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Loksabha Election 2019 : कानपुर में पूर्व विधायक रामकुमार बने गठबंधन प्रत्याशी, जानें राजनीतिक सफर

सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पिछड़ा कार्ड चलने का फैसला लिया।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 30 Mar 2019 01:00 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 05:06 PM (IST)
Loksabha Election 2019 : कानपुर में पूर्व विधायक रामकुमार बने गठबंधन प्रत्याशी, जानें राजनीतिक सफर
Loksabha Election 2019 : कानपुर में पूर्व विधायक रामकुमार बने गठबंधन प्रत्याशी, जानें राजनीतिक सफर
कानपुर, जेएनएन। समीकरणों पर लगातार चले मंथन के बाद समाजवादी पार्टी ने कानपुर लोकसभा सीट पर पिछड़ा कार्ड चलने का फैसला लिया है। पूर्व सांसद मनोहर लाल के पुत्र एवं उन्नाव के पूर्व विधायक रामकुमार को सपा ने कानपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया है। गठबंधन प्रत्याशी रामकुमार का भाजपा प्रत्याशी सत्यदेव पचौरी और कांग्रेस प्रत्याशी श्रीप्रकाश जायसवाल से मुकाबला होगा।
कानपुर सीट के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही इशारा कर दिया था कि वह भाजपा का प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही गठबंधन प्रत्याशी की घोषणा करेंगे। भाजपा से एमएसएमई मंत्री सत्यदेव पचौरी के मैदान में आने के बाद से लखनऊ में कानपुर को लेकर सपा मुखिया ने कई बैठकें कीं। स्थानीय नेताओं से तमाम नामों की चर्चा चलती रही। अंतत: जातीय समीकरण पर गुणा-भाग कर सपा ने रामकुमार एडवोकेट को मुफीद माना है। सपा ने शनिवार को लखनऊ में उनके नाम की घोषणा कर दी।
जानिए रामकुमार का राजनीतिक सफर
रामकुमार एडवोकेट 1977 में भारतीय लोकदल से कानपुर संसदीय सीट से सांसद चुने गए मनोहर लाल के पुत्र हैं। उनके छाेटे भाई दीपक कुमार 1999 में उन्नाव से सांसद चुने गए। उनके सांसद बनने पर उन्नाव सदर सीट पर हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी के रूप में रामकुमार लड़े और जीते। उसके बाद 2004 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। अखिल भारतीय लोधी निषाद बिंद कश्यप एकता समता महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकुमार वर्तमान में जाजमऊ के वाजिदपुर में रहते हैं।
कानपुर है पुरानी राजनीतिक विरासत
रामकुमार कहते हैं कि चुनाव लडऩे मुझे निर्देश मिल चुका है। कानपुर उनकी पुरानी राजनीतिक विरासत रही है। वर्ष 1952 में पिता नगर पालिका के सभासद हुए थे। इसके बाद वर्ष 1959, 1962, 1967 और 1969 में पिता चुनाव लड़े और परिवहन, श्रम और न्याय मंत्री भी रहे। उन्होंने पिता से ही राजनीतिक विरासत ली। उन्नाव जाने के बाद उन्होंने 36 साल बाद फिर वापसी की है। कानपुर नगर से उनका बेहद लगाव है और यहां की जनता का पूरा समर्थन है। उन्होंने जाजमऊ स्थित मकदूम शाह आला की दरगाह पर चादर चढ़ाई और मंदिरों में पूजा-अर्चना की।

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