Lok Sabha Election 2019: नक्सलियों की घटी धार, तो बढ़ गए उम्मीदवार
Lok Sabha Election 2019. चतरा पलामू और लोहरदगा जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में इस बार 2014 के मुकाबले अधिक प्रत्याशी चुनाव मैदान में खड़े हैं।
रांची, [संदीप कुमार]। Lok Sabha Election 2019 - लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत। पिछले लोकसभा चुनाव (2014) के मुकाबले चतरा, पलामू और लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में इस बार काफी ज्यादा नामांकन हुए हैं। चतरा में रिकार्ड 26 प्रत्याशी मैदान में भाग्य आजमा रहे हैं। पिछले वर्ष यहां मात्र 20 उम्मीदवार थे। इसी तरह इस बार पलामू में वर्ष 2014 के 13 के मुकाबले 19 तो लोहरदगा में नौ के मुकाबले 14 प्रत्याशी लड़ रहे।
ज्यादा प्रत्याशियों के लडऩे के कारण तो कई हैं लेकिन सबसे बड़ी वजह पुलिस की कार्रवाई के बाद नक्सलियों का घटता कैडर है। जिससे आमलोगों में नक्सलियों का खौफ में कमी आई है। लोकतंत्र के विरोधी नक्सली हमेशा से चुनाव का बहिष्कार करते आए हैं। पूर्व के वर्षों में वोट डालने वालों के हाथ काटे गए। प्रत्याशियों को पीटा गया। इससे मतदान की इच्छा रखने वालों में एक डर रहता था। लेकिन, इस बार हालात दूसरे हैं।
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 2014 में सीएम बनने के बाद नक्सलियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। अच्छी आत्मसमर्पण नीति भी बनाई। वजह रही कि पिछले पांच वर्षों में कई दुर्दांत नक्सली मार गिराए गए। कुछ गिरफ्तार हुए तो कई ने चौतरफा दबाव के बीच सरेंडर कर दिया। नक्सलियों का खौफ घटा तो चुनाव की उम्मीद पाले लोग अपनी हसरत पूरी करने लोकतंत्र के इस सबसे बड़े महासमर में कूद पड़े।
अब डर नहीं कि कोई गाड़ी फूंक देगा : चतरा से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे योगेंद्र यादव कहते हैं कि नक्सलियों के वर्चस्व में कमी आई है। उनका खौफ घटने से लोगों में उत्साह है। अब प्रत्याशियों को यह डर नहीं कि वे प्रचार करने निकले तो नक्सली उन्हें पीटेंगे या उनकी गाड़ी फूंक देंगे। यह हम जैसे उम्मीदवारों के लिए बड़ा बल है।
राजनीतिक विषयों के जानकार कहते हैं : रांची विवि पीजी विभाग के डा. धीरेंद्र त्रिपाठी के अनुसार निश्चित तौर पर नक्सलियों की कमी एक बड़ा फैक्टर है लेकिन प्रत्याशियों में बढ़ोतरी की एक बड़ी वजह मीडिया और चुनाव आयोग की सशक्त भूमिका भी है। मीडिया व आयोग की पहल के कारण लोग लोकतंत्र को महापर्व की तरह ले रहे और इसमें अपनी भूमिका अदा कर रहे। वोट काटने के लिए खड़े किए गए डमी कैंडिडेट और शौकिया चुनाव लडऩे वाले भी प्रत्याशियों की भीड़ बढऩे की बड़ी वजह हैं।
और ऐसे भी उम्मीदवार : शौकिया चुनाव लडऩे वाले भी मैदान में हैं। इनमें से एक हैं लोहरदगा से निर्दलीय प्रत्याशी इकुस धान। वे अब तक एक बार पंचायत चुनाव, तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार लोकसभा के महासमर में कूद पड़े हैं। धान बिंदास भाव में कहते हैं कि वह जीतने और हारने के लिए नहीं बल्कि शौक से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। निश्चिंत इतने कि उनका प्रस्तावक कौन बना यह भी याद नहीं। पत्नी और खुद की पेंशन से घर चल जाता है और ज्यादा की इच्छा नहीं। प्रचार कैसे करेंगे इस पर कहते हैं एक ऑटो और थोड़े पंपलेट। और क्या चाहिए।
जमानत की नहीं परवाह : इस चुनाव में बड़े पैमाने पर निर्दलीय और छोटे दलों के प्रत्याशी मैदान में खड़े हुए हैं लेकिन इतिहास गवाह है कि पूर्व में ज्यादातर ऐसे उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 2014 में चतरा में 20 में 19, लोहरदगा में 9 में 6 और पलामू में 13 में 11 प्रत्याशियों की जमानत रद हो गई थी। लोकसभा चुनाव में सामान्य प्रत्याशियों को 25 हजार रुपये जमानत राशि जमा करनी होती है आयोग में। मतदान का छठा हिस्सा न ला पाने वाले प्रत्याशियों की जमानत रद हो जाती है।
नक्सलियों का लगभग सफाया : राज्य के ज्यादातर जिलों में नक्सलियों का लगभग सफाया हो चुका है। कभी गोलियों से थर्राने वाले पलामू प्रमंडल स्थित बूढ़ा पहाड़ पर एक करोड़ के इनामी अरविंद जी की मौत के बाद सेंट्रल कमेटी सदस्य एक करोड़ के इनामी सुधाकरण ने भी अपनी पत्नी के साथ तेलंगाना में सरेंडर कर दिया था। राज्य में पिछले तीन वर्षों में 1533 नक्सली गिरफ्तार किए हैं, जबकि 96 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इसी वर्ष अब तक राज्य में 15 छोटे-बड़े नक्सली मारे जा चुके हैं।
कहां कितने उम्मीदवार
संसदीय क्षेत्र 2014 : 2019
चतरा : 20 : 26
पलामू : 13 : 19
लोहरदगा : 9 : 14