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देश की सुरक्षा से मामला जुड़े होने के कारण सरकार को इसकी उच्च स्तरीय जांच करवानी चाहिए, जेलों की कार्यप्रणाली की समीक्षा किए जाने की भी आवश्यकता है
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उत्तरी कश्मीर के बारामुला जेल में कैद आतंकवादियों से चौदह मोबाइल फोन और उनकी डायरी में देशद्रोह के लिखे भड़काऊ लेखों का बरामद होना कहीं न कहीं जेल प्रबंधन की मिलीभगत को दर्शाता है। जेल में बंद ये आतंकवादी पाकिस्तान की शह पर सुरक्षाबलों पर पत्थर मारने के लिए उन्हें उकसाते ही नहीं थे, बल्कि इसके लिए पैसों का भी इंतजाम किया जाता था। बारामुला जेल में इतनी बड़ी साजिश का भंडाफोड़ होने के बाद अब कश्मीर की जेलों की सुरक्षा और उनकी कार्यप्रणाली की समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है। जेल से चौदह मोबाइल फोन का मिलना कोई साधारण बात नहीं है, क्योंकि कश्मीर को आतंकवाद की ज्वाला में झोंकने के लिए यहीं से नेटवर्क चल रहा था। सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ के दौरान घेरे में आए आतंकवादियों को भगाने के लिए पत्थरबाजों को जो दिशा-निर्देश दिए जाते थे, उसके पीछे भी जेल में बंद इन आतंकवादियों का ही हाथ रहा। हद तो यह है कि जेल में बंद ये आतंकवादी मुठभेड़ के दौरान गुलाम कश्मीर में बैठे विभिन्न तंजीमों के संपर्क में रहकर सुरक्षाबलों के घेरे में फंसे आतंकवादियों को रणनीति के तहत भगाने में सहयोग कर रहे थे। विडंबना यह कि जेलों में मोबाइल रखने की इजाजत नहीं होती। वहां पर जैमर आदि लगे होते हैं, जिससे मोबाइल नहीं चल सकते। लेकिन बारामुला जेल में बंद आतंकवादियों को सर्व संपन्न सुविधाएं दिए जाने के पीछे भी कोई सोची समझी चाल है। इससे तो लगता है जेल आतंकवादियों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान है। यहां से देश के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां चलाने में जेल अधिकारियों की भी मिलीभगत हो सकती है। आतंकवादियों तक मोबाइल फोन पहुंचाने वाले कौन हैं, फिलहाल अभी जांच का विषय है। सरकार को चाहिए कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए, क्योंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है। इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि जेल से यह नेटवर्क कब से चल रहा था? बारामुला का इलाका बिल्कुल सीमा से सटा हुआ है। इससे पहले गत नवंबर माह में बारामुला के उड़ी क्षेत्र में सैन्य शिविर पर आतंकवादियों के हमले में सेना के उन्नीस जवान शहीद हो गए थे। क्या इस हमले के पीछे जेल में बंद आतंकवादियों का हाथ तो नहीं था। इसकी जांच होनी चाहिए। इस मामले में जो भी दोषी पाया जाए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]