कोरोना संक्रमित मरीजों की बढ़ती संख्या देखकर यह स्पष्ट है कि संक्रमण की दूसरी लहर पहली लहर को पार करने वाली ही है। जल्द ही प्रतिदिन एक लाख से अधिक कोरोना संक्रमित लोग सामने आ सकते हैं। नि:संदेह यह चिंताजनक स्थिति होगी। इस स्थिति से तभी बचा जा सकता है, जब एक ओर जहां आम लोग कोरोना संक्रमण से बचे रहने के उपायों को लेकर सावधानी बरतें, वहीं दूसरी ओर टीकाकरण की रफ्तार तेज की जाए। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि अभी तक सात करोड़ से अधिक लोगों को टीके लगाए जा चुके हैं। टीकाकरण अभियान जनवरी मध्य से शुरू हुआ था और कायदे से अब तक 10-15 करोड़ से अधिक लोगों को टीके लग जाने चाहिए थे। यह ठीक है कि जब से 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को टीका लगवाने की सुविधा प्रदान की गई है, तब से टीकाकरण की रफ्तार कुछ बढ़ी है, लेकिन यह अब भी लक्ष्य से पीछे है। केंद्र और राज्य सरकारों को यह देखना चाहिए कि आखिर प्रतिदिन 50 लाख लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य क्यों नहीं हासिल हो पा रहा है? यह लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है, जब टीकाकरण केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए और पात्र लोग टीका लगवाने में तत्परता का परिचय दें।

यह समझना कठिन है कि जब टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने में कठिनाई आ रही है, तब फिर सभी आयु वर्ग के लोगों को टीका लगवाने की सुविधा देने से क्यों बचा जा रहा है? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि टीकों के खराब होने का एक कारण वांछित संख्या में लोगों का टीकाकरण केंद्रों में न पहुंचना है। यदि पर्याप्त संख्या में टीके उपलब्ध हैं तो फिर घर-घर टीके लगाने का भी कोई अभियान शुरू करने पर विचार किया जाना चाहिए। कम से कम यह तो होना ही चाहिए कि जो लोग अपने काम-धंधे के सिलसिले में घरों से बाहर निकलते हैं और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाते हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर टीका लगे भले ही उनकी उम्र 45 वर्ष से कम क्यों न हो। ऐसे कोई उपाय इसलिए आवश्यक हो गए हैं, क्योंकि यह देखने में आ रहा है कि अब अपेक्षाकृत कम आयु वाले लोग भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। अब जब कोरोना संक्रमण के खतरे ने फिर से सिर उठा लिया है, तब फिर पात्र होते हुए भी टीका लगवाने में देरी करने का कोई औचित्य नहीं। जो लोग किसी न किसी कारण टीका लगवाने से बच रहे हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि हाल-फिलहाल कोविड महामारी से छुटकारा मिलता नहीं दिख रहा और वह अभी भी घातक बनी हुई है।