LokSabha Elections: जब महज 13 महीनों में गिर गई थी अटल बिहारी सरकार, जानिए क्यों?
इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस ने द्रमुक को हटाने के लिए कहा।
नई दिल्ली, जागरण। इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस ने द्रमुक को हटाने के लिए कहा। दरअसल राजीव गांधी हत्याकांड की जांच कर रहे आयोग ने द्रमुक के तार श्रीलंकाई अलगाववादी लिट्टे से जोड़े। गुजराल के मना करने पर कांग्रेस ने समर्थन खींच लिया। नतीजतन दो साल के भीतर ही 12वीं लोकसभा के लिए मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई। चुनाव में एक बार फिर भाजपा सबसे
बड़े दल के रूप में उभरी। अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन महज 13 महीने के भीतर ही यह सरकार गिर गई। इस लिहाज से उस लोकसभा कार्यकाल सबसे न्यूनतम रहा।
नहीं मिला स्पष्ट बहुमत
भाजपा बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। पार्टी को 25.6 फीसद वोट मिले और वह 182 सीटें जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस को 141 सीटें मिलीं। संयुक्त मोर्चा को 97 सीटें मिलीं। इस प्रकार एक बार फिर किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। आजादी के बाद यह पहली बार हुआ कि कांग्रेस लगातार दो बार के चुनावों में सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।
राजग की सरकार
भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बहुमत के करीब 265 सीटें जुटाने में कामयाब रहा। अन्य क्षेत्रीय दलों के शामिल होने से 286 सदस्यों के बहुमत से अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने। भाजपा का चुनावों में उस समय तक का यह सबसे बेहतरीन प्रदर्शन था।
एक वोट से हार
गठबंधन में शामिल जयललिता की अन्नाद्रमुक पार्टी राजग सरकार के लिए हमेशा सिरदर्द बनी रही। वह लगातार अपनी मांगों के समर्थन में सरकार पर दबाव बनाती रही। जयललिता के खिलाफ भ्रष्टाचार के अनेक मामले चल रहे थे। भाजपा ने आरोप लगाया कि वह उनसे बचने के लिए सरकार से रियायत चाह रही थीं।
दोनों पक्षों के बीच मतभेद के चलते जयललिता ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उसके बाद 17 अप्रैल, 1999 को संसद में हुए विश्वास मत में सरकार एक वोट से हार गई।
परमाणु परीक्षण
11 और 13 मई, 1998 को सरकार ने पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किए। 1974 में पहली बार परमाणु परीक्षण किया गया था।