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लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में कांग्रेस का मेल बनाएगा नया खेल

कांग्रेस भी महागठबंधन का हिस्सा बन सकती है चर्चाएं। रालोद के लिए तब भाजपा से मुकाबला करना होगा आसान।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 06 Mar 2019 01:11 PM (IST)Updated: Wed, 06 Mar 2019 01:11 PM (IST)
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में कांग्रेस का मेल बनाएगा नया खेल
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में कांग्रेस का मेल बनाएगा नया खेल

आगरा, योगेश जादौन। सपा-बसपा गठबंधन ने मंगलवार को रालोद को भी साथ ले लिया। बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा सीट रालोद के खाते में आई हैं। इस गठबंधन में कांग्रेस के भी आ जाने की चर्चा ने रालोद की उम्मीदों को सातवें आसमान पर ला दिया है। महागठबंधन की चर्चा अगर हकीकत में बदली तो मथुरा में रालोद के लिए भाजपा से मुकाबला करना काफी आसान हो जाएगा।

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मथुरा सीट रालोद के खाते में आई है। रालोद यहां से किस प्रत्याशी को उतारती है, यह अभी तय नहीं है। बागपत से रालोद मुखिया अजित सिंह और मुजफ्फरनगर से रालोद महासचिव जयंत चौधरी का लडऩा लगभग तय है। ऐसे में मथुरा से किसी ठाकुर प्रत्याशी को उतारने की संभावना बन रही है। इसके पीछे तर्क भी है। राजनीतिक नजरिए से मथुरा का ठाकुर वोट आमतौर पर भाजपा के पाले का माना जाता है। लोकसभा क्षेत्र की छाता विधानसभा सीट पर ठाकुर और जाट मतदाताओं की प्रतिद्वंद्विता सर्वविदित है। रालोद के लिए जाट तो परंपरागत वोट है ही, ऐसे में वह ठाकुर मतदाता को अपने पक्ष में करने के लिए किसी ठाकुर प्रत्याशी को उतार सकता है।

मथुरा लोकसभा क्षेत्र की तीन विधानसभा सीटों बलदेव, मांट और छाता में जाट मतदाताओं की संख्या अधिक है। जबकि मथुरा सदर में वैश्य मतदाता लीड करते हैं तो छाता में ठाकुर मतदाता अच्छी संख्या में हैं।

मौजूदा समय में मथुरा की पांच विधानसभा सीट में से चार भाजपा और एक बसपा के खाते में है। विधानसभा चुनाव में मांट और बल्देव सीट पर रालोद दूसरे नंबर पर रही थी।

ऐसे में रालोद को जीतने के लिए जरूरी है कि वह अपने परंपरागत मतों के अलावा अन्य जातियों को भी साधे। सपा और बसपा के मिलने से रालोद का यह गणित अधिक मजबूत होगा। बसपा को पिछले लोकसभा चुनाव में करीब पौने दो लाख वोट मिले थे। कांग्रेस से संभावित महागठबंधन से मुस्लिमों के एकजुट होने की संभावना होगी। लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतों का आंकड़ा करीब पौने दो लाख बताया जा रहा है।

पिछले लोकसभा चुनाव में रालोद प्रत्याशी जयंत चौधरी को भाजपा की हेमामालिनी ने तीन लाख से अधिक वोटों से हराया था। इस चुनाव में बसपा करीब पौने दो लाख वोट मिले थे।

अब विरोधी दल सत्तारूढ़ भाजपा को हर सूरत में शिकस्त देने की रणनीति बना रहे हैं। सपा, बसपा और रालोद का गठबंधन इसी रणनीति का एक पहलू है। इससे मत विभाजन रुक सकेगा और विपक्ष का वोट महागठबंधन के प्रत्याशी को मिल सकेगा। अभी कांग्रेस गठबंधन से बाहर है, इसलिए वोटों के विभाजन की अभी संभावना है। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है।

आगामी चुनाव में हेमामालिनी के कार्यों की परीक्षा होनी है। 2014 में भाजपा की लहर थी, इस बार ऐसा माहौल नहीं है। इसलिए भाजपा को पहले की तुलना में अधिक ताकत लगानी पड़ेगी।

इधर, गठबंधन के तहत रालोद के खाते में यहां की सीट आने से पार्टी कार्यकर्ता गदगद हैं। चुनावी दावेदार भी महागठबंधन को मजबूत मानकर चल रहे हैं, इसलिए रालोद से टिकट मांगने वालों की सूची में एक दर्जन से अधिक लोगों के नाम शामिल हैं। रालोद जिलाध्यक्ष रामरसपाल पौनिया ने बताया कि सपा- बसपा से रालोद का गठबंधन हो गया है, इसका लाभ लोकसभा चुनाव में मिलेगा।

2014 के चुनाव में इतने मिले थे वोट

हेमामालिनी(भाजपा): 574633

जयंत चौधरी (रालोद): 243890

योगेश द्विवेदी(बसपा): 173572

चंदन सिंह (सपा): 36673


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