मुकुल श्रीवास्तव। इंटरनेट और कंप्यूटर के बढ़ते प्रयोग से यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि आने वाला वक्त अपने परंपरागत रूप से अलग होगा, जिसकी झलक हमें रोजमर्रा के काम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल में दिख भी रही थी, लेकिन कोरोना काल ने मानव सभ्यता के बदलाव की तस्वीर को एक झटके में बदल दिया। मानव सभ्यता में इतना बड़ा बदलाव शायद इससे पहले आग, पानी और पहिये की खोज के बाद ही आए थे। फिर इंटरनेट ने तस्वीर बदली और समाज में बहुत सी क्रांतिकारी घटनाएं घटीं और ऑनलाइन का दौर आ गया, पर अभी भी बहुत से लोग इंटरनेट से दूर थे, क्योंकि उनके पास उन कामों के लिए परंपरागत विकल्प थे, जिससे इंटरनेट से मानव सभ्यता का चेहरा जितनी तेजी से बदलना चाहिए था वो गति नहीं थी, लेकिन कोरोना से उत्पन्न परिस्थितयों ने अचानक ही कई सारे बदलाव कर दिए।

दरअसल इंटरनेट की व्यापकता ने घर और ऑफिस के फर्क को बहुत हद तक कम कर दिया है। बहुत से पुराने रोजगार हमेशा के लिए अतीत हो जाएंगे, वहीं कई नए क्षेत्रों में रोजगार का सृजन होगा जिसमें सिर्फ कंप्यूटर और इंटरनेट का ही राज होगा। ऐसी परिस्थितयों में जब घर से काम करने वाले कर्मचारी सामान्य स्थिति में लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनमें से बहुत से लोग अब अपने परंरागत कार्यालय नहीं लौटे पाएंगे। क्या हम डिजिटल भविष्य की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं? क्या यह नया सामान्य यानी न्यू नॉर्मल होगा? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर खोजने में सारी दुनिया के चिंतक लगे हुए हैं।

अब होने वाले बदलाव इसलिए लाजमी हैं, क्योंकि कोरोना भले ही खत्म हो जाए, पर भविष्य में इस तरह की महामारी फिर से नहीं फैले इसके लिए पूरी मानव सभ्यता तैयारी करेगी। हम भले ही अपने आसपास होने वाले बदलाव को देख नहीं पा रहे हों, लेकिन पिछले तीन महीने में हमारे जीवन में हमेशा के लिए काफी कुछ बदल गया है। जैसे हम घर से काम करने के लिए अनुकूलित हो रहें हैं, ईमेल, चैट और वीडियो कांफ्रेंसिंग पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है, वीडियो कॉलिंग अब समय काटने के लिए नहीं, बल्कि काम के लिए हो रही है। व्यापार जगत, आइटी सेक्टर, अन्य कंपनियां ही नहीं, आम व्यक्ति भी वीडियो कॉफ्रेंसिंग और ऑनलाइन कार्य को ज्यादा महत्व दे रहा है। यह महज कोरोना महामारी के जवाब में न केवल सीमित शारीरिक संपर्क के लिए प्रभावी है, बल्कि काम करने के नए तरीके को भी आकार दे रहा है। आने वाले समय में काम के लिए यात्राओं पर होने वाला व्यय बहुत कम होगा और यह बहुत तेजी से हमारी कार्य संस्कृति को बदलेगा, जब एप से यात्राओं पर होने वाला समय और धन दोनों बचाएंगे। वर्क फ्रॉम होम का एक बड़ा सामाजिक असर यह हो सकता है कि महिलाओं के साथ रोजगार में होने वाला लैंगिक विभेद कम होगा, क्योंकि यह माना जाता है कि महिलाओं को देर रात तक आपातकालीन परिस्थितयों में रोकना मुश्किल होता है।

देश में अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा संस्थाएं भी बदल रही हैं जिसको गति कोरोना काल में और तेजी से मिल रही है। अब ई-कंसल्टेशन यानी आभासी परामर्श वास्तविकता है जो ऑडियो और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग टूल के माध्यम से किया जा रहा है। सरकार की टेलीमेडिसिन प्रैक्टिस गाइडलाइंस देश के सुदूर इलाकों में चिकित्सकों को इंटरनेट के माध्यम से अपनी सेवाएं देने को विधिक स्वरूप प्रदान करती है जिसे बीस मार्च को जारी किया गया है। चिकित्सा का यह तरीका न केवल संकट के इस समय, बल्कि भविष्य में भी लोगों को फायदा पहुंचाएगा। डॉक्टर तथा मरीज इन-पर्सन विजिट के बजाय डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ सकेंगे जिससे अस्त्पतालों में अनावश्यक भीड़ को कम किया जा सकेगा और गंभीर रोगों के इलाज के लिए रोगी अस्पताल पहुंचेंगे। कोरोना महामारी एक ऐसा संकट है जिसने चिकित्सा वैज्ञानिकों के साथ ही अन्य वैज्ञानिकों के समक्ष भी चुनौती खड़ी कर दी है जिससे विज्ञान के सभी क्षेत्रों में हमें बदलाव देखने को मिलेंगे।

मानसिक स्वास्थ्य बड़ा मुद्दा बनेगा और लोग इसके प्रति भी एकजुट होंगे। शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा बदलाव आया है, क्योंकि स्कूलों और विश्वविद्यालयों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वहां ई-लर्निंग का उदय हुआ है जहां बच्चों को डिजिटल माध्यम से पढ़ाया जा रहा है और इस तरह से शिक्षा और प्रौद्योगिकी का यह एकीकरण तेज हो जाएगा। अब लोगों को शारीरिक दूरी का ध्यान रखना ही होगा। शायद इसी तरह से जीना सीखना होगा। इसके लिए सार्वजनिक जगहों, बस, ट्रेन, ऑफिस, स्कूल, ऑडिटोरियम, सिनेमाहॉल आदि जगहों को नए ढंग से डिजाइन किया जाएगा।

सैनिकों और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए भी अब नए तरीके से सोचने का मौका मिलेगा। हर क्षेत्र में शोध तेजी से बढ़ेंगे। बढ़ती इंटरनेट पर निर्भरता हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालेगी तो मेंटल हेल्थ काउंसलर जैसे नए पद अनजाने नहीं होंगे। डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट की मांग तेजी से बढ़ेगी जिससे कई नए तरह के रोजगार का सृजन होगा। लेन-देन का जो तरीका नोटबंदी ने बदलना शुरू किया, उसका चरम देखने को मिल सकता है। आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन में बिजली, पानी समेत तमाम सुविधाओं के बिलों का ऑनलाइन भुगतान 73 प्रतिशत तक बढ़ा है। तमाम क्षेत्रों में डिजिटल की दखलंदाजी बढी है। मानव की सबसे खास बात ये है कि वो बहुत तेजी से सीखता है। यह आपदा भी एक ऐसा ही अवसर है जब आने वाला समाज आज से ज्यादा बेहतर होगा, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए।

[प्रोफेसर, लखनऊ विश्वविद्यालय]