रिश्तों में अवसाद का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण प्रतिफल है फतेहाबाद की हिंसा। आपसी मनमुटाव के कारण पूर्व सैनिक ने सुसराल में जाकर दो वृद्ध महिलाओं की बेरहमी से हत्या कर दी। गनीमत रही कि उसकी पत्नी बच गई। देश की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने वाले सैनिक ने रिश्तों पर ऐसा प्राणघातक हमला किया कि सभी सामाजिक ताने-बाने हिल गए। तनाव का स्तर कुछ भी रहा हो पर यूं खून बहाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसी घटनाओं को रोकना किसी भी व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती हो सकता है। हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। मनन करें कि हम कहां राह से भटक रहे हैं। रिश्तों का अभिप्राय एक-दूसरे के करीब रहना व संबल उपलब्ध करवाना है।

एक्सप्रेस-वे की गति से दौड़ती जिंदगी में रिश्तों की नाजुक डोर बार-बार छिटक जाती है। आवश्यक है कि रिश्तों को थोड़ा समय दिया जाए। अवसाद को विवेक पर हावी न होने दें अन्यथा ऐसी घटनाओं को रोकना संभव नहीं हो सकता है। पूर्व सैनिक हथियार लेकर गया था। संभव है अचानक से ऐसा कुछ घटा कि वह 40 किलोमीटर की दूरी स्कूटी पर सवार होकर पहुंच गया और जाते ही गोलियां बरसानी शुरू कर दी। आवेश में उठाए गए कुछ कदम हमें जीवनभर का दर्द ही दे जाते हैं। दूसरी बड़ी चिंता हथियारों की बढ़ रही अंधी दौड़ की भी है। हथियार आसानी से उपलब्ध है इसीलिए हम उसे रखने की मर्यादा को भूल रहे हैं। आवश्यक है कि किसी भी परिस्थिति में संवाद का साथ न छोड़ें।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]