शराब पर व्यंग्य: लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में कदम लड़खड़ा जाएं तो परेशान न होना
इन दिनों किसी के चरण-स्पर्श करना तो दूर किसी से हाथ मिलाना भी अपने आप के लिए कोरोना को न्योता देने जैसा है।
[ सूर्यकुमार पांडेय ]: शराब की दुकान से दो बोतलें खरीदकर लौट रहे लतीचंद मुझसे टकराए और मेरे कुछ पूछने से पहले ही बोले, ‘जिस तरह कांटे को कांटे से ही निकालना पड़ता है उसी तरह देश की लड़खड़ाती हुई अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए यदि अपने कदमों को भी तनिक लड़खड़ाने दिया जाए तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।’ उनका यह कुतर्क सुनकर मैं चकित रह गया। इंसान अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए न जाने कैसे-कैसे तर्क तलाश लेता है। लतीचंद भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। उनका नाम तो रतीचंद है, पर अब हम सब उन्हें इसी नाम से जानते हैं। उन्हें भी इस नए नाम से गम नहीं।
लॉकडाउन के चलते कई हफ्तों बाद मिली दो बोतलें, ऐसा लग रहा जैसे कोरोना को जीत लिया
लॉकडाउन के चलते कई हफ्तों से वह अपना गला तर नहीं कर पा रहे थे। अब उनके मुखमंडल की खुशी देखते ही बन रही है। उन्हें दो बोतलों की प्राप्ति क्या हो गई, ऐसा लग रहा जैसे उन्होंने कोरोना की विकट जंग को जीत लिया है। उन्हें विश्वास है कि वह जैसे ही शाम को दो पैग अपने हलक के हवाले करेंगे, मुआ कोरोना इस धरती से छूमंतर हो जाएगा। आजकल लतीचंद आत्मनिर्भर भाव से लबरेज रहने लगे हैं।
शराब पीने वालों की लाल आंखें चीन देखेगा तो ऐसे भागेगा जैसे रेड जोन में युवक हो जाते हैं रफूचक्कर
वह मुझे समझाते हुए बोले, आपको एक नहीं, दो पते की बात बताता हूं। एक यह कि आप जैसे लोग तो एक पैग में ही आत्मनिर्भर महसूस करने लगेंगे और दूसरी यह कि कोरोना चीन से सारी दुनिया में फैला। चीन को टक्कर देने की विधि मैं बता रहा हूं। जो तोड़ अमेरिका के पास भी नहीं है, वह मेरे पास है। इस महामारी को अभी तक कोई लाल आंखें दिखलाकर चुनौती देने वाला नहीं मिल पाया है। अब देखिएगा, जब वह हम जैसे हजारों की लाल-लाल आंखें देखेगा तो ऐसे भागेगा जैसे रेड जोन में पुलिस की सख्ती को देखकर बेमतलब अपनी बाइक से फर्राटा भरते हुए युवक सड़कों से रफूचक्कर हो जाते हैं।
‘सूरज नदी में डूबा, मैं डूबा गिलास में’
उनका आत्मविश्वास देखकर मैं समझ गया कि ‘सूरज नदी में डूबा, मैं डूबा गिलास में’ जैसी पंक्तियों की लाज इन जैसों की वजह से ही बची हुई है। कुछ दिनों के लिए मदिरालय क्या बंद हुए उनके जैसे लोग, जो कभी शादी-बारात में नागिन डांस करने के लिए प्रसिद्ध हुआ करते थे, जल बिन मछली जैसा तड़पने लगे थे। लतीचंद ने इस तड़पन पर शिकायत करते हुए कहा कि सभी लोग आम जनता की चिंता में लगे हुए हैं, लेकिन जनता तो हम भी हैं।
कोरोना-संक्रमण फैलाने में तब्लीगी जमात की चर्चा खूब हुई पर शराबियों की किसी ने नहीं ली सुध
कोरोना-संक्रमण फैलाने में तब्लीगी जमात की चर्चा खूब हुई, पर पता नहीं क्यों हम जैसे तलबगारों की जमात की किसी ने सुध नहीं ली? खैर अब सुध ली है तो देखिए कि हमारी किस्मत की बोतल का ढक्कन भी खुल गया है और सरकारों के खजाने में भी खनखनाहट होने लगी है। मैं उनसे पीछा छुड़ाने की ही सोच रहा था कि एक और लतीचंद टकरा गए। उनके पास भी अपने मदिरा-प्रेम के समर्थन में नायाब कुतर्क थे।
शराब के दो घूंट भरे नहीं कि लोग हमसे फिजिकल डिस्टेंसिंग रखने में ही अपनी भलाई समझते हैं
मैंने कोरोना-काल में पालन किए जाने वाले सरकारी आदेशों-निर्देशों के अनुपालन की चर्चा की तो वह उल्टा पलटकर मुझे ही समझाने लग गए कि आपको पता ही नहीं है कि आज आप जो यह फिजिकल डिस्टेंसिंग की बात कर रहे हैं उसके लालन-पालन में हमारे जैसे हमप्याला भाई लोग बरसों से अपना संपूर्ण योगदान देते आ रहे हैं। इधर हमने दो घूंट भरे नहीं कि लोग हमसे दूरी रखने में ही अपनी भलाई समझते हैं। अब इसे ही हर कोई दो गज दूरी कह रहा है।...और यह मास्क पहनने का चलन तो अब शुरू हुआ है। हमें तो कभी इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि हमारे सामने आने वाले खुद-ब-खुद अपने मुंह पर रुमाल रख लेते हैं।
इन दिनों चरण-स्पर्श करना तो दूर, हाथ मिलाना भी कोरोना को न्योता देने जैसा है
लतीचंद के ऐसे अनोखे वाक्य सुनकर मैं अचंभित रह गया। मैं उनके चरण छूने ही वाला था कि मुझे सहसा स्मरण हो आया कि इन दिनों किसी के चरण-स्पर्श करना तो दूर, किसी से हाथ मिलाना भी अपने आप के लिए कोरोना को न्योता देने जैसा है। मैं तेजी से वहां से निकल लिया, लेकिन सामने एक और लतीचंद आते दिखे। गनीमत यह रही कि वह कुछ कहने-बताने के मूड में नहीं थे।
[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]