प्रदेश में चुनाव निपट चुके हैं। अब शासन के सामने विकास कार्यों को तेजी से पूरा करने की चुनौती है। वित्तीय वर्ष पूरा होने में कम समय ही बचा हुआ है। बजट खर्च में कमी या विकास योजनाएं लागू करने में धीमापन रहा तो इसका खामियाजा राज्य को भुगतना होगा।

राज्य में चालू वित्तीय वर्ष में अब कम समय शेष रह गया है, लिहाजा नौकरशाही के सामने विकास कार्यों को रफ्तार देने और बजट के सदुपयोग की चुनौती है। विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं। आदर्श आचार संहिता प्रभावी है और चुनाव नतीजे आने में लंबा वक्त है। ऐसे में विकास कार्यों की गति पर असर पडऩे का अंदेशा है। हालांकि, चुनाव निपटने के बाद विकास कार्यों की रफ्तार बढ़ाने की कवायद शुरू की जा चुकी है। खुद मुख्य सचिव की ओर से इस बारे में तमाम महकमों और आला नौकरशाहों को वित्तीय वर्ष के आखिरी महीनों में समयबद्ध कार्यक्रमों को पूरा करने की हिदायत दी जा चुकी है। राज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती केंद्रपोषित योजनाओं पर अमल और इस मद में बजट के अधिकाधिक इस्तेमाल की रही है। इस चुनौती पर राज्य अभी तक खरा नहीं उतरा है। केंद्रपोषित योजनाओं को विषम परिस्थितियों वाले राज्य में लागू किए जाने के लिए परियोजना निर्माण से लेकर अन्य बारीकियों को लेकर नौकरशाही अलर्ट नहीं दिखी है। इस लापरवाही का अंदाजा अगले वित्तीय वर्ष के लिए तैयार किए जा रहे बजट प्रस्तावों से लग चुका है। हाल के वर्षों में केंद्रपोषित योजनाओं के ढांचे में आमूल-चूल बदलाव हो चुका है। बावजूद इसके बड़ी संख्या में महकमों को इसकी जानकारी तक नहीं थी। उनके द्वारा तैयार किए गए बजट प्रस्ताव वर्षों पुरानी व्यवस्था के मुताबिक तैयार किए गए। नतीजतन मुख्य सचिव को तमाम महकमों को हिदायत जारी कर नई व्यवस्था के मुताबिक प्रस्ताव बनाने के आदेश जारी करने पड़े। इससे शासन और महकमों की बजट जैसे गंभीर विषय पर असलियत सामने आ चुकी है। केंद्रपोषित योजनाओं को हल्के ढंग से लेने की वजह से ही उत्तराखंड विशेष राज्य के दर्जे के तहत मिलने वाली सुविधाओं का सही तरह से लाभ नहीं ले पाया। चूंकि केंद्रपोषित योजनाओं का बजट लक्ष्य केंद्रित और कार्य समयबद्ध हैं। लिहाजा वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ही तत्परता बरतने की जरूरत है, ताकि सही ढंग से लाभ लिया जा सकता है। इसके लिए केंद्रपोषित योजनाओं को लेकर राज्य में ठोस मैकेनिज्म विकसित होना चाहिए। सवाल ये है कि अब तक सरकारें और नौकरशाही इस मामले में बेपरवाह क्यों बनी हुई है? इस रवैये के चलते चालू वित्तीय वर्ष में हालत और बदतर हो सकते हैं। इस वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में विकास की रफ्तार पर चुनावी छाया पड़ी है। पहले आचार संहिता और फिर चुनाव के नतीजे के इंतजार में योजनाओं में कामकाज पर असर पड़ा तो बजट खर्च में कमी आ सकती है। फिलवक्त अच्छी बात ये है कि नौकरशाही ने परेशानी को भांपते हुए केंद्रपोषित योजनाओं के साथ ही बजट सदुपयोग के लिए रफ्तार बढ़ाई है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]