style="text-align: justify;">व्यायाम के बगैर शरीर पुष्ट नहीं होता। ठीक उसी तरह मन के कार्यों को उचित तरह से संपन्न करने के लिए कुछ न कुछ मानसिक व्यायाम भी आवश्यक है। जिस मानव में दानव सरीखी शारीरिक शक्ति हो और उसके मन का स्वरूप विकसित न हो तो उसे पूर्ण मनुष्य नहीं कहा जा सकता। क्या आपके मन में नकारात्मक और अशालीन विचार उत्पन्न होते हैं? ऐसे विचारों को दूर करने के लिए अंत: करण शुद्ध करें। मन का एक दोष उसका अत्यधिक चंचल होना है। रंगबिरंगी तितली की भांति उसका एक फूल से दूसरे फूल तक मंडराना गलत है। कोई तत्व, विशेष विचार या भावना को ले लीजिए वह विचार या भावना भले ही शुष्क क्यों न हो, उस पर मन की समग्र वृत्तियों को एकाग्र कर दें। मन कुछ समय उपरांत भागेगा, आप संयम द्वारा उसे बांधे रहिए। विचलित न होइए। इस क्रिया को विभिन्न वस्तुओं, विचारों और भावनाओं के संदर्भ में लागू करने पर मन में स्थिरता व दृढ़ता आती है।
मनन ही मन का सर्वश्रेष्ठ व्यायाम है। आप जिस बात को लें, उसी में कुछ समय के लिए जुट जाएं। आप सारे दिन किस प्रकार के विचारों का चिंतन करते हैं? किन-किन विभिन्न वृत्तियों व भावनाओं में दिन गुजारते हैं? अपने मन के दृष्टा बनकर पूर्ण परीक्षा करें। इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बात यह है कि मन में शुभ विचारों के उत्पन्न होने पर द्वेष, घृणा, ईष्र्या आदि नकारात्मक विचार उत्पन्न ही नहीं होते। जो मनुष्य अपने मन में नकारात्मक विचारों को स्थान देता है, उसके व्यक्तित्व में भी नकारात्मक बातों का समावेश हो जाता है। मन को निरोग बनाने के लिए ईश्वर पर आस्था रखें और सकारात्मक विचारों को मन में स्थान दें। इस बात को महसूस करें कि आपके मन का प्रत्येक अणु ईश्वरीय तत्व से अनुप्राणित है। अंतर्मन में ईश्वर की अनुभूति करें। सच तो यह है कि मन को एकाग्र किए बगैर किसी प्रकार का अभ्यास उत्तम विधान से संपन्न नहीं होता। अध्ययन, मनन या साधना के समय अगर मन को दृढ़ता से एकाग्र न किया जाए तो उसका फल प्राप्त ही नहीं होता। अशुभ चिंतन मानसिक दुर्बलता का प्रतीक है। इससे मन की कार्य करने वाली शक्तियां विनष्ट होती हैं, मनुष्य का उत्साह क्षीण होता है, आशावादिता नष्ट होती है और वह कोई भी उत्कृष्ट कार्य संपन्न नहीं कर पाता।
[ श्रीमती रमन त्रिपाठी ]