कश्मीर में पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं शुरू होना इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार घाटी के हालात तेजी के साथ सामान्य बनाने में लगी हुई है। पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं शुरू होने से कश्मीर के लोगों को तो सहूलियत मिलेगी ही, दुनिया को यह संदेश भी जाएगा कि भारत सरकार अपने उस वादे को पूरा करने के प्रति गंभीर है जिसके तहत यह कहा गया था कि भेदभाव भरे अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद देश के इस हिस्से में लगाई गई पाबंदियां अधिक समय तक नहीं रहेंगी। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं शुरू करने के पहले भी कई ऐसे कदम उठाए जा चुके हैं जिनसे यह संकेत मिलता है कि मोदी सरकार कश्मीर के हालात सामान्य करने को लेकर हरसंभव उपाय कर रही है।

जम्मू-कश्मीर को 31 अक्टूबर को औपचारिक रूप से केंद्र शासित प्रदेश बनना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि तब तक कश्मीर के सभी 10 जिलों में लगाई गई हर तरह की पाबंदियों को हटा लेने की नौबत आ जाएगी। वैसे भी अब प्री पेड मोबाइल सेवाओं और इंटरनेट की बहाली के साथ कुछ प्रमुख नेताओं की नजरबंदी हटना ही शेष है। यह भी ध्यान रहे कि खुद प्रधानमंत्री की ओर से यह कहा गया है कि चार माह के अंदर कश्मीर के हालात सामान्य कर लिए जाएंगे।

जो लोग कश्मीर के मौजूदा हालात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने में लगे हुए हैं और इस क्रम में दुष्प्रचार का भी सहारा ले रहे हैं उन्हें इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि कश्मीर घाटी बीते लगभग तीन दशकों से अशांत है। इस अशांति का कारण कश्मीर में अलगाववादियों के साथ ऐसे तत्वों का उभार है जो न केवल पाकिस्तानपरस्त हैं, बल्कि आतंकियों के समर्थक भी हैं। ऐसे तत्वों पर लगाम लगाना अभी भी एक चुनौती है। यह चुनौती इसलिए और अधिक बढ़ गई है, क्योंकि पाकिस्तान इस ताक में है कि कश्मीर के हालात कैसे बिगाड़े जाएं? स्पष्ट है कि भारत सरकार को कश्मीर में सक्रिय अलगाववादियों और पाकिस्तानपरस्त तत्वों पर निर्णायक अंकुश लगाने के साथ ही पाकिस्तान पर भी दबाव बढ़ाना होगा।

हालांकि पाकिस्तान अपने अंदरूनी हालात से बुरी तरह त्रस्त है, लेकिन उसका कश्मीर राग शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। भारत को यह देखना ही होगा कि पाकिस्तान कश्मीर पर आंसू बहाना कैसे बंद करें? इसी के साथ उसे इसके लिए भी सक्रिय होना होगा कि कश्मीर घाटी की अमन पसंद जनता अलगाववादियों और आतंकवादियों के खिलाफ मुखर हो। इससे ही घाटी का माहौल बदलेगा। बीते 70-72 दिनों का अनुभव यही बताता है कि माहौल बदलने का यह कार्य कठिन अवश्य है, लेकिन असंभव नहीं।