ब्लर्ब ::: एक ओर डिपुओं के राशन के लिए उपभोक्ताओं को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है दूसरी ओर दुर्गम क्षेत्रों में स्थिति यह बनी हुई है कि यहां सरकारी राशन के भंडारण की ही सही व्यवस्था नहीं है
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योजना की सार्थकता इसमें है कि उसका लाभ लक्षित वर्ग तक पहुंचे। ऐसा न हो पाने पर न योजना का औचित्य रह जाता है और न ही आधार। सरकारी योजनाओं में सामने आने वाले गड़बड़ी के मामले साबित करने के लिए काफी है कि व्यवस्था में कई छेद हैं, जिन्हें दूर किए बिना योजनाओं के सफल कार्यान्वयन का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। इनमें अपात्र लोगों को अनाज मिलने के अलावा भंडारण की समुचित व्यवस्था न होना भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए सस्ते राशन का प्रावधान किया गया है। अनाज के उत्पादन से अधिक इसके सरंक्षण की आवश्यकता अधिक है। यह मामला दुखद है कि एक ओर तो डिपुओं के राशन के लिए उपभोक्ताओं को लंबा इंतजार करना पड़ता है और दूसरी ओर दुर्गम क्षेत्रों में स्थिति यह बनी हुई है कि यहां सरकारी राशन के भंडारण की ही सही व्यवस्था नहीं है। यहां लोगों को सस्ती दर पर राशन उपलब्ध करवाने के लिए सरकार लाखों रुपये खर्च करती है लेकिन यह तो व्यवस्था की ही खामियां हैं कि राशन तो दुर्गम स्थानों पर भी प्रचुर मात्रा में पहुंच रहा है और यह राशन भंडारण के इंतजार में गाडिय़ों में ही सड़ रहा है। इससे जाहिर है कि इसका खमियाजा तो उन उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ेगा जिन के लिए यह राशन भेजा गया था। उन्हें इस राशन के लिए या तो लंबा इंतजार करना पड़ेगा या फिर इस राशन की गुणवत्ता से ही समझौता करना पड़ेगा। नागरिक आपूर्ति विभाग को चाहिए कि जब तक उन्हें भंडारण के लिए अपना कोई स्थायी भवन नहीं मिल जाता तब तक इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करे। यह केवल जनहित में ही नहीं बल्कि देश हित में भी है कि अनाज को सरंक्षित कर अनाज की कमी से जूझते लोगों को राहत प्रदान की जा सके। बात सिर्फ तीसा की नहीं है जहां इस तरह की अव्यवस्था देखने को मिल रही है प्रदेश के अन्य भागों में भी भंडारण की समुचित व्यवस्था न होने से अनाज सड़ जाता है और पात्र लोगों तक नहीं पहुंच पाता है। अनाज के भंडारण के लिए जब तक व्यवस्था सही नहीं होगी तब तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ पात्र लोगों तक पहुंच पाना संभव नहीं है।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]