यह राहत की बात है कि यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को वापस लाने का अभियान पूरी क्षमता के साथ चलाया जा रहा है। आशा की जाती है कि शीघ्र ही सभी भारतीयों को वहां से सुरक्षित लाने में सफलता मिलेगी। यूक्रेन से लौटे भारतीयों में बड़ी संख्या में छात्र हैं और वह भी वे, जो वहां मेडिकल की पढ़ाई के लिए गए थे।

यूक्रेन के जैसे हालात हैं, उन्हें देखते हुए इसके आसार कम ही हैं कि हमारे छात्र हाल-फिलहाल अपनी पढ़ाई पूरी करने वहां लौट सकेंगे। यही कारण है कि यह प्रश्न उठने लगा है कि वहां से लौटे विद्यार्थियों और खासकर मेडिकल शिक्षा के लिए गए छात्रों की आगे की पढ़ाई का क्या होगा? इस प्रश्न के उत्तर में सरकार की ओर से यह बताया गया है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और नीति आयोग को ऐसे उपाय खोजने को कहा गया है, जिससे यूक्रेन से लौटे हजारों छात्र देश में ही मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर सकें। इसके तहत फारेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिंग एक्ट में संशोधन-परिवर्तन के बारे में भी सोचा जा रहा है। ऐसा कुछ किया जाना समय की मांग है, लेकिन सवाल यह है कि क्या जल्द ऐसे उपाय किए जा सकते हैं जिससे यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों के समय की बर्बादी न हो?

इस सवाल के सिलसिले में इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कोरोना काल में चीन से लौटे मेडिकल छात्र अभी तक वहां नहीं जा पाए हैं। इनमें से कई तो तीन-चार साल की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति यूक्रेन से लौटे तमाम छात्रों की भी है। यह सही है कि हमारे हजारों छात्रों को मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन इसलिए जाना पड़ा, क्योंकि वे देश के मेडिकल कालेजों में स्थान नहीं पा सके, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे प्रतिभाशाली नहीं या फिर उनमें डाक्टर बनने का जच्बा नहीं।

तथ्य यह है कि देश के सरकारी मेडिकल कालेजों में सीटें कम होने और निजी मेडिकल कालेजों की फीस कहीं अधिक होने के कारण तमाम छात्रों को मेडिकल की पात्रता प्रवेश परीक्षा यानी नीट पास करने के बाद भी यूक्रेन और अन्य देशों की ओर रुख करना पड़ता है। इस समस्या का कोई ठोस समाधान खोजना होगा।