Lok Sabha Election 2019: छत्तीसगढ़ में भाजपा सांसदों के टिकट कटने से फूटे बगावत के सुर
राज्य बनने के बाद भाजपा हर बार लोक सभा की 10 सीट जीतती रही है। इसबार छत्तीसगढ़ में भाजपा के सामने अपनी प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती है।
रायपुर, राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ में भाजपा के सभी सांसदों के टिकट कट गए हैं। भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति ने छत्तीसगढ़ के अपने सभी 10 सांसदों को टिकट नहीं देने और उनकी जगह पर नए चेहरों को उतारने का फैसला लिया है। इस फैसले के बाद लोकसभा क्षेत्रों में सांसदों के समर्थक एकजुट हो रहे हैं, हाइकमान के इस फैसले से सभी सांसद नाराज हैं।
राजधानी रायपुर के एक होटल में भाजपा के नौ सांसद बैठक कर रहे हैं। इनमें सांसद अभिषेक सिंह को छोड़कर अन्य मौजूद हैं। बताया जा रहा है कि यहां इस फैसले के खिलाफ हाइकमान के सामने अपनी बात रखने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। इस बैठक के बाद सभी दिल्ली के लिए रखना होंगे।
बड़े फैसले के पीछे यह वजह
छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद भाजपा हारी। तब यह माना गया कि विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ एंटीइनकंबेंसी और नाराजगी को माना गया। दरअसल पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने विधानसभा चुनाव के पहले भी सर्वे कराया था। उनके सर्वे में भी यही बात आई थी कि विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटे जाएं। तब पार्टी कड़ा फैसला नहीं ले पाई थी जिसका परिणाम यह हुआ कि उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। पार्टी के वर्तमान में मात्र 15 विधायक हैं। अभी लोकसभा के पहले भी अमित शाह ने सर्वे कराया जिसमें छत्तीसगढ़ में सब चौपट होने की बात ही सामने आई। इसके बाद पार्टी ने तय किया कि अब कोई रियायत नहीं की जाएगी। इसके बाद भाजपा आलाकमान ने टिकट काटने पर सहमति दे दी। अब पार्टी नए चेहरों और नए उत्साह के साथ मैदान में उतरने जा रही है।
मोदी फैक्टर से समाधान की कोशिश
भाजपा के रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं कि सिटिंग एमपी का टिकट काटने से नेताओं और कुछ कार्यकर्ताओं में विरोध के स्वर भी फूट सकते हैं। ऐसा हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उन्हें दोबारा सत्ता में लाने का वचन दिलाकर विरोध का स्वर दबाने की रणनीति तैयार होने लगी है। हालांकि अभी तक महज रायगढ़ में केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय के समर्थकों के जुटने की खबर मिली है, लेकिन विरोध का स्वर कभी भी फूट सकता है।
प्रतिष्ठा का सवाल
छत्तीसगढ़ में भाजपा के सामने अपनी प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती है। यहां की 11 लोकसभा सीटों में 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। राज्य बनने के बाद तो भाजपा हर बार 10 सीट जीतती रही है। पिछले चार चुनावों से यहां विधानसभा की तुलना में लोकसभा में भाजपा को सात फीसद ज्यादा वोट मिलते रहे हैं। पहली बार यह स्थिति आई है कि राज्य में भाजपा की सरकार नहीं है।