भाग्यरेखाएं किसी भी प्रदेश के विकास के लिए सहायक होती हैं, लेकिन लोगों को आज भी सड़क सुविधा से महरूम होना पड़े तो इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है।


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प्रदेश में विकास के दावे किए जाते हैं और इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है। लेकिन प्रदेश में एक हिमाचल ऐसा भी बसता है, जो विकास की लौ से कोसों दूर हैं। प्रदेश के हर गांव को विकसित की श्रेणी में लाने की इच्छाशक्ति कहीं सरकारी सुस्ती के कारण पूरी नहीं हो रही तो कहीं लोग खुद विकास के दुश्मन बन रहे हैं। किसी भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है कि लोगों को बेहतर मूलभूत सुविधाएं मिलें। अगर सुविधाएं समय रहते मिल जाएं तो उनके परिणाम सुखद होते हैं, लेकिन प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार चंबा जिले में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सरकारी तंत्र की बेरुखी से खफा भरमौर उपमंडल के सुलाखर गांव के एक सब इंस्पेक्टर ने अपने वेतन से ही सड़क बनाने के लिए केंद्रीय ग्र्रामीण विकास विभाग को साठ हजार का चेक भेज दिया। आखिर क्या कारण हैं कि आजादी के 70 वर्ष बीतने के बाद भी इस तरह की बुनियादी जरूरत के लिए किसी जवान को ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन जवान के इस कदम को अतिरिक्त उपायुक्त भरमौर इसे लोकप्रियता हासिल करने का तरीका बता रहे हैं। इसी तरह चंबा जिले के भटियात के छणूईं गांव में सड़क न होने के कारण मरीजों को पालकी में ले जाना पड़ रहा है। ऐसे गांवों के लिए 108 जैसी एंबुलेंस सुविधा का क्या लाभ जहां पैदल चलने का रास्ता भी ढंग से न बना हो। करीब साढ़े तीन सौ की आबादी के गांव में बीमार होने पर व्यक्ति को करीब एक किलोमीटर तक पैदल पालकी में लाना पड़ता है। ऐसे में लोगों को उन सरकारी सुविधाओं का क्या लाभ मिल सकता है, जिसके तहत लोगों को स्वस्थ रखने के लिए योजनाएं चला रखी हैं। सरकारें किसी भी दल की रहीं हों, प्रदेश का विकास उनका ध्येय रहा है। प्रदेश की सरकारों ने सीमित संसाधनों के बावजूद विकास में कमी नहीं छोड़ी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन व पर्यटन क्षेत्र में हिमाचल अग्रणी राज्य बनकर उभरा है। देश के कई राज्यों में हिमाचल के विकास मॉडल को अपनाया है, लेकिन जब इस तरह की बदरंग तस्वीर सामने आती है तो सभी दावे बौने पड़ जाते हैं। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि लोगों को सड़क सुविधा उपलब्ध करवाना प्राथमिकता में शुमार होना चाहिए ताकि किसी जवान को सड़क सुविधा के लिए अपना वेतन देने के लिए मजबूर न होना पड़े।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]