हर्ष वी पंत

भारत-चीन-भूटान सीमा पर भारतीय और चीनी सैन्य बलों में लगातार तनातनी बढ़ने की खबरों के बीच एक खबर यह भी है कि जापानी और अमेरिकी नौसेना भारत के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रही हैं। तीनों देशों की नौसेनाएं मालाबार श्रंखला के अभ्यास के लिए करीब दस दिनों के लिए एक दूसरे के साथ ताल मिलाएंगी। इस तरह के अभ्यास की शुरुआत 2007 में हुई थी। पहले यह अमेरिका और भारत के बीच ही हुआ करता था, लेकिन 2014 से जापान भी इसमें शामिल हो गया है। इस साल के मालाबार युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया ने भी बतौर पर्यवेक्षक शामिल होने की गुजारिश की थी, लेकिन भारत ने उसे खारिज कर दिया। हिंद प्रशांत क्षेत्र में शक्ति का बदलता संतुलन एक तरह से अमेरिका के घटते रसूख और चीन की लगातार बढ़ती ताकत को ही दर्शाता है। अधिकांश एशियाई देशों के लिए इसके व्यापक निहितार्थ हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के भविष्य पर अनिश्चितता का भाव हावी रहता है, लेकिन उसका बदलता रूप-स्वरूप सभी पर असर डालता है। एशियाई देशों के लिए शक्ति संतुलन में आ रहा मौजूदा बदलाव अंतरराष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति और स्वरूप को लेकर महज वैचारिक संघर्ष से नहीं, बल्कि कई पैमानों पर उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित जरूरतों की पेचीदगियों से भी जुड़ा है। भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया हिंद प्रशांत क्षेत्र में इस सामरिक बदलाव के केंद्र में हैं। दिल्ली और टोक्यो के बीच इस सामरिक जुड़ाव की जड़ें 2014 से तलाशी जा सकती हैं। भारत ने प्रशांत महासागर में अमेरिका नौसेना के साथ वार्षिक मालाबार अभ्यास में शामिल होने के लिए जापानी नौसेना को भी आमंत्रित किया। इससे भारत-अमेरिका-जापान की त्रिपक्षीय अभ्यास की पुरानी परंपरा फिर शुरू हुई। इससे पहले बंगाल की खाड़ी में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और जापान की नौसेनाओं के संयुक्त सैन्य अभ्यास पर चीन द्वारा आंखें तरेरने के बाद भारत के सुर नरम पड़ गए थे। चीन द्वारा इस पर नाखुशी जाहिर करने के बाद भारत ने 2008 से ऐसे अभ्यास से खुद को अलग कर लिया था।
मोदी सरकार के आने के बाद मालाबार अभ्यास में जापान की भागीदारी को संस्थागत रूप दे दिया गया। जापान और अमेरिका ने बार-बार अपनी यह इच्छा दर्शाई है कि वे मालाबार अभ्यास का दायरा बढ़ाना चाहते हैं। सितंबर, 2014 में मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने जिस विजन डॉक्यूमेंट यानी दृष्टिपत्र पर हस्ताक्षर किए उसके अनुसार दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास को नियमित बनाने के साथ ही भारत में जापान की भागीदारी को बढ़ाने की बात शामिल थी। जून, 2015 में होनोलुलू में हुई तीनों देशों की त्रिपक्षीय वार्ता के सातवें दौर के बाद मालाबार अभ्यास में टोक्यो के शामिल होने पर सहमति बनी और इसके साथ ही सहयोग के एक नए दौर की शुरुआत हुई।
