बलबीर पुंज। हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस से मिले। पोप रोमन कैथोलिक चर्च के वैश्विक प्रधान होने के साथ विश्व के सबसे छोटे, स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के प्रमुख भी है। विश्व की कुल आबादी में 2.4 अरब ईसाइयों के लिए पोप श्रद्धा के पात्र हैं। पोप से भेंट के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय परंपरा का परिचय देते हुए उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया, जिसे पोप ने सहर्ष स्वीकार किया। इससे कुछ दिन पहले पोप फ्रांसिस ने फ्रांस के उस वीभत्स रहस्योद्घाटन को दुर्भाग्यपूर्ण-शर्मनाक बताया था, जिसमें वहां पादरियों द्वारा 70 वर्षों के दौरान 3,30,000 बच्चों के यौन शोषण की बात सामने आई। इस अक्षम्य अपराध पर 6 नवंबर को फ्रांसीसी नगर ल्यूर्डेस में बिशपों के बड़े समूह ने घुटनों पर बैठकर प्रायश्चित भी किया।

ऐतिहासिक भूलों/अपराधों पर रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा माफी मांगना नई बात नहीं है। चर्च में यौन-शोषण का यह पहला मामला भी नहीं है। शेष विश्व में पादरियों द्वारा बालिग, नाबालिग और ननों के साथ यौनाचार के तमाम मामले कलंक बनकर सामने आ चुके हैं। इस पर 2008 में तत्कालीन पोप बेनेडिक्ट-16 और वर्तमान पोप फ्रांसिस 2018 में सार्वजनिक माफी मांग चुके हैं। पादरियों के यौनाचार संबंधित गंभीर आरोपों से भारत के चर्च (अधिकांश वेटिकन संचालित) भी मुक्त नहीं हैं। यह पता नहीं कि पोप फ्रांसिस कब भारत आएंगे, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब भी वह या उनके उत्तराधिकारी भारत आएंगे, क्या तब वे उन सभी पापों के लिए भी भारतीय जनता से माफी मांगेंगे, जिसमें चर्च और उनके प्रतिनिधियों ने सदियों पहले देश के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रताड़ना, नरसंहार और मतांतरण का संचालन किया? दुर्भाग्य से मतांतरण के नाम पर स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को अपमानित करने की वह कुप्रथा आज भी स्वतंत्र भारत के कई हिस्सों में जारी है।

ईसाइयत का भारत से संपर्क इस्लाम की भांति दो किस्तों में हुआ। देश में दोनों ही एकेश्वरवादी अब्राहमिक मजहबों का दूसरा दौर वैमनस्य और असहिष्णुता भी साथ लेकर आया। प्राचीनकाल में अपने उद्गम स्थान पर मजहबी उत्पीड़न के शिकार हुए जो लोग भारतीय तटों पर पहुंचे, उनमें यहूदियों के बाद सीरियाई ईसाई भी थे, जो रोमन कैथोलिक चर्च का दंश झेलकर आए थे। तब इन सभी विदेशियों को तत्कालीन स्थानीय हिंदू शासकों और जनता ने बहुलतावादी भारतीय परंपराओं के अनुरूप न केवल समाज का हिस्सा बनाया, बल्कि उन्हें उनकी पूजा-पद्धति और जीवनशैली अपनाने का अवसर भी दिया। यह सुखद स्थिति तब बिगड़ी, जब 15-16वीं शताब्दी में रोमन कैथोलिक चर्च का पुर्तगाली साम्राज्यवाद के साथ भारत में प्रवेश हुआ। तब स्पेनवासी फ्रांसिस जेवियर ने भारतीय इतिहास के सबसे भयावह, नृशंस और रक्तरंजित अध्यायों में से एक-‘गोवा इनक्विजिशन’ (1561-1812) की पटकथा लिखी। ईसाइयत के प्रचार हेतु 1541-42 में जेसुइट मिशनरी बनकर भारत पहुंचे जेवियर ने पाया कि यहां गैर-ईसाइयों की भांति मतांतरित कैथोलिक ईसाई अपनी मूल परंपराओं के साथ पूजा-पद्धति का ही अनुसरण कर रहे हैं। तब चर्च से निर्देश मिलने पर जेवियर ने गोवा में हेरेटिक्स अर्थात मजहबी मान्यता से विपरीत धारणा रखने वालों के खिलाफ अमानुषिक ‘इनक्विजिशन’ अभियान प्रारंभ किया, जो हजारों स्थानीय हिंदुओं, यहूदियों के साथ मतांतरित और सीरियाई ईसाइयों पर कहर बनकर टूटा।

