डा विनोद चन्द्रा। Coronavirus: हाल के दशकों में अधिकांश लोगों में नागरिक व्यवहार के प्रति उदासीनता सी दिखाई पड़ती हैं। उदाहरण के लिए सार्वजनिक स्थानों को सामान्यजन अपने उपयोग में तो लाते हैं परंतु उसके रखरखाव व स्वच्छता के बारे मे कोई नागरिक कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते है।

इस्तेमाल किये हुए पैकेट इत्यादि बिना सोचे कहीं भी फेंकना : पार्क हो, पर्यटन स्थल हो, या सभी के प्रयोग में लायी जाने वाली सड़कें, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन व एयरपोर्ट हो - सभी स्थलों पर नागरिक व्यवहार में कमी दिखाई पड़ती है और लोग इस्तेमाल किये हुए कागज, पेपर नैपकिन, बिस्कुट-दालमोठ-चिप्स के लिफाफे, गुटका-तम्बाकू के इस्तेमाल किये हुए पैकेट इत्यादि बिना सोचे कहीं भी फेंक देते है। युवक-युवतियां पर्यटन स्थलो पर अपने प्रेम का इज़हार दीवारों पर आसानी से कर देते है। यह सब करते समय उन्हें अपने नागरिक धर्म का बोध नहीं रहता है।

नागरिक धर्म की तिलांजलि : पिछले कुछ दशकों में नागरिक असहयोग दिखाने के दौरान नागरिक धर्म को भूल कर लोग सार्वजनिक इमारतों व प्रदेश सरकार की सम्पत्तियों को नष्ट करने का तरीका अपनाने लगे है। महात्मा गाँधी द्वारा बताये गए नागरिक असहयोग का यह तरीका तो नही था। लोगों ने अपने विरोध व अभिव्यक्ति प्रदर्शन के तरीके में नागरिक धर्म की तिलांजलि दे दी है।

नीतिगत फैसलों का विरोध प्रदर्शन : अभी हाल में पूरे भारत मे सरकार द्वारा लिए गए कुछ नीतिगत फैसलों का विरोध प्रदर्शन हुआ। उस प्रदर्शन मे यह देखने मे आया कि सार्वजनिक स्थलों, इमारतों व संपत्तियों को प्रदर्शनकारियो ने नुकसान पहुंचाया। राज्य ने इस प्रतिशोध को अपने तरीके से निपटाया।परन्तु आज मौलिक प्रश्न यह है कि जनसामान्य में नागरिक व्यवहार मे यह कमी क्यों आई? अभी भारत मे चल रहे लॉकडाउन की परिस्थिति में लोगो से जिस प्रकार के व्यवहार अपेक्षित है वे वैसा व्यवहार नही कर रहे है।

क्या नागरिक धर्म की अवहेलना नहीं? : भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जारी की गयी अपील को कुछ भारतीय नागरिक गंभीरता से न ले कर जब मौका मिल जाए नजरअंदाज कर दे रहे है। सामाजिक दूरी बनाये रखने की अपील पर सभी नागरिको को अमल करना चाहिए परन्तु अक्सर यह देखने में आता है कि लोग सड़कों पर, बाजार मे सामान लाने के बहाने सामाजिक दूरी बनाये रखने के नियम का उल्लंघन कर रहे है। क्या यह नागरिक धर्म की अवहेलना नही? लोग किसी भी जाति, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय से जुड़े हो अथवा किसी भी राजनितिक विचारधारा के हो, हैं तो वे भारत के नागरिक ही। यदि वे पहले अपने को भारतीय नागरिक माने तो उन्हें नागरिक धर्म का पालन अनुशासन से करना चाहिए। उन्हें याद रखना होगा कि उन्हें विरोध- प्रदर्शन का अधिकार नागरिक होने की वजह से ही मिला है।

नागरिक व्यवहार की सीख का पाठ व्यक्ति को बचपन से लेकर युवाकाल मे सबसे अधिक मिलता है। भारत मे यदि देखा जाय तो ब्रिटेन से आयातित शिक्षा-प्रणाली मे बालक को भविष्य के नागरिक के रूप में देखा गया और उसे समाज मे एक ऐसे वयस्क के रूप मे बदलने के उद्देश्य से विद्यालयी शिक्षा में प्रवेश दिलाया गया जो उसे तकनीक-प्रशिक्षित-उत्पादनशील नागरिक में बदल सके। इस पूरी प्रक्रिया मे उसे वर्तमान नागरिक के रूप में नही देखा गया और इसीलिए नागरिक व्यवहार से जुड़े कर्तव्यों तथा दायित्वों की सीख का पाठ कहीं पीछे छूट गया।

आधुनिकीकरण तथा प्रतिस्पर्धा के दौर मे भारतीय परिवार व समुदाय भी घरों में अनौपचारिक शिक्षा में नागरिक व्यवहारों के तत्वों को कम करते गए और परिवार में बालक अथवा युवा अपने अग्रजों व परिजनों से केवल तकनीकी प्रशिक्षण व प्रयोग का ज्ञान हासिल करने मे लगा रहा। वह करियर निर्माण की योजना व उसके लिए प्रयत्न करना सीखता रहा। इस दौड़ में नागरिक व्यवहार की शिक्षा का महत्व परिवारों मे पीछे छूट गया। व्यक्ति सर्वप्रथम अपने लिए, फिर अपने परिवार के लिए, और बहुत हुआ तो अपने नजदीकी स्वजनों के लिए ही सोचना सीखता रहा। उसके व्यवहार मे राज्य व समाज के लिए कर्तव्य कहीं गौण होते गए।

इस परिस्थिति मे यह आवश्यक हो गया की सभी लोगों को नागरिक कर्तव्यों का बोध हो और वे उसे अमल में लाएं। खासतौर पर इस आपदा की स्थिति मे नागरिक धर्म सर्वोपरि होना चाहिए और इसके लिए सभी को मिल कर सोचना होगा।

अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग श्री जयनारायण मिश्र पोस्ट ग्रेजुएट कालेज, लखनऊ

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