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Bihar Election Flashback: जवाहर प्रसाद- सासाराम के BJP MLA जो अपनी बाइक पर लगाते थे लाल बत्ती

Bihar Election Fashback बिहार के सासाराम में बीजेपी के विधायक थे जवाहर प्रसाद। चतुर्थ वर्गीय कर्मी से विधायक बने जवाहर प्रसाद के पास तब इतने पैसे नहीं थे कि कार खरीद सकें। उन्‍होंने एक बाइक खरीदी और उसी पर लाल बत्‍ती लगा ली।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 07 Oct 2020 09:09 AM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2020 09:50 AM (IST)
बाइक पर लाल बत्‍ती गाने वाले सासाराम के पूर्व बीजेपी विधायक जवाहर प्रसाद

सासाराम, ब्रजेश पाठक। बात 1990 की है। सासाराम नगरपालिका के चतुर्थवर्गीय कर्मी रहे जवाहर प्रसाद भाजपा के टिकट पर विधायक बन गए थे। इसके बाद उन्होंने अपनी राजदूत बाइक पर ही वीआइपी बत्ती लगा ली। वह खुद राजदूत चलाते थे। जबकि, उनके अंगरक्षक पीछे बैठते थे। अगर रास्ते में कोई वृद्ध या बीमार मिल जाए तो उसे घर या अस्पताल तक छोडऩे चले जाते। इस क्रम में अंगरक्षक को रास्ते में ही उतार देते थे।

खास बात यह है कि कार न सही, बाइक पर भी लाल बत्‍ती लगाने वाले विधायक जवाहर प्रसाद वीआइपी बत्ती पर रोक के समर्थक हैं। कहते हैं कि इससे आम और खास का भेद मिटा है। लोकतंत्र का संदेश भी यही है।

कभी आकर्षित करती थीं गाड़ी में लगीं लाल-पीली बत्तियां

पांच बार विधायक रह चुके जवाहर प्रसाद आज भी सादगी से रहते हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि वर्षों तक नगर परिषद में अधिकारियों का सेवक था। कभी-कभी नगर परिषद के चेयरमैन व अन्य अधिकारियों की गाड़ी भी चलानी पड़ती थी। तब अधिकारियों की गाड़ी में लगी लाल-पीली बत्ती काफी आकर्षित करती थी। लाल-पीली बत्ती की हनक भी थी। क्लास वन अधिकारी की गाड़ी में वीआइपी लाइट बीच में लगती थी। जबकि, बीडीओ-सीओ की जीप में साइड में लाइट लगाई जाती थी। तब अधिकारी यह जताने से नहीं चूकते कि कर्मी व अधिकारियों के बीच कितना बड़ा फासला होता है।

भाजपा ने बनाया प्रत्‍याशी और बन गए विधायक

जवाहर प्रसाद बताते हैं कि वे सन् 1989 में संघ में सक्रिय हुए थे। अगले साल जब चुनाव हुआ तो भाजपा ने सासाराम से उम्मीदवार बनाया। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि वे चुनाव भी लड़ सकते हैं। खैर, वह जनता के बीच गए और चुनाव जीत कर विधायक बन गए।

राजदूत बाइक पर लाल बत्‍ती लगा चे 10 साल

बताते हैं कि घर की स्थिति ऐसी नहीं थी की चारपहिया खरीदें। विधानसभा से लोन मिल रहा था, लेकिन उन्होंने लिया नहीं। किसी तरह राजदूत खरीदी। उसी पर उन्होंने लाल बत्ती लगा ली। यह संदेश दिया कि अब वे साहबों के गुलाम नहीं, बल्कि लोकतंत्र में सबसे ताकतवर माने जाने वाले जनता के सेवक हैं। इस लाल बत्ती लगी राजदूत पर वे दस साल चलते रहे। इसी बाइक से विधानसभा के सत्र में भाग लेने पटना भी चले जाते थे।


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