दागियों का संरक्षण
उत्तर प्रदेश में विधानमंडल सत्र के एक दिन पहले मुख्यमंत्री मायावती ने जिस तरह अपने दागी सांसद एवं विधायकों का निलंबन समाप्त किया उससे इस धारणा की पुष्टि हो गई कि दागी छवि वाले नेताओं को पार्टी से दूर रखना उनकी प्राथमिकता सूची में नहीं। इससे विचित्र और कुछ नहीं हो सकता कि जिन नेताओं को पार्टी की छवि के लिए बोझ मानकर निलंबित किया गया था उन्हें फिर से गले लगा लिया गया और इसके लिए तर्क यह दिया गया कि चूंकि उन्होंने अपनी गलती मान ली है इसलिए उनका निलंबन समाप्त कर दिया गया। सवाल यह है कि क्या उनके द्वारा गलती मान लेने से उन पर लगे दाग भी धुल गए? आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में बसपा अपने उन अन्य विधायकों को भी इसी तरह माफ कर दे जिन पर भ्रष्टाचार अथवा आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप हैं और जिनके बारे में यह दावा किया गया था कि उन्हें विधानसभा चुनावों में टिकट नहीं दिया जाएगा।
दागी नेताओं को संरक्षण देने के मामले में केवल बसपा को ही कठघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता। इस मामले में जो स्थिति बसपा की है वही करीब-करीब अन्य राजनीतिक दलों की भी है। इसका ताजा उदाहरण बसपा से बगावत करने वाले पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के प्रति कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की संवेदनाएं उमड़ना है। बाबू सिंह कुशवाहा भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हैं और उनके बारे में यह माना जाता है कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में घोटाले के कारण उन्हें मंत्रिपद से त्यागपत्र देना पड़ा था। जहां कांग्रेस की ओर से यह कहा जा रहा है कि बाबू सिंह कुशवाहा की मदद पर विचार किया जाएगा वहीं सपा के एक नेता का कहना है कि उनके सम्मान की रक्षा की जाएगी। इस पर भी हैरत नहीं कि जहां सपा और कांग्रेस की ओर से बाबू सिंह कुशवाहा के प्रति नरम रवैये का परिचय दिया जा रहा है वहीं भाजपा के संदर्भ में यह कहा जा रहा है कि वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के कारण बसपा से निलंबित किए गए एक विधायक को विधानसभा चुनाव में टिकट देने का मन बना रही है।
[स्थानीय संपादकीय: उत्तरप्रदेश]
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