प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के साथ देश को बदनाम करने के मकसद से तैयार की गई टूलकिट किसके दिमाग की उपज है, इसका रहस्य गहराता जा रहा है। भाजपा का आरोप है कि राजनीति के गंदे-भद्दे चेहरे को उजागर करने वाली इस टूलकिट को कांग्रेस ने तैयार किया, लेकिन कांग्रेसी नेताओं की मानें तो यह उनके खिलाफ साजिश है। उनके हिसाब से इसके पीछे खुद भाजपा का हाथ है। पता नहीं सच क्या है, लेकिन यह संदेह न केवल कायम है, बल्कि बढ़ता भी जा रहा है कि हो न हो, इसके पीछे कांग्रेस के किसी नेता का हाथ हो। इस संदेह का आधार टूलकिट के जरिये जिन तौर-तरीकों और तेवरों के साथ मोदी सरकार पर हमला करने और उसे लांछित करने की सलाह दी गई है, वे कई कांग्रेसी नेताओं की प्रवृत्ति से मेल खाते हैं।

क्या यह समानता महज एक दुर्योग है? यह एक तथ्य है कि खुद राहुल गांधी वैसे आरोप उछालते रहे हैं, जैसे इस टूलकिट में बताए गए हैं। यह ठीक है कि कांग्रेस ने टूलकिट के पीछे अपना हाथ होने से इन्कार करने के साथ भाजपा नेताओं के खिलाफ दिल्ली पुलिस में एक शिकायत दर्ज करा दी है, लेकिन जब तक सच सामने नहीं आ जाता, तब तक कांग्रेस के लिए खुद को टूलकिट से अलग करना खासा मुश्किल होगा। इसलिए और भी, क्योंकि जिस महिला पर टूलकिट तैयार करने का आरोप है, वह कांग्रेसी सांसद के संग काम करने के साथ कांग्रेस के शोध विभाग से जुड़ी है।

टूलकिट को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप के बीच दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उसे टूलकिट की तह तक जाकर दूध का दूध और पानी का पानी करना होगा। वैसे तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है, लेकिन फिलहाल तय नहीं कि वह इस पर कितनी दिलचस्पी लेगा? जो भी हो, टूलकिट तैयार करने वाले का बेनकाब होना अति आवश्यक है, क्योंकि उसके इरादे बहुत ही घिनौने थे। वह कोरोना वायरस के बदले हुए रूप को केवल भारत से ही नहीं जोड़ना चाहता था, बल्कि कुंभ को बदनाम करने के लिए यह दुष्प्रचारित करना चाहता था कि इस धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन के कारण ही कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आई। इतना ही नहीं, वह अस्पताल बेड जानबूझकर खाली रखकर हाहाकार की स्थिति पैदा करना चाहता था। टूलकिट तैयार करने वाला भारत के प्रति किस हद तक नफरत से भरा था, इसका पता इससे चलता है कि वह यह भी चाह रहा था कि विदेशी मीडिया में जलती चिताओं के फोटो प्रमुखता से प्रकाशित हों। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह काम एक हद तक हो भी रहा था।