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Lok Sabha Election 2019: झारखंड में दलों में आपसी द्वंद्व से बढ़ी दुविधा; Reality Check

Lok Sabha Election 2019. यहां सभी सीटों पर भले ही सीधे मुकाबले में भाजपा और विपक्षी महागठबंधन दिख रहा है लेकिन दोनों पक्षों का आपसी द्वंद्व चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 01 May 2019 12:54 PM (IST)Updated: Wed, 01 May 2019 12:54 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: झारखंड में दलों में आपसी द्वंद्व से बढ़ी दुविधा; Reality Check
Lok Sabha Election 2019: झारखंड में दलों में आपसी द्वंद्व से बढ़ी दुविधा; Reality Check

रांची, [प्रदीप सिंह]। Lok Sabha Election 2019 - झारखंड में 29 अप्रैल को तीन सीटों लोहरदगा, पलामू और चतरा के लिए वोट डाले गए। इसके बाद तीन अलग-अलग चरणों में बाकी बचे 11 सीटों के लिए मतदान होगा। यहां सभी सीटों पर भले ही सीधे मुकाबले में भाजपा और विपक्षी महागठबंधन दिख रहा है लेकिन दोनों पक्षों का आपसी द्वंद्व चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा।

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भाजपा जहां अंदरूनी मतभेद से जूझ रही है वहीं महागठबंधन के लिए सबसे बड़ा झटका समन्वय की कमी होगी। स्थिति का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले चरण के चुनाव प्रचार में विपक्ष कहीं नहीं दिखा, जबकि भाजपा ने आक्रामक प्रचार अभियान से आगाज किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोड शो और जनसभा की। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ताबड़तोड़ रैलियां कीं।

एक मायने में विपक्ष ने पहले चरण में भाजपा के लिए मैदान पूरी तरह खुला छोड़ दिया। प्रचार के मोर्चे पर सिर्फ भाजपा ही दिखी। लेकिन भाजपा की अंदरखाने मुश्किलें भी कम नहीं हैं। रांची संसदीय सीट पर छह मई को वोट डाले जाएंगे। यहां भाजपा के टिकट से पांच बार सांसद बनने वाले रामटहल चौधरी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। कोडरमा में टिकट कटने के बाद भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र कुमार राय का खेमा निष्कि्रय हो गया है। राय के छोटे भाई भाजपा छोड़ चुके हैं। मोदी लहर में भी इन सीटों पर भाजपा का अंदरूनी कलह जीत की राह में मुश्किल पैदा करेगा। 

पूरी तरह तालमेल नहीं कर पाया विपक्षी महागठबंधन
झारखंड में विपक्षी महागठबंधन की कवायद चुनाव से काफी पहले शुरू हुई। इसे देशभर में आदर्श के तौर पर भी पेश करने की कोशिश की गई। लेकिन प्रयोग पूरी तरह सफल नहीं हुआ। गोड्डा संसदीय सीट बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा को देने के बावजूद कांग्रेस वहां पूरे मन से उनके साथ नहीं है। यहां मतदान अंतिम चरण में होना है। दरअसल, झारखंड में विपक्षी महागठबंधन में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड विकास मोर्चा को तवज्जो मिला। हाशिये पर लालू की राजद चली गई। लालू इनके पोस्टर में भी नहीं दिख रहे हैं। कुल मिलाकर विपक्षी महागठबंधन भानुमति का कुनबा साबित हो रहा है। 

राष्ट्रवाद बनाम जल, जंगल, जमीन
भाजपा के लिए यहां सबसे बड़ा मुद्दा राष्ट्रवाद है। पार्टी केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार को डबल इंजन की संज्ञा देकर मतदाताओं को यह संदेश दे रही है कि यही विकास का आधार है। इसी बहाने छह माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी एजेंडा सेट किया जा रहा है। पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक, सवर्ण आरक्षण आदि मुद्दे भी प्रभावी हैं जो चुनाव को पूरी तरह प्रभावित करेंगे।

वहीं विपक्ष के मुद्दे पुराने हैं। दुहाई जल, जंगल व जमीन की दी जा रही है। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का सवाल भी उठाया जा रहा है। झारखंड में प्रभावी ईसाई समुदाय का आरक्षण भी एक बड़ा मसला है। आरक्षण खत्म करने का शिगूफा भी हावी है। एक मुद्दा स्थानीयता नीति का भी है। झारखंड मुक्ति इसके लिए 1932 अथवा अंतिम सर्वे के खतियान की वकालत करती है जबकि रघुवर सरकार ने 1985 का कट आफ डेट तय कर इस मुद्दे की काफी पहले हवा निकाल दी है।


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