किसानों के लिए खुशी की खबर है। मानसून के बादल इस साल जमकर बरसेंगे। अच्छी खेती की उम्मीद है। बिहार के सभी जिलों में जोरदार बारिश के आसार हैं। हालांकि मौसम विभाग का यह प्रारंभिक अनुमान है। इसके बाद मई के अंत में पुन: मानसून का पूर्वानुमान जारी किया जाएगा। हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि यह पक्का है कि प्रारंभिक अनुमान सही निकलेगा। मानसून की इस भविष्यवाणी से जहां सेंसेक्स और शेयर बाजार खुश है, वहीं किसानों की आंखों में भी उम्मीद की किरण दिखने लगी है।

दरअसल मानसून और किसान का संबंध बहुत पुराना है। अति प्राचीन काल से किसान उन बादलों के भरोसे रहता आया है, जो अक्सर उसे या तो जलाते हैं, या रुलाते हैं। लेकिन किसान की नियति है कि वह बादलों से विमुख नहीं हो सकता या उनके आने-जाने की खबरों से नाता नहीं तोड़ सकता। पूरे देश में दूसरी हरित क्रांति की बात चल रही है। असिंचित भूमि को सिंचित बनाने के लिए करोड़ों की योजनाएं बनीं। पानी में बह गईं। नहर बने, पानी नहीं आया। नदियां अपना आंचल समेटती रहीं।

पारंपरिक जलस्नोत के साथ खिलवाड़ किया गया। खेतों तक पानी पहुंचाने वाले स्नोतों को तो बंद कर दिया गया, लेकिन नए स्नोत या अत्याधुनिक तकनीक सभी किसान तक नहीं पहुंच पाए। यही वजह है कि नलकूप, नहर, पंपिंग सेट की तमाम चर्चाओं के बीच लाखों-करोड़ों किसान आज भी अपनी फसल की हरियाली के लिए बादलों के आने का इंतजार करते हैं। अच्छी बारिश और जरूरत के मुताबिक बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहते हैं। लेकिन अक्सर उनकी प्रार्थना अनसुनी रह जाती। कभी बादल बिना बरसे चले जाते, तो कभी इतना बरस जाते हैं कि खेतों में खड़ी फसल के सिर से पानी गुजरने लगता और उसमें किसान के तमाम सपने समाधि ले लेते हैं।

पिछले वर्ष बिहार के 19 जिलों में बारिश औसत से भी कम हुई थी। अररिया, भोजपुर, गया, गोपालगंज, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, पटना, पूर्णिया, सहरसा, सारण, शिवहर, सीतामढ़ी, सिवान, सुपौल, वैशाली और पश्चिमी चंपारण के किसानों ने सूखे जैसे हालात ङोले थे। पिछले साल ही नहीं, बल्कि पिछले छह साल से मानसून किसानों को परेशान कर रहा है। ग्लोबल वार्मिग और अन्य प्राकृतिक वजहों से मानसून का स्वरूप बदल रहा है। इसे किसानी के लिए बहुत भरोसेमंद नहीं माना जा सकता।

दूसरी ओर गांवों में पंपिंग सेट चलाने के लिए बिजली नहीं रहती। नहरों के टेल एंड तक पानी नहीं पहुंचता। डीजल अनुदान बिचौलियों के हाथ चला जाता है। पारंपरिक जलस्नोत को भू माफिया के चंगुल से नहीं निकाला जा रहा। केंद्र सरकार और राज्य सरकार यह मानती है कि खेती को बाजार और रोजगार से जोड़ा जाए, तो गांवों की किस्मत सुधर जाएगी। आवश्यकता है कि सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था हो। यह तभी संभव है, जब सरकार सिंचाई को लेकर शराबबंदी जैसा सकारात्मक और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था खड़ी करे। प्रकृति तो मनमानी करेगी ही। हमें उसके लिए तैयार रहना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय-बिहार ]