कश्मीर में पिछले कई दिन से हो रही बर्फबारी और बारिश से दरिया झेलम के उफान पर होने के कारण श्रीनगर में फिर से बाढ़ की स्थिति और कारगिल के बटालिक सेक्टर में हिमस्खलन की चपेट में आने से तीन सैनिकों के दब जाने की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए सेना आपदा प्रबंधन के साथ मोर्चा संभाल कर बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए मसीहा बन गई है। गनीमत यह है कि शुक्रवार को बारिश थमने के कारण दरिया झेलम खतरे के निशान से नीचे बह रही है। फिर भी मौसम जिस तरह से अठखेलियां कर रहा है, उसे देखते हुए प्रशासन को किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए तैयारी कर लेना चाहिए।

विडंबना यह है कि सितंबर 2014 में आई बाढ़ से पैदा हुई स्थिति के बाद भी सरकार ने निचले क्षेत्रों में बाढ़ के पानी की निकासी के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए, जिससे सैकड़ों लोगों के जानमाल को नुकसान हुआ। फिर पहले जैसे हालातों से सरकार को दो चार होना पड़ रहा है। दु:ख इस बात का है कि सरकार पिछली गलतियों से सबक सीखने के बजाय कोई अप्रिय घटना घटित होने के बाद ही सक्रिय होती है। पिछले कई दिनों से हो रही बारिश और बर्फबारी कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ वर्षो के दौरान मौसम चक्र पर नजर डालें तो अप्रैल में हुए हिमपात और बारिश ने पिछले तेरह साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है।

राहत और रसद पहुंचाने में प्रशासन अपनी ओर से पूरे प्रयास अवश्य कर रहा है लेकिन आवश्यक वस्तुओं की कमी और बारिश व हिमपात के कारण कुछ इलाकों में बिजली व पानी की आपूर्ति ठप न हो इसका भी ध्यान रखने की जरूरत है, क्योंकि ताजा बर्फबारी ने लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। इसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि स्थानीय प्रशासन आपदा प्रबंधन के लिए पहले से ही पूरी तरह से तैयारी करके रखे ताकि ऐसी किसी स्थिति में मुसीबत में फंसे लोगों को तत्काल मदद पहुंचाई जा सके। ऐसा ही कुछ जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय राजमार्ग को यातायात के लिए हर समय खुला रखने के लिए करना आवश्यक है।

अगले कुछ दिनों में पहाड़ों पर भारी बर्फबारी और हिमस्खलन होने की मौसम विभाग की चेतावनी के दृष्टिगत सभी जिलों को पूरी तरह से चौकस रहना होगा। लोगों को समय पर मदद पहुंचे इसके लिए पूरी तैयारियां कर लेनी चाहिए।