तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद अपनी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा में मॉस्को जाकर भारतीय प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि भारत के लिए रूस की मैत्री कितनी महत्वपूर्ण है। अपनी इस यात्रा में उन्होंने दोनों देशों के आपसी संबंधों को आगे बढ़ाते हुए यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में जिस तरह यह कहा कि बम-बारूद और गोलियों के बीच शांति वार्ता नहीं हो सकती, उससे उनके उस चर्चित कथन का स्मरण हो आया, जिसमें उन्होंने पुतिन से दो टूक कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं।

चूंकि भारतीय प्रधानमंत्री की मास्को यात्रा के मौके पर ही रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव में बच्चों के अस्पताल को भी निशाना बनाया, इसलिए उन्होंने बिना किसी संकोच यह भी कह दिया कि युद्ध या संघर्ष अथवा आतंकी हमलों में जब मासूम बच्चों की मौत होती है तो हृदय छलनी हो जाता है।

भले ही भारतीय प्रधानमंत्री की मास्को यात्रा के अवसर पर यूक्रेन में रूस का जोरदार हमला वाशिंगटन में अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो की बैठक को देखते हुए पश्चिमी देशों को संदेश देने के लिए किया गया हो, लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री के लिए रूसी राष्ट्रपति को यह संदेश देना आवश्यक हो गया था कि भारत इस तरह के हमलों का समर्थन नहीं करता।

देखना यह है कि यूक्रेन युद्ध पर भारतीय प्रधानमंत्री की फिर से खरी बात पर रूसी राष्ट्रपति कितना ध्यान देते हैं, लेकिन भारत को रूस के साथ अपनी मित्रता जारी रखते हुए यह स्पष्ट करते रहना होगा कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध को यथाशीघ्र समाप्त होते हुए देखना चाहता है। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व शांति के भी हित में है।

यह समझना कठिन है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री और रूसी राष्ट्रपति के बीच बातचीत का पूरा विवरण सामने आने के पहले ही अपनी नाराजगी क्यों जता दी? उन्होंने एक तरह से कूटनीतिक अपरिपक्वता और उतावलेपन का ही परिचय दिया। उनके इस अपरिपक्व व्यवहार के बावजूद भारत के लिए यही उचित होगा कि वह रूस और यूक्रेन के बीच के युद्ध को खत्म कराने के लिए हरसंभव प्रयास करे।

इन प्रयासों के सकारात्मक नतीजे आने से एक तो भारत के हित सधेंगे और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसका कद बढ़ेगा। भारत के लिए यह भी आवश्यक है कि वह रूस से अपने संबंध आगे बढ़ाते हुए इस पर ध्यान दे कि उसे जिस चीन से खतरा है, उस पर रूस की निर्भरता बढ़ती जा रही है।

भारत को रूस को यह संदेश देना ही होगा कि उसे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए चीन को अपनी हद में रहने के लिए कहना होगा। इस सबके बीच इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि रूस की चीन पर निर्भरता बढ़ने का एक कारण यह भी है कि भारत रूस को उसकी जरूरत की सामग्री का निर्यात नहीं कर पा रहा है।