तंत्र हुआ 'अपसेट'
व्यावहारिक खामियों की पहचान किए बगैर सरकारी स्कूलों को प्रयोगवाद का अखाड़ा बनाने की सरकार व शिक्षा विभाग की प्रवृत्ति-मानसिकता का हर स्तर पर खामियाजा बच्चों के साथ शिक्षा तंत्र को भी उठाना पड़ रहा है। संसाधनों के भारी अपव्यय से सरकार के प्रबंध कौशल की भी पोल खुल रही है। आनन-फानन में सरकारी स्कूलों में एजुसेट लगा दिए गए ताकि हरियाणा के शिक्षा क्षेत्र को रातों रात अत्याधुनिक रूप में देशभर में प्रदर्शित किया जा सके। सौ घड़े एक साथ सींचने से पौधा एक दिन में तो पेड़ नहीं बन सकता। बिना जरूरत के अत्यधिक पानी मिलने से वह गलने लगता है। ऐसा ही कुछ राज्य में एजुसेट के साथ हुआ। हर गांव में आधुनिक शिक्षा के नाम पर ये लगा तो दिए गए पर न तो संचालन के लिए दक्ष व्यक्तियों की नियुक्ति की गई, न रखरखाव के लिए अतिरिक्त प्रबंध हुए। नतीजन कुछ दिन तो स्क्त्रीन पर पाठ्यक्त्रम चले पर उससे शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ, छात्रों और अध्यापकों में मुख्य आकर्षण टीवी कार्यक्त्रम या डॉक्यूमेंट्री जैसा रहा। कुछ दिन चलने के बाद जैसे ही एजुसेट में खामी आनी शुरू हुई, उसे बंद कर दिया गया क्योंकि उन्हें ठीक करने के लिए दक्ष इंजीनियरों को बुलाना पड़ता जिसके लिए स्कूलों में कोई फंड ही नहीं आवंटित किया गया था। विडंबना यह भी रही कि एजुसेट की देखरेख का जिम्मा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों तक को सौंप दिया गया। बैटरी खराब हुई तो बदली नहीं गई। कहीं एजुसेट खराब हुए तो कहीं गायब ही हो गए क्योंकि कई स्कूलों में चहारदिवारी तक नहीं। आज स्थिति यह है कि आधे से अधिक स्कूलों में एजुसेट का इस्तेमाल नहीं हो रहा। इन्हें बदलने या ठीक करवाने के लिए शिक्षा विभाग के पास कोई योजना नहीं। स्कूलों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं, राज्य में आधे स्कूलों के लिए आदर्श भवन नहीं बन पाए, विज्ञान प्रयोगशाला के लिए आधुनिक उपकरण नहीं, आधे सत्र तक पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध नहीं होतीं। पहले इन सब कमियों को दुरुस्त किया जाना चाहिए था लेकिन आधारभूत तैयारी के बिना एजुसेट जैसा भारी भरकम प्रयोग स्कूलों पर थोंप दिया गया। माना कि सरकार की मंशा बेहद उदात्त थी , दूरगामी और प्रगतिशील थी लेकिन गहन मंथन और सर्वे से आधार की खामियों की तलाश करके ही करोड़ों के प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ना चाहिए था। अब भी समय है, सरकार तमाम आधारभूत कमियों को दूर करे, उसके बाद ही एजुसेट का लक्ष्य पूरा होना संभव है।
[स्थानीय संपादकीय: हरियाणा]