भारत और जापान ने अमेरिका के साथ त्रिपक्षीय सामरिक संवाद साझेदारी की जो पहल की उसके तहत एशिया प्रशांत क्षेत्र में शक्ति के संतुलन के साथ-साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक सुरक्षा भी एक अहम पहलू है। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच भी ऐसा ही मंच बना हुआ है। मोदी के सत्ता संभालने के बाद एशिया में सुरक्षा के मोर्चे पर ऐसी तिकड़ी में न केवल नई जान आई है, बल्कि इसमें अन्य क्षेत्रीय ताकतों को भी शामिल कर इसका विस्तार किया जा रहा है। जून, 2015 में भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच नई दिल्ली में पहली उच्चस्तरीय बैठक हुई। इस त्रिपक्षीय पहल में एशिया प्रशांत क्षेत्र के सक्षम लोकतांत्रिक देशों की चौकड़ी बनने की भरपूर क्षमता है। इस संभावित साझेदारी की बुनियाद 2004 के अंत में रखी गई थी जब हिंद महासागर क्षेत्र में आई प्रलयंकारी सुनामी के बाद राहत एवं बचाव अभियान में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं ने कंधे के कंधा मिलाकर काम किया था। खासतौर से जापान ऐसी किसी भी साझेदारी का सबसे मुखर पैरोकार रहा है। 2007 में बतौर प्रधानमंत्री एबे ने एशिया के लोकतांत्रिक देशों से साथ आने का आह्वान किया था। अमेरिका ने भी पूरे जोशोखरोश से इसका समर्थन किया। इस पहल की परिणति यह हुई कि सितंबर, 2007 में इन सभी पांच देशों की नौसेना ने मालाबार-07-02 कूटनाम से बंगाल की खाड़ी में अपने संयुक्त अभ्यास को अंजाम दिया। हालांकि ऐसी लामबंदी पर खिसियाए चीन ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए नई दिल्ली और कैनबरा से इसकी शिकायत की। इस पर भारत और ऑस्ट्रेलिया ने सोचा कि चीन को उकसाने में कोई समझदारी नहीं और वे इससे पीछे हट गए जिससे यह समूची पहल ही पटरी से उतर गई। अब जब चीन इस क्षेत्र में और ज्यादा आक्रामक होता जा रहा है तब ऐसे संकेत नजर आ रहे हैं कि ऑस्ट्रेलिया को यह विचार फिर से लुभा सकता है।
सामुद्रिक सुरक्षा के मोर्चे पर चीन की आक्रामकता और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आवाजाही की आजादी को लेकर भारत और ऑस्ट्रेलिया चिंतित हैं। इन साझा चिंताओं के चलते दोनों देशों के बीच व्यापक नौसैन्य सहयोग की जरूरत और ज्यादा बढ़ी है और दोनों देशों ने संयुक्त नौसैन्य अभ्यास शुरू भी कर दिया है। मोदी के ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान एक सुरक्षा ढांचा समझौते पर हस्ताक्षर हुए जो हिंद महासागर क्षेत्र में रक्षा सहयोग की अहमियत को और अधिक रेखांकित करता है। भारत और ऑस्ट्रेलिया हिंद महासागर क्षेत्र की महत्वपूर्ण शक्ति हैं। दोनों देश हिंद महासागर के तटवर्ती देशों के पूर्व संगठन हिंद महासागर क्षेत्रीय संघ यानी आइओआरए में भी साथ रह चुके हैं। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया हिंद महासागर क्षेत्र में ओशन नेवल सिंपोजियम का भी स्थाई सदस्य है जो हिंद महासागर क्षेत्र की स्थानीय नौसेनाओं को साथ लाता है। हिंद महासागर क्षेत्र में उनके क्षेत्रीय सहयोग के दायरे को जापान और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ उनकी वार्षिक त्रिपक्षीय वार्ताओं से भी समझा जा सकता है।
इस वक्त की जरूरत यही है कि समान सोच वाले देश अपनी सहभागिता सक्रियता बढ़ाएं। अमेरिका और जापान के साथ ही ऑस्ट्रेलिया भी मालाबार अभ्यास में शामिल होने के लिए टकटकी लगाए हुए है। भारत को ऑस्ट्रेलिया के इस अनुरोध पर उदारतापूर्वक विचार करना चाहिए, क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की लोकतांत्रिक चौकड़ी को जल्द से जल्द नए सिरे से खड़ा करने की जरूरत है।
[ लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हैं ]