पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड व पंजाब के विधानसभा चुनावों के नतीजे निश्चित रूप से प्रदेश की राजनीति पर असर डालेंगे। खासकर ऐसी स्थिति में जब विपक्षी दल इनेलो व कांग्रेस के साथ-साथ सत्तारूढ़ भाजपा के ही कुछ बागी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने में लगे हुए हैं। पंजाब में दो-तिहाई बहुमत से कांग्रेस की वापसी का हरियाणा में सबसे ज्यादा असर दिखेगा। वहां गुटों में बंटी कांग्रेस ने एकजुट हो जैसा प्रदर्शन किया, उससे निश्चित रूप हरियाणा के कांग्रेसियों का मनोबल बढ़ेगा। हालांकि हरियाणा में कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर खेमों में बंटी हुई हैं। बावजूद इसके हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेसी सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। इसलिए मनोहर सरकार को सचेत रहना होगा। हालांकि इसकी शुरुआत हो चुकी है और असंतुष्ट विधायकों के निशाने पर रहे मुख्यमंत्री के ओएसडी मुकुल की छुट्टी की जा चुकी है। इसी तरह भिवानी के उपायुक्त पंकज की कार्यप्रणाली पर भी अंगुली उठी थी और उन्हें पद गंवाना पड़ा। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री मनोहर ने काम न करने वाले अफसरों को बदलकर बागियों को संतुष्ट करने की दिशा में कदम तो उठाया ही है, साथ ही अफसरशाही को भी संकेत दिया है कि काम न करने वाले अफसरों के लिए उनके पास जगह नहीं है। असंतुष्ट खेमे के विधायकों का नेतृत्व कर रहे गुरुग्राम के विधायक उमेश कुमार भी बार-बार यही दोहरा रहे हैं कि प्रदेश में अफसरशाही हावी है। यानी साफ है कि असंतुष्ट धड़ा सरकार से कम अफसरशाही से ज्यादा नाराज है। वैसे भी विपक्ष आरंभ से ही कहता आ रहा है कि सरकार की प्रशासनिक मशीनरी पर पकड़ नहीं है। सरकार के मुखिया को इस ओर ध्यान देना होगा। यह ठीक है कि मनोहर की आलाकमान के साथ-साथ संघ परिवार में अच्छी पैठ हैं और उनकी कुर्सी को खतरा नहीं है, मगर सरकार के मुखिया के नाते उनको सबको साथ लेकर चलना होगा, एकजुट होना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]