों तक कांग्रेस ने नहीं देखा हार का मुंह
1980 में जीत का परचम लहराने के बाद कांग्रेस ने 1991 के चुनाव तक लगातार तीन बार जीत हासिल की। 1984 से 1991 तक कांग्रेस ने मंकूराम सोदी को ही टिकट देकर यहां से लड़वाया। सोदी पार्टी के लिए एक मजबूत नेता साबित हुए। 1984 में उन्होंने सीपीआई के महेंद्र करमा को हराया। इसी तरह 1989 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के संपत सिंह भंडारी को हराया। 1991 में उन्होंने फिर से बीजेपी के उम्मीदवार राजाराम तोडेम को हराया। लेकिन 1996 में कांग्रेस को फिर से एक निर्दलीय उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के विपक्ष में खड़े हुए निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र करमा ने मंकूराम सोदी को हराया। दोनों के बीच हार का अंतर लगभग 14 हजार वोटों का ही रहा।
1998 में बीजेपी ने खोला अपना खाता
1998 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से जीत का खाता खोला और 2014 तक इस सीट पर किसी और को राज करने नहीं दिया। 1998 से लेकर 2011 तक बीजेपी के टिकट पर बलिराम कश्यप ने यहां से लगातार चार बार जीत हासिल की और कांग्रेस को हराया। लेकिन 2011 में उनके निधन के बाद यहां उपचुनाव करवाए गए, जिसमें उनके बेटे दिनेश कश्यप ने जीत दर्ज की। 2014 के चुनाव में भी दिनेश कश्यप ने अपनी जीत को बरकरार रखा और यहां से सांसद चुने गए।
बस्तर की खास बातें
बस्तर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र छत्तीसगढ़ 11 संसदीय क्षेत्रों में से एक है। इस संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इस वनीय क्षेत्र का जिला मुख्यालय जगदलपुर है। 14वीं सदी में यहां पर काकतीय वंश का राज था। इस क्षेत्र पर अंग्रेज कभी अपना राज स्थापित नहीं कर पाए। इस क्षेत्र में गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियां रहती हैं। इंद्रावती के मुहाने पर बसा यह इलाका वनीय क्षेत्र है। यहां पर टीक तथा साल के पेड़ बड़ी संख्या में हैं। इस इलाके की खूबसूरती यहां के झरने और बढ़ा देते हैं। यहां खनिज पदार्थों में लोहा और अभ्रक सबसे ज्यादा मिलते हैं।