हरियाणा के महेंद्रगढ़ में एक स्कूल बस के पेड़ से टकराने से आठ बच्चों की मौत मन-मस्तिष्क को झकझोरने वाली घटना है। यह हादसा लापरवाही की पराकाष्ठा को बयान कर रहा है। आखिर ईद के त्योहार पर निजी स्कूल खुला क्यों था? किसी निजी स्कूल की ओर से नियम-कानूनों की अनदेखी का यह इकलौता मामला नहीं। ऐसे मामले पहले भी सामने आ चुके हैं।

महेंद्रगढ़ में स्कूल बस हादसे का शिकार इसलिए बनी, क्योंकि चालक तेज गति से बस चलाते हुए ओवरटेक कर रहा था और नशे में भी था। एक तरह से वह दुर्घटना को निमंत्रण देने पर आमादा था। इस भयावह दुर्घटना के बाद शोक संवेदनाओं का तांता लगना स्वाभाविक है, लेकिन क्या कोई यह संकल्प लेगा कि जिन कारणों से यह दुर्घटना हुई, उनका निवारण किया जाएगा? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि लापरवाह ड्राइवरों अथवा खटारा बसों के चलते पहले भी स्कूली बच्चों ने जान गंवाई है, लेकिन ऐसी व्यवस्था नहीं बन सकी, जिससे उनकी जान का जोखिम कम हो सके।

क्या हालात बदलने और बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना दिखाने वाले हमारे नीति-नियंता इतना भी नहीं कर सकते कि कम से कम स्कूली बसों के संचालन में किसी तरह की लापरवाही न हो? यह प्रश्न नेताओं के साथ नौकरशाहों से भी है, क्योंकि नियमों का पालन कराना उनके ही जिम्मे होता है। आखिर वे कभी कठोर दंड का भागीदार क्यों नहीं बनते?

इसका कोई विशेष अर्थ नहीं कि महेंद्रगढ़ में दिल दहलाने वाले हादसे के बाद हरियाणा सरकार ने परिवहन विभाग के सहायक सचिव को निलंबित कर दिया और अतिरिक्त परिवहन आयुक्त को दुर्घटना की जांच सौंपने के साथ यह भी घोषणा कर दी कि प्रदेश भर के स्कूली वाहनों की फिटनेस की जांच होगी।

आखिर इसकी चिंता पहले भी तो की जा सकती थी कि स्कूली बसों का रखरखाव और उनका संचालन सही तरह से हो रहा है या नहीं? इससे भी संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि बस दुर्घटना में बच्चों की मौत के बाद स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए। प्रश्न है कि इसके पहले कोई यह देखने वाला क्यों नहीं था कि निजी स्कूल छुट्टी के दिन बंद रहते या नहीं?

स्कूली बच्चों के सुरक्षित आवागमन को लेकर किस तरह कागजी खानापूरी होती है, इसका पता इससे भी चलता है कि करीब एक साल पहले एक जनहित याचिका पर हरियाणा सरकार ने उच्च न्यायालय में हलफनामा दिया था कि वह इस संदर्भ में आवश्यक कदम उठाएगी। कोई भी समझ सकता है कि उच्च न्यायालय को भरोसा दिलाकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई।

ऐसा रवैया राज्य विशेष तक सीमित नहीं। यह राष्ट्रव्यापी समस्या है और इसीलिए देश में प्रतिदिन लापरवाह और अकुशल चालकों, खटारा वाहनों आदि के चलते सड़क हादसे होते ही रहते हैं। इन हादसों में न जाने कितने लोग मरते हैं, लेकिन हमारे नीति-नियंताओं की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता।