पठानकोट में आतंकी हमले के बाद सीमा सुरक्षा बल के इस दावे पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि पाकिस्तान से लगी सीमा से घुसपैठ नहीं हुई। सच तो यह है कि खुद सीमा सुरक्षा बल के इस कथन से ही उसका दावा कमजोर नजर आने लगता है कि अतंरराष्ट्रीय सीमा रेखा से तो घुसपैठ नहीं हुई, लेकिन निगरानी वाले उपकरणों में कुछ खराबी संभव है। यदि पाकिस्तानी आतंकियों ने पंजाब की सीमा से घुसपैठ नहीं की तो फिर वे या तो जम्मू के रास्ते आए होंगे या फिर कश्मीर के रास्ते। आखिर उन्होंने कहीं न कहीं से तो घुसपैठ की ही होगी। यह ठीक नहीं कि हर आतंकी हमले के बाद यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है कि सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त है,क्योंकि देर-सबेर यही सामने आता है कि किसी न किसी स्तर पर चूक हुई। कभी यह चूक कश्मीर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर होती है और कभी जम्मू अथवा पंजाब में अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा पर। एक अर्से से यह दावा किया जा रहा है कि देश की सीमाओं को और विशेष रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश से लगती सीमाओं को अभेद्य बनाया जाएगा, लेकिन रह-रहकर इस दावे की पोल खुलती है। नि:संदेह सीमा रेखा बहुत बड़ी है और अनेक स्थान ऐसे हैं जो बहुत दुर्गम हैं या फिर नदी-नाले होने की वजह से वहां से घुसपैठ रोकना कठिन है, लेकिन इन विकट परिस्थितियों का यह मतलब नहीं कि सीमाओं को वास्तव में अभेद्य बनाने के काम में कोई कोर कसर उठा रखी जाए। पठानकोट में हमले के बाद सीमा सुरक्षा बल की ओर से यह घोषणा की गई है कि वह पंजाब और जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा पर जवानों की तैनाती बढ़ाएगा। आखिर इसकी जरूरत पहले ही क्यों नहीं समझी गई?

चिंताजनक केवल यह नहीं है कि सघन सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद पुराने तौर-तरीकों से आतंकियों की घुसपैठ हो रही है, बल्कि यह भी है कि सीमा पार से हथियार भी आ रहे हैं और नशीले पदार्थ भी। पंजाब नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए एक लंबे अर्से से चर्चित है। नशे के कारोबार ने पंजाब के युवाओं को बुरी तरह अपनी चपेट में ले रखा है। फिर भी सीमा पार से नशीले पदार्थों की आवक पर रोक नहीं लग पा रही है। किसी को बताना चाहिए कि ऐसा क्यों है? पठानकोट एयरबेस में धावा बोलने वाले आतंकियों की घुसपैठ की एक वजह नशीले पदार्थों का कारोबार करने वालों की सक्रियता भी माना जा रहा है। आश्चर्य नहीं कि ये आतंकी नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने के बहाने भारतीय सीमा में घुसे हों और उनकी मदद उन लोगों ने की हो जो नशे का कारोबार करते हैं। यह ठीक है कि सारे पहलुओं से जांच हो रही है, लेकिन इस तरह की जांच तो इसके पहले भी हो चुकी है। आखिर जरूरी सबक सीखने में इतनी देरी क्यों हो रही है? जब यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के रास्ते तस्करी करने वालों के साथ आतंकी भी घुसपैठ की ताक में रहते हैं तो अभेद्य सुरक्षा तंत्र का निर्माण एक अधूरा लक्ष्य क्यों बना हुआ है? इस सवाल का जवाब गृहमंत्रालय के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय को भी देना है। बेहतर हो कि दोनों मंत्रालय हर हाल में सीमाओं को अभेद्य बनाना सुनिश्चित करें।

[मुख्य संपादकीय]