क्षमा शर्मा। अंतत: सरकार ने किराये की कोख से संबंधित बिल लोकसभा में पास कर दिया। किराये की कोख या सरोगेसी के खिलाफ अरसे से मुहिम चलाई जा रही थी। लेखिका और पत्रकार पिंकी विरानी इसके खिलाफ अभियान चला रही थीं। उनका कहना था कि इस तरह से पैसे देकर मां बनना और किसी के लिए बच्चा पैदा करना गरीब औरतों के स्वास्थ्य के लिए बहुत खराब है। यह बात सच भी है। आखिर अरसे से हमारे देश में औरतों को बताया जाता रहा है कि अधिक बच्चे होने के क्या-क्या खतरे हैं, पर किराये की कोख के जरिये अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की चाहत साधनहीन औरतों में बहुत है। जिन जोड़ों को बच्चे चाहिए वे इनके जरिये बच्चे प्राप्त करते हैं। इनमें वे ही नहीं होते जिनके बच्चे नहीं हैं। कई बार जिनके बच्चे हैं भी वे भी इन माताओं की सेवा लेते हैं। जैसे कि शाहरुख खान या आमिर खान। जिन लोगों ने विवाह नहीं किया, लेकिन वे पिता का सुख उठाना चाहते हैं वे भी सरोगेसी के जरिये बच्चे पाते रहे हैं जैसे कि तुषार कपूर और करण जौहर।

इसके अलावा विदेशी लोग भी बड़ी संख्या में यहां सरोगेसी के जरिये माता-पिता बनने आते हैं, क्योंकि विदेशों में सरोगेसी बहुत महंगी है। हालांकि मां की भावनाओं को इस तरह व्यापार से जोड़ने से उसकी सार्थकता भी प्रश्न चिह्न् लगते हैं। एक बच्चा जो जन्म के बाद अपनी मां के वात्सल्य और स्पर्श को पहचानता है, गोद में उठाते ही चुप हो जाता है उसे पैदा होते ही किसी को सौंप दिया जाए, यह उसके प्रति अन्याय ही है। कई शोध बताते हैं कि जन्म के बाद मां का भावनात्मक सहारा बच्चे को न मिले तो उसकी भरपाई जीवन भर नहीं हो पाती। बुजुर्ग औरतें इस बात को परंपरा से जानती रही हैं। इसीलिए तो पैदा होते ही बच्चे को मां के दिल के पास सुलाया जाता है, क्योंकि इस धड़कन से उसका परिचय गर्भ के दौरान पुराना होता है और उसे अपनापन महसूस होता है, लेकिन पैसे के आगे इस भावना की परवाह भला किसे हैं। वे गरीब औरतें जिनके हितों के लिए कई संगठनों ने मुहिम चलाई वे ही सरकार द्वारा पारित बिल का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि इस तरह से उन्हें इतने पैसे मिल जाते थे कि उनका परिवार ठीक से चल सके, उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें, पर अब वे क्या करेंगी?

परंतु सरोगेसी के जरिये इन औरतों का कितना शोषण होता है, इस बात का पता शायद इन्हें नहीं है। इनका शरीर एक तरह से बच्चा उत्पादन की मशीन बन जाता है। जब तक बच्चे का जन्म नहीं होता, तब तक तो वह परिवार, जिसे बच्चा चाहिए, उनके खाने-पीने और स्वास्थ्य का खूब ध्यान रखता है, लेकिन बाद में उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। सरकार का ध्यान इन्हीं सब बातों पर गया। अब सरोगेसी से मां बनने और बच्चा प्राप्त करने के लिए बाकायदा कानून बना दिया गया है ताकि किसी गरीब औरत की कोख का व्यावसायिक इस्तेमाल न हो सके।

हालांकि अभी इस बिल को राज्यसभा से पास होना है, मगर इसके प्रावधान महत्वपूर्ण हैं। नए बिल के अनुसार जो जोड़ा इस तरह बच्चा चाहता है, उन्हें सरोगेट मां का नजदीकी रिश्तेदार होना चाहिए। माता-पिता बनने की चाहत रखने वाले जोड़े की शादी को कम से कम पांच साल होने चाहिए। इनका भारतीय नागरिक होना जरूरी है। पत्नी की उम्र 23-50 वर्ष और पति की उम्र 26-55 वर्ष होनी चाहिए। दोनों या कोई एक माता-पिता बनने में असमर्थ है, इसका प्रमाणपत्र भी चाहिए। इनका अपना, गोद लिया या सरोगेट बच्चा नहीं होना चाहिए। अगर बच्चा मानसिक रूप से ठीक नहीं है, किसी गंभीर बीमारी का शिकार है अथवा दिव्यांग है तो छूट मिल सकती है। किराये की कोख लेने से पहले ऐसी स्त्री का स्वास्थ्य बीमा कराना भी जरूरी है। इस बिल में यह भी बताया गया है कि कौन स्त्री अपनी कोख किराये पर दे सकती है? वह विवाहित हो और उसका अपना बच्चा हो। उसकी उम्र 25 से 35 के बीच हो और उसका कोई सरोगेट बच्चा न हो। उसके पास डॉक्टर का प्रमाण पत्र हो कि वह सरोगेसी के जरिये मां बन सकती है। सरोगेसी का व्यावसायिक इस्तेमाल करने पर कठोर दंड का प्रावधान भी किया गया है। कम से कम पांच साल की जेल और पांच लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है।

गुजरात सरोगेसी का हब माना जाता है। लोकसभा में जिस दिन यह बिल पारित किया गया उसी दिन एक खबर थी कि गुजरात में उन औरतों में मायूसी छा गई जो इस तरह से मां बनकर पैसे कमाना चाहती थीं। वे जोड़े भी परेशान नजर आए जो सरोगेसी से माता-पिता बनना चाहते थे।

(लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार एवं स्तंभकार हैं)