आपसी सामंजस्य की कमी और अति उत्साह के कारण किस तरह हास्यास्पद स्थिति बन जाती है, यह हास्य कलाकार किकू शारदा के मामले में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आरोप है कि किकू शारदा व अन्य कलाकारों ने एक टीवी शो में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख का उपहास उड़ाया, जिससे उनके अनुयायियों की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। भावनाएं अगर आहत होती हैं तो अदालत की शरण लेना कोई गलत नहीं, बल्कि विरोध जताने और उसका अहसास कराने का कानूनी तरीका है। डेरा प्रेमियों ने ऐसा कर कोई अनुचित नहीं किया, बल्कि एक नागरिक को मिले अधिकारों का इस्तेमाल ही किया है। अब जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की थी कि वह सभी पक्षों को सही तरीके से अदालत में रखे। इस मामले में कैथल पुलिस की कार्रवाई कुछ अतिवादी लगती है। आरोपी कलाकार को गिरफ्तार करने और यहां लाकर अदालत में प्रस्तुत करने का पर्याप्त वैधानिक आधार बनता है, लेकिन कुछ व्यावहारिक पहलुओं को भी ध्यान रखना चाहिए था। पुलिस को समझना चाहिए था कि शिकायत धार्मिक भावनाओं को आहत करने की है, लिहाजा आरोपी पक्ष की सुरक्षा आदि का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए था। पुलिस यह दावा कर सकती है कि उसने पूरी एहतियात बरती और कलाकार को पर्याप्त सुरक्षा दी, लेकिन जिस तरह थाने और अदालत के बाहर बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जमा हो गई, वह उसकी लापरवाही की पोल खोलती है। इससे कलाकार को खतरा भी पहुंच सकता था। पुलिस महकमे में इस मसले पर अनिर्णय और आपाधापी की स्थिति बन गई थी। इससे यही लगता है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ थी। पुलिस अधिकारियों को यह समझना चाहिए था कि आरोपी फिल्म कलाकार हैं और देशभर में उनके प्रशंसकों की अच्छी खासी तादाद है। स्वाभाविक है कि हरियाणा में अगर कुछ होगा तो बाहर से भी प्रतिक्रिया आएगी। और हुआ भी यही। खासकर सोशल मीडिया में पुलिस कार्रवाई का लोगों ने विरोध किया और उपहास उड़ाया। यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री ने खुद आगे बढ़कर सरकार का पक्ष रखा। उनका यह स्पष्ट करना जरूरी था कि कलाकार के खिलाफ कार्रवाई किसी दबाव की वजह से नहीं बल्कि कानूनी कारणों से हुई है और किसी के साथ ज्यादती नहीं होने दी जाएगी। डेरा प्रमुख ने माफी देकर जहां बड़प्पन दिखाया, वहीं कलाकार किकू शारदा ने जिस विनम्रता से अपनी बात रखी, उसकी सराहना होनी चाहिए। पुलिस को भी इससे सबक लेना चाहिए ताकि बिलावजह उसकी किरकिरी न हो।

[स्थानीय संपादकीय: हरियाणा]