उत्तराखंड में राज्य बोर्ड और सीबीएसई से संबद्ध सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को लागू करने का राज्य सरकार का फैसला नि:संदेह अच्छा कदम है। इसकी सराहना की जानी चाहिए। इस फैसले में कोई खोट नजर नहीं आता। इसी का नतीजा है कि सरकार के फैसले के विरोध में पब्लिक स्कूल खड़े हुए तो बच्चों के अभिभावक ढाल बनकर सामने आ गए। इससे न केवल सरकार की मुहिम को बल मिला, बल्कि पब्लिक स्कूलों के हौसले भी पस्त हुए। आखिरकार सरकार अपनी बात मनवाने में काफी हद तक सफल रही। तारीफ करनी होगी शिक्षा मंत्रलय की, जो तमाम दबाव के बावजूद अपने फैसले पर कायम रहा। इतना ही नहीं, मंत्रलय ने एनसीईआरटी की किताबें लागू करने में आनाकानी करने वालों पर आर्थिक दंड लगाने तक की प्रक्रिया शुरू कर डाली। चूंकि एनसीईआरटी और निजी प्रकाशकों की किताबों के दामों में बड़ा अंतर है, इस लिहाज से अभिभावकों के लिए सरकार का यह फैसला राहत माना जा रहा है। दरअसल, पब्लिक स्कूलों की ‘चालाकी’ किसी से छिपी नहीं है। इनमें बच्चों को निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें लेने के लिए बाध्य किया जाता रहा है। यूं भी कह सकते हैं कि कमीशन के खेल में पब्लिक स्कूल अभिभावकों पर ज्यादती करते आए हैं।

बेचारे अभिभावक विरोध करें तो कैसे, बच्चे के भविष्य को लेकर वह हमेशा ही सशंकित रहते हैं, विरोध की हिम्मत जुटाने का तो सवाल ही नहीं उठता। कुल मिलाकर यह कि सरकार के फैसले में कोई खोट नहीं दिख रहा है, लेकिन व्यवस्था में जरूर कमी नजर आ रही है। सत्र शुरू हुए तीन सप्ताह गुजर गए हैं, राज्य में अभी तक एनसीईआरटी की किताबों का टोटा खत्म नहीं हो पाया है। अभिभावक किताबों के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। हालांकि, इधर कुछ दिनों से शिक्षा विभाग का तंत्र सक्रिय हुआ है, पर दिक्कतें बरकरार हैं। कमोबेश यही स्थिति एससीईआरटी की किताबों को लेकर है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एससी-एसटी बच्चों के लिए एससीईआरटी की किताबें उपलब्ध कराई जाती हैं। अभी तक सभी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंची हैं। किताबों की छपाई के लिए दूसरे चरण की निविदा के तहत एक भी आवेदन न आने से विभाग को झटका लगा है। जाहिर है फिलहाल बच्चे बगैर किताबों के स्कूलों तक पहुंचेंगे। कहने में गुरेज नहीं कि व्यवस्थाओं को लेकर हीलाहवाली के चलते यह हालात पैदा हुए है। सरकार को इस पर और गंभीरता दिखानी होगी। किताबों की अनुपलब्धता की वजह से बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान न आने पाए, यह सुनिश्चित करना होगा। शिक्षा विभाग को इस मोर्चे पर अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी, अन्यथा वही सवालों के घेरे में होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]