Lok Sabha Election 2019: जम्मू-कश्मीर में प्रतिष्ठा का सवाल बनी अनंतनाग संसदीय सीट, तीन चरणों में होगा मतदान
दक्षिण कश्मीर के चार जिलों अनंतनाग पहले कभी इतना सुर्खियों में नहीं रहा है जितना जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद वादी में शुरू हुई हिंसा के बाद।
श्रीनगर, नवीन नवाज। 17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सभी की नजरें इस बार दक्षिण कश्मीर की एकमात्र संसदीय सीट अनंतनाग-पुलवामा पर है। देश में पहली बार किसी संसदीय सीट के लिए तीन चरणों में मतदान होगा। यह अभूतपूर्व है। चुनावी इतिहास में पहला बड़ा कदम है। मौजूदा परिस्थितियों में यह संसदीय क्षेत्र चुनाव आयोग के साथ राज्य प्रशासन के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है।
अलगाववादियों और आतंकियों के चुनाव बहिष्कार के आह्वान के बीच सुरक्षा, शांति एवं विश्वास का माहौल बनाकर ज्यादा से ज्यादा संख्या में मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाना बड़ी चुनौती है। क्षेत्र में हालात की संवेदनशीलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जब अप्रैल 2016 में अनंतनाग-पुलवामा की संसद सदस्यता से इस्तीफा दिया था तो उसके बाद से यहां उपचुनाव नहीं कराए जा सके। वर्ष 2017 में उपचुनाव घोषित भी हुए, चुनाव की तिथि तय हो गई। प्रत्याशी जीत को यकीनी बनाने के लिए मतदाताओं के घरों तक भी पहुंचने लगे, लेकिन सुरक्षा परिदृश्य का संज्ञान लेते हुए और आतंकी हिंसा की आशंका के चलते चुनाव अंतिम समय में रद कर दिया गया। उस समय चुनाव बहिष्कार का एलान करने वाले आतंकियों व अलगाववादियों ने जीत समझा था। वर्ष 1991 के बाद यह पहला मौका था जब रियासत में सुरक्षा कारणों से चुनाव रद किया गया हो।
आतंकियों व अलगाववादियों का गढ़ है दक्षिण कश्मीर
दक्षिण कश्मीर के चार जिलों अनंतनाग, कुलगाम, पुलवामा और शोपियां के 16 विधानसभा क्षेत्रों पर आधारित यह संसदीय क्षेत्र पहले कभी इतना सुर्खियों में नहीं रहा है जितना जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद वादी में शुरू हुई हिंसा के बाद। वर्ष 2016 के बाद से यह क्षेत्र आतंकी ङ्क्षहसा और अलगाववादियों के ङ्क्षहसक प्रदर्शनों का गढ़ बना हुआ है। किसी भी क्षेत्र में जब कभी आतंकी सुरक्षाबलों के घेरे में फंसते हैं तो वहां आतंकियों के समर्थक सुरक्षाबलों पर पथराव करने पहुंच जाते हैं। आतंकियों के जनाजों में भीड़ इस क्षेत्र में उनकी पैठ का सुबूत है। तीन वर्षों के दौरान कश्मीर में तैयार स्थानीय आतंकियों की नई पौध का नब्बे फीसद कश्मीर से ही है। तीन वर्षों में कश्मीर में मारे गए 580 आतंकियों में 80 प्रतिशत स्थानीय हैं। इनमें 90 प्रतिशत का संबंध भी दक्षिण कश्मीर से ही है। इसके अलावा जमात-ए-इस्लामी जिसे गत माह ही केंद्र ने प्रतिबंधित किया है, का सबसे ज्यादा प्रभाव पुलवामा, कुलगाम और शोपियां में ही है। अन्य इस्लामिक संगठनों जो चुनाव बहिष्कार की सियासत में पर्दे के पीछे से सक्रिय रहते हैं, भी दक्षिण कश्मीर में पूरा असर रखते हैं। शब्बीर शाह, गुलाम नबी सुमजी, मुख्तार वाजा, बशीर फलाही समेत कई वरिष्ठ अलगाववादी नेता भी दक्षिण कश्मीर से जुड़े हैं। बीते साल राज्य में हुए पंचायत व स्थानीय निकाय चुनावों में दक्षिण कश्मीर में चुनाव बहिष्कार का असर साफ नजर आया था। अधिकांश जगहों पर प्रत्याशी ही नहीं मिले। बहुत ही कम इलाकों में चुनावी मुकाबला देखने को मिला। पूरे क्षेत्र में मुख्यधारा के सियासी दलों की गतिविधियां तीन साल से ठप पड़ी हुई हैं। पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा, नेकांध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने अनंतनाग, पुलवामा व शोपियां में छह माह के दौरान कुछ बैठकें की है। वह अपने समर्थकों में कोई उत्साह भरने में असमर्थ रहे हैं।