रोमन कैथोलिक चर्च की मान्यताओं को अंगीकार नहीं करने वालों को अपराधी माना गया और उन्हें जीभ काटने या उनकी चमड़ी उतारने जैसी क्रूर सजा दी गई। इन प्रताड़नाओं से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। कैथोलिक चर्च और पुर्तगाली ईसाई मिशनरियों के निर्देश पर 350 से अधिक मंदिरों और देवी-देवताओं की मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया गया। ईसाइयत के प्रति इसी ‘सेवा’ के लिए जेवियर को 1662 में तत्कालीन पोप ग्रेगरी-15 ने ‘संत’ की उपाधि दी। गोवा के पणजी स्थित बेसिलिका बाम जीसस चर्च में जेवियर का शव आज भी रखा हुआ है। रोमन कैथोलिक चर्च की तत्कालीन क्रूरता का उल्लेख डा. भीमराव आंबेडकर ने इन शब्दों में किया, ‘जब गोवा में जांचकर्ताओं (इनक्विजिशन करने वालों) को पता चला कि वे (सीरियाई ईसाई) हेरेक्टिक हैं, तब पोप के प्रतिनिधि सीरियाई चर्च पर भेड़ियों की तरह टूट पड़े।’ आज भी भारत के कई हिस्सों में वामपंथियों-सेक्युलरवादियों की शह पर चर्च और ईसाई मिशनरियों का छल, धोखे और लालच आधारित मतांतरण रूपी आत्मा का व्यापार जारी है।

चर्च का दागदार इतिहास केवल भारत तक सीमित नहीं है। सदियों पहले हुए मजहबी क्रूसेड से लेकर स्पेन, पुर्तगाल, मेक्सिको और पेरू में महिलाओं को चुड़ैल बताकर जीवित जलाने और यहूदियों समेत गैर-ईसाइयों की हत्याओं का भी चर्च अपराधी है। यरूशलम स्थित पवित्र भूखंड पर ईसाइयत का परचम लहराने हेतु हुए चर्च की मुहिम (1095-1291) में कम से कम 10 लाख लोग मारे गए। एक अनुमान के अनुसार, 1450-1750 के बीच एक लाख से अधिक महिलाओं को चर्च के निर्देश पर चुड़ैल घोषित कर मार दिया गया। उनमें ईसाई वीरांगना ‘जोन आफ आर्क’ भी शामिल हैं, जिनका पराक्रम चर्च को रास नहीं आया। 1466 में तत्कालीन पोप पाल-2 के निर्देश पर क्रिसमस के दिन रोम में यहूदियों को नग्न घुमाया गया। कालांतर में यहूदी पुजारियों (रब्बी) को विदूषक-परिधान पहनाकर उनका जुलूस निकाला जाने लगा। यही नहीं, 13वीं शताब्दी में पोप के आह्वान पर हजारों बिल्लियों को ‘शैतान’ बताकर मार दिया गया।

मार्च 2000 में तत्कालीन पोप ने बिना किसी संदर्भ या अपराधी का नाम लिए चर्च द्वारा किए गए पापों के लिए क्षमा मांगी। कुछ माह पहले कनाडा में एक पुराने चर्च द्वारा स्थापित दो आवासीय स्कूलों से एक हजार बच्चों की कब्रें मिली। ऐसे कई स्कूलों के माध्यम से कनाडा के लाखों मूल स्थानीय आदिवासियों को उनकी मूल सांस्कृतिक-पारंपरिक जड़ों से काटकर ईसाई बनाया गया। इस पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पोप से माफी मांगने को कहा। ऐसे में क्या पोप भारत आगमन पर चर्च द्वारा किए गए असंख्य पापों के लिए भी माफी मांगेंगे?

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)