वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के लिए नेता किस हद तक जा सकते हैं, इसका उदाहरण है समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का माफिया मुख्तार अंसारी के घर जाना और न्यायिक हिरासत में उपचार के दौरान उसकी मौत के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराना। वह यहीं तक नहीं रुके, उन्होंने माफिया के साथ नेता रहे मुख्तार अंसारी की मौत की जांच सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश की निगरानी में कराए जाने की मांग भी कर डाली। सबसे अधिक आघातकारी बात यह रही कि मुख्तार अंसारी की मौत को लेकर उन्होंने अमेरिका और कनाडा के उन आरोपों का उल्लेख किया जिनके तहत यह कहा गया था कि कनाडा में एक खालिस्तानी आतंकी की हत्या में भारत का हाथ है और अमेरिका में एक खालिस्तान समर्थक की हत्या की साजिश किसी भारतीय एजेंट ने रची। इसकी कल्पना नहीं की जाती कि वोट बैंक की सस्ती राजनीति के चक्कर में कोई नेता भारत सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगा, लेकिन अखिलेश यादव ने बिना किसी संकोच ऐसा ही किया। उन्होंने मुख्तार अंसारी के घर पहुंचकर उसे केवल जनसेवक ही नहीं बताया, बल्कि उसके दादा और नाना के योगदान का भी उल्लेख किया। यह सही है कि मुख्तार अंसारी के दादा एक समय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे और उसके नाना नौशेरा का शेर कहे जाने वाले और भारत-पाक युद्ध के दौरान सर्वोच्च बलिदान देने वाले ब्रिगेडियर उस्मान थे, लेकिन क्या इसके आधार पर किसी को माफिया बनने और हत्या-अपहरण सरीखे संगीन अपराध करने का लाइसेंस मिल जाता है?

समझना कठिन है कि अखिलेश यादव यह क्यों भूल गए कि मुख्तार अंसारी पर साठ से अधिक मुकदमे दर्ज थे और उसे कई मामलों में सजा भी सुनाई जा चुकी थी? यह भी किसी से छिपा नहीं कि एक समय वह स्वयं मुख्तार अंसारी को माफिया के ही रूप में देखते थे और इसीलिए उन्होंने उसके कौमी एकता दल के सपा में विलय को ठुकरा दिया था। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी के घर जाकर इसलिए आक्रोश जताया, क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी उनसे पहले वहां पहुंच गए थे और उनके सहयोगियों ने यह शिकायत की थी कि आखिर अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी के घर जाना जरूरी क्यों नहीं समझा। इसके बाद अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई को मुख्तार के घर भेजा। ऐसा लगता है कि इसे उन्होंने पर्याप्त नहीं समझा और इसीलिए स्वयं वहां पहुंच गए। यह पहली बार नहीं है जब वोटों के फेर में किसी माफिया की मौत पर दुख जताने के साथ सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया हो। यह काम पहले भी होता रहा है। इस पर आश्चर्य नहीं कि ओवैसी और अखिलेश के साथ-साथ बसपा और कांग्रेस के नेता भी मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लिए मुख्तार अंसारी की मौत पर अफसोस जता चुके हैं। जब तक इस तरह की राजनीति होती रहेगी तब तक राजनीति के अपराधीकरण को रोकना संभव नहीं होगा।