अंततः पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का विलय भी भाजपा में कर दिया। यद्यपि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े उनकी नवगठित पार्टी के किसी प्रत्याशी को जीत हासिल नहीं हुई और खुद अमरिंदर सिंह भी चुनाव हार गए थे, लेकिन इसके आधार पर इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता कि उनके भाजपा में आने से कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। उनके रूप में भाजपा को एक बड़े सिख चेहरे की जो तलाश थी, वह पूरी हो गई है।

चूंकि अमरिंदर सिंह के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है और वह पंजाब के दो बार मुख्यमंत्री भी रहे हैं, इसलिए उनका साथ लेकर भाजपा राज्य में अपनी जड़ें जमा सकती है। अमरिंदर सिंह के पहले पंजाब कांग्रेस के कुछ और नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इनमें पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके सुनील जाखड़ भी हैं। कांग्रेस के अतिरिक्त अकाली दल के भी कई नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। चूंकि पंजाब में पिछले विधानसभा चुनाव के पहले तक भाजपा अकाली दल की सहयोगी बनकर रही, इसलिए पहली बार उसे इस राज्य में अपना विस्तार करने का अवसर मिलेगा।

यह समय बताएगा कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव तक स्वयं को कितनी शक्तिशाली बना सकेगी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आज पंजाब में कांग्रेस बिखराव से ग्रस्त और राजनीतिक रूप से बुरी तरह पस्त है। इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकता। उसने जिन नेताओं को महत्व देने के लिए अमरिंदर सिंह को अपमानित कर मुख्यमंत्री पद से हटाया, वे आज राजनीतिक रूप से असरहीन भी हैं और दिशाहीन भी। उनकी आपसी खींचतान भी थमने का नाम नहीं ले रही है। जो पंजाब एक समय कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, वहां फिलहाल उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं दिख रहा है।

कांग्रेसी नेता यह कहकर अपनी खीझ मिटा सकते हैं कि अमरिंदर सिंह तो पहले से ही भाजपा से मिले हुए थे, लेकिन वे इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकते कि कांग्रेस अपने एक और गढ़ में कमजोर हो गई। अमरिंदर सिंह के भाजपा में शामिल होने के साथ ही इस तरह के स्वर तेज हो रहे हैं कि आपरेशन लोटस थमने का नाम नहीं ले रहा है। निःसंदेह देश के अन्य हिस्सों में भी विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के भाजपा में शामिल होने का सिलसिला कायम है, लेकिन इसका कारण यह नहीं कि उन्हें येन-केन-प्रकारेण पार्टी में लाने का कोई अभियान छिड़ा हुआ है। विपक्षी दल यह समझें तो बेहतर कि अन्य दलों के नेता इसलिए भाजपा में शामिल हो रहे हैं, क्योंकि वे अपना भविष्य अन्य किसी पार्टी और विशेष रूप से कांग्रेस में नहीं देख रहे हैं।