यह अच्छा हुआ कि राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद जो बाइडन ने खास तौर पर यह कहा कि वह अमेरिका को एकजुट करेंगे। उनकी ओर से ऐसा कोई संदेश दिया जाना इसलिए आवश्यक था, क्योंकि अमेरिका इसके पहले वैचारिक रूप से इतना अधिक विभाजित कभी नहीं दिखा। बाइडन की जीत यह बता रही है कि अमेरिकी जनता ने ट्रंप के मुकाबले उनसे अधिक उम्मीदें लगा रखी हैं, लेकिन सबसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति होने के नाते शेष विश्व ने भी उनसे तमाम उम्मीदें लगा रखी हैं। वास्तव में उनके सामने जितनी बड़ी चुनौती घरेलू समस्याओं से निपटने की है, उतनी ही अंतरराष्ट्रीय समस्याओं से भी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ी चुनौती अड़ियल और अहंकारी चीन पर लगाम लगाने की है।

ईरान, तुर्की और उत्तर कोरिया के प्रति तो उनकी संभावित नीति का अनुमान लगाया जा सकता है, क्योंकि वह चुनाव प्रचार के दौरान इन देशों के बारे में अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं, लेकिन यह कहना कठिन है कि वह चीन के मामले में किस नीति पर चलेंगे? निगाह केवल इस पर ही नहीं होगी कि वह चीन के साथ अमेरिका के व्यापार विवाद को कैसे सुलझाते हैं, बल्कि इस पर भी होगी कि वह बीजिंग की विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगाने के लिए क्या कारगर कदम उठाते हैं?

बाइडन की चीन नीति पर भारत की अतिरिक्त दिलचस्पी होना स्वाभाविक है, क्योंकि चीनी सेना अपने अतिक्रमणकारी रवैये से बाज नहीं आ रही है। बाइडन की ओर से अफगानिस्तान और पाकिस्तान को लेकर अपनाए जाने वाले रवैये में भी भारत की दिलचस्पी होगी। इसमें कोई दोराय नहीं कि ट्रंप ने अफगानिस्तान को तबाह करने वाले तालिबान से समझौता कर आतंक की अनदेखी ही की। उन्होंने तालिबान से समझौता करके जहां पाकिस्तान के मन की मुराद पूरी की, वहीं भारतीय हितों की उपेक्षा भी की। उम्मीद है कि बाइडन प्रशासन यह समझने में देर नहीं करेगा कि तालिबान को पालने वाला पाकिस्तान पहले की ही तरह आतंकवाद को समर्थन देने में लगा हुआ है।

जहां तक अमेरिका और भारत के आपसी संबंधों की बात है, इस पर लगभग सभी एकमत हैं कि दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत होंगे। इसकी एक वजह तो यह है कि ओबामा के दौर में उप राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने भारत से संबंध सुधारने की पहल की थी और दूसरी यह कि आज भारत को अमेरिका की जितनी जरूरत है, उतनी ही उसे भी भारत की। यह भी उल्लेखनीय है कि अब उप राष्ट्रपति कमला हैरिस होंगी, जो भारतीय-अफ्रीकी मूल की हैं। उनका उप राष्ट्रपति निर्वाचित होना अमेरिका के साथ-साथ वहां रह रहे भारतीय मूल के लोगों के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि है।