तीन चरणों में चुनाव की जरूरत क्यों
देश के मुख्य चुनावायुक्त सुनील अरोड़ा ने रियासत में चुनावी कार्यक्रम का ब्योरा देते हुए खुदा माना है कि हालात काफी विकट हैं तभी अनंतनाग पुलवामा संसदीय सीट पर तीन चरणों में चुनाव हो रहे हैं। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ अहमद अली फैयाज ने कहा कि पूरे क्षेत्र को आतंकी खतरे के लिहाज से ही तीन जोन में बांटा गया है। प्रत्येक चरण में छह से सात दिन का अंतर है। यह समय इन इलाकों में सुरक्षा कवच तैयार करते हुए मतदान को आतंकी खतरे से पूरी तरह महफूज बनाने के लिए जरूरी है। एक भी आतंकी घटना इस पूरे क्षेत्र में मतदान का माहौल बिगाड़ सकती है। पूरे इलाके में आतंकियों की संख्या पूरे कश्मीर में सबसे ज्यादा है। उनका ओवरग्राउंड नेटवर्क भी इस क्षेत्र में मजबूत है।
हालात सामान्य बनाने में मदद मिलेगी
वरिष्ठ पत्रकार मकबूल वीरे ने कहा कि यहां मुख्यधारा के सियासी दलों को चुनाव प्रचार व अलगाववादियों के समक्ष तंग होती उनकी सियासी जमीन को फिर से बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया गया है। अगर चुनावी सियासत में भाग लेने वाले नेता लोगों को जोडऩे में कामयाब रहते हैं तो चुनाव बहिष्कार का असर कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के बीच पूरी तरह समाप्त हो सकता है। इससे कश्मीर में आतंकियों व अलगाववादियों का मनोबल गिरने के साथ ही हालात सामान्य बनाने में मदद मिलेगी।
अनंतनाग संसदीय क्षेत्र
दक्षिण कश्मीर की यह सीट चार जिलों अनंतनाग,पुलवामा, शोपियां और कुलगाम के 16 विधानसभा क्षत्रों पर आधारित है। इस पूरे क्षेत्र में लगभग पौरे बाहर लाख मतदाता हैं। 1967 से लेकर 1980 के चुनावों तक नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस ही यहां से चुनाव जीतती रही। लेकिन 1980 में पहली बार नेशनल कांफ्रेंस के गुलाम नबी कोचक ने यहां से संसद में प्रवेश किया था। वर्ष 1996 में यहां से जनता दल के मोहम्मद मकबूल डार चुनाव जीते थे जो केंद्रीय गृह राज्यमंत्री भी बने थे। बाद में नेकां ने यह सीट दोबारा जीत ली और वर्ष 2004 में यहां से पहली बार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफती ने चुनाव जीता था। लेकिन वर्ष 2009 में नेकां ने यह सीट जीती। लेकिन 2014 में एक बार फिर महबूबा यहां से सांसद बनी थी। लेकिन वर्ष 2016 में उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और तभी से यह सीट खाली पड़ी है। इस क्षेत्र में जमायत ए इस्लामी काभी मजबूत आधार है। बेरोजगारी, स्वास्थ्य , बिजली पानी जैसी सेवाओं का अभाव, अफास्पा, स्वायत्तता, सेल्फ रुल जैसे मुददे यहां चुनाव में खूब रंग दिखाते हैं ।
16 विधानसभा क्षेत्र आते हैं अधीन
त्राल, पांपोर, पुलवामा, राजपोरा, वाची, शोपियां, नूराबाद, कुलगाम, होमशालीबुग, देवसर, अनंतनाग, डूरू, कोकरनाग, शांगस, बिजबिहाड़ा पहलगाम
यह रहे हैं अब तक सांसद
- 1967- मोहम्मद शीफ कुरैशी, कांग्रेस
- 1971- एसए शमीम, निर्दलीय
- 1977-बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला नेशनल कांफ्रेंस
- 1980- गुलाम रसूल कोचक, नेशनल कांफ्रेंस
- 1984 बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला, नेशनल कांफ्रेंस
- 1989- पीएल हांडू, नेशनल कांफ्रेंस
- 1991- चुनाव नहीं हुए
- 1996- मोहम्मद मकबूल, जनता दल
- 1998 मुफ्ती मोहम्मद सईद, कांग्रेस
- 1999 अली मोहम्मद नायक, नेशनल कांफ्रेंस
- 2004 महबूबा मुफ्ती, पीडीपी