प्रेमपाल शर्मा। आखिरकार केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को यह स्वीकार करना पड़ा कि मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए हुई राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट-यूजी में कुछ गड़बड़ी हुई है। फिलहाल गड़बड़ी की व्यापकता का पता चलना शेष है, लेकिन नीट में अनियमितता का मामला नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए के लिए बहुत ही शर्म की बात है।

वर्ष 2017 में इस एजेंसी का गठन इसीलिए हुआ था कि देश भर में मेडिकल, इंजीनियरिंग, कानून तथा अन्य शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षाओं को इस तरह व्यवस्थागत किया जाए कि उनमें गड़बड़ी की आशंका न रहे और लाखों-करोड़ों युवा अपनी मेधा के बूते आगे बढ़ें। हमारे देश में जिस तरह अनैतिकता फैल चुकी है, उसे देखते हुए साफ-सुथरी प्रवेश या फिर प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन एक बड़ी चुनौती बन गया है। देश के ज्यादातर राज्यों में स्कूली स्तर से लेकर विश्वविद्यालय के शोध पत्रों तक में नकल के मामले खुलेआम सामने आते हैं।

मेडिकल कालेजों में नामांकन के लिए देश के 20 लाख से अधिक युवा रात-दिन मेहनत करके तैयारी करते हैं। कई बार पढ़ाई के तनाव में वे डिप्रेशन के भी शिकार हो जाते हैं और कुछ आत्महत्या तक कर लेते हैं। इस तरह की खबरें आए दिन हमें पढ़ने को मिलती हैं। इस दौरान उनके अभिभावक भी कई समस्याओं से गुजरते हैं, विशेषकर गरीब अभिभावक। अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए वे एक यकीन के साथ उनके समर्थन में खड़े रहते हैं।

ऐसे में जब पेपर लीक होने या फिर परिणाम में धांधली की कोई खबर आती है तो उन्हें कितनी गहरी निराशा और पीड़ा होती होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इस बार नीट-यूजी में कहीं केंद्र बदले गए, कहीं समय का ध्यान नहीं रखा गया और अंत में पेपर लीक होने की भी बात सामने आई। इसी के साथ ग्रेस मार्क्स देने का मामला भी सामने आया। यह किसी के लिए समझना कठिन था कि ग्रेस मार्क्स किस आधार पर दिए गए? जब एनटीए ग्रेस मार्क्स देने के अपने तर्कों का बचाव नहीं कर सका तो फिर उन्हें रद कर दिया गया।

देश में वर्षों से प्रवेश और प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं। इनमें शामिल लोग पकड़े भी जाते हैं, लेकिन सवाल यह है कि उसके बाद क्या होता है? क्या उनको ऐसी सजा मिलती है, जो एक नजीर बन सके? सिर्फ परीक्षा कराने में शामिल एजेंसियों का लाइसेंस रद करना या फिर सरकारी कर्मचारियों को निलंबित करना ही पर्याप्त नहीं है। वे तो इस धंधे में संलिप्त होकर पहले ही करोड़ों रुपये कमा चुके होते हैं और छोटे-मोटे दंड के लिए भी मानसिक रूप से तैयार रहते होंगे।

उनको गिरफ्तार करके उन्हें जेल में बंद कर उनके साथ अपराधियों की तरह पेश आना चाहिए, भले ही हमारे लिबरल और उनके पोषक-प्रोत्साहक कुछ भी कहते रहें। इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि देश में कुछ गिरोह दशकों से इसी काम में लगे हुए हैं। वे कभी पुलिस, कभी शिक्षक, क्लर्क आदि की भर्ती के लिए होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में धांधली के लिए सक्रिय होते हैं, तो कभी अन्य संस्थाओं में दाखिले के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं में। हर परीक्षा उनके लिए भ्रष्टाचार और बेईमानी का एक मौका है। ऐसा नहीं है कि सरकारें इस समस्या से अनजान हैं और हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं।

पिछले दिनों सरकार के स्तर पर परीक्षाओं में कदाचार को लेकर खूब चर्चा हुई। इसे रोकने और परीक्षाओं को पारदर्शिता के साथ संपन्न कराने के लिए संसद में एक बिल भी लाने की तैयारी चल रही है। अब इसमें देरी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि बार-बार ऐसी खबरों से पूरे देश का मनोबल टूट जाता है। हारकर मेधावी युवा डाक्टरी से लेकर इंजीनियरिंग और अन्य विषयों की शिक्षा के लिए भी विदेश की तरफ देखने को मजबूर हो रहे हैं। हर साल देश के 10-12 लाख बच्चों का विदेश में शिक्षा के लिए पलायन हमारे लिए चेतावनी है। इससे न सिर्फ देश का बहुत सारा पैसा बाहर जा रहा है, बल्कि प्रतिभाओं से भी हम हाथ धो रहे हैं।

चंद्रमा से लेकर सूर्य मिशन तक संचालित करने वाले हमारे देश के लिए बिना किसी गड़बड़ी के परीक्षाएं कराना असंभव नहीं होना चाहिए। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) हर साल करीब 12 लाख परीक्षार्थियों की परीक्षा आयोजित करता है। रेलवे ने तो एक-एक करोड़ परीक्षार्थियों की परीक्षा ली है। आखिर एनटीए इनसे सबक क्यों नहीं सीखती? एक सवाल यह भी है कि क्या देश की हर समस्या का समाधान न्यायपालिका खासकर सुप्रीम कोर्ट ही निकालेगा? जब नीट-यूजी में हुई गड़बड़ी को लेकर लोगों ने शिकायत की तो कार्यपालिका और उसकी संस्थाओं ने पहले चुप्पी क्यों साध ली? राहत के लिए लोगों को सुप्रीम कोर्ट जाने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी?

इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार को अपने तीसरे कार्यकाल में सख्ती से कार्यपालिका और नौकरशाही को दुरुस्त करना होगा। क्या शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारी संस्थाओं की शोभा बढ़ाने और वेतन एवं पेंशन आदि सुविधाओं की हकदारी के लिए ही हैं?

सरकार को चाहिए कि वह इन नकली सेवकों को भी कुछ सबक सिखाए। यदि नौकरशाही ठीक से काम करे तो ऐसा कोई कारण नहीं कि हर क्षेत्र में व्यवस्थागत सुधार न हो सके, लेकिन उससे पहले राजनीतिक सत्ता को भी अपने चाल-चलन को बदलना होगा। नीट-यूजी में गड़बड़ी को मोदी सरकार को एक खतरे की घंटी के रूप मे लेने की जरूरत है। इस सरकार की प्रतिष्ठा बड़े और ठोस शिक्षा सुधारों से ही वापस लौट सकती है। ऐसे सुधारों में अब विलंब नहीं किया जाना चाहिए।

(भारत सरकार में संयुक्त सचिव रहे लेखक शिक्षाविद् हैं)