नई दिल्ली [ बलबीर पुंज ]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जबसे केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी है तबसे कुछ विपक्षी दलों द्वारा समय-समय पर कुछ बेजा नारे उछाले जा रहे हैं। मसलन देश में असहिष्णुता बढ़ गई है, संविधान खतरे में है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा मंडरा रहा है, मौलिक अधिकारों को कुचला जा रहा है, मुस्लिम और दलित अत्याचार के शिकार हो रहे हैं- जैसे जुमलों का निरंतर योग हो रहा है। ऐसे आरोप लगाने वाले आखिर देश में किस आदर्श समाज की कल्पना करते हैं? इसका खुलासा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी माकपा की केरल इकाई के सचिव और पोलित ब्यूरो सदस्य बालाकृष्णन कोडियारी के हालिया वक्तव्यों और कुछ अन्य घटनाओं से हो जाता है। केरल में माकपा अलपुझा जिला समिति की बैठक में कोडियारी ने कहा, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने चीन पर चौतरफा प्रहार के लिए गुट बनाया है। यही नहीं, उन्होंने क्रूर तानाशाह किम जोंग-उन द्वारा शासित साम्यवादी देश उत्तर कोरिया का समर्थन भी किया। कोडियारी से पहले कोङिाकोड में केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन भी उत्तर कोरिया की प्रशंसा करते हुए उसे चीन से बेहतर बता चुके हैं। दिसंबर में माकपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा किम जोंग-उन की तस्वीरों वाले पोस्टर लगाने का मामला भी सामने आया था।

चीन से युद्ध के दौरान देश के वामपंथी चीन के समर्थन में थे

वामपंथियों का चीन और उत्तर कोरिया के प्रति निष्ठा का बड़ा कारण वह समान वैचारिक चिंतन है जिसकी अवधारणा में अधिनायकवाद, मानवाधिकारों का हनन और विरोधियों की निर्मम हत्या निहित है। समरूपी विचारधारा के कारण ही 1962 में चीन से युद्ध के दौरान देश के वामपंथी चीन के समर्थन में थे। वर्ष 2017 में जब डोकलाम में भारत और चीन की सेना आमने-सामने थी तब भी वामपंथी खेमा चीनी हित को अधिकाथमिकता देता दिख रहा था।

 

साम्यवादी देशों के लिए राष्ट्रहितों की अनदेखी

भारतीय मार्क्सवादी जिन साम्यवादी देशों के लिए राष्ट्रहितों की अनदेखी करते हैं, आखिर उनकी वास्तविकता क्या है? साम्राज्यवादी चीन में एक ऐसी विकृत व्यवस्था है जहां की राजनीति में हिंसक मार्क्सवादी अधिनायकवाद का प्रभुत्व है तो उसकी अर्थव्यवस्था पूंजीवाद के मकड़जाल में फंसी है। इसी खतरनाक कॉकटेल के कारण ही उसने अपनी आर्थिक समृद्धि, महानगरों में गगनचुंबी इमारतें, आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से लैस विशाल सेना आदि का तानाबाना बुना है। चीन की चकाचौंध भी किसी छलावे से कम नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में प्रतिदिन 750 से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं जिनमें शासन द्वारा उत्पीड़ित वर्ग की बड़ी संख्या है।

चीन में मानवाधिकार रसातल में हैं

चीन में मानवाधिकार रसातल में हैं और मौजूदा राष्ट्रपति शी चिनफिंग के शासन में तो उनकी और बुरी गत हुई है। हाल में चीनी वकील जियांग तियानयोंग को दो वर्ष कैद की सजा इसलिए दे दी गई, क्योंकि उन्होंने सरकार विरोधियों का मुकदमा लड़ने की चेष्टा की थी। चीन की मार्क्सवादी सरकार मानवाधिकार रक्षकों, शिक्षकों और स्वतंत्र लेखकों को भी निरंतर प्रताड़ित कर रही है। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी के अनुसार, 2016 में दुनिया में मृत्युदंड के 1,032 मामले सामने आए जिनमें चीन के आंकड़े शामिल नहीं हैं, क्योंकि चीन की सरकार इसे गुप्त रखती है। एमनेस्टी के अनुसार मृत्युदंड के मामले में चीन-ईरान, पाकिस्तान, सऊदी अरब, इराक, सोमालिया और मिस्न जैसे इस्लामी देशों से भी काफी आगे है। दुई हुआ नामक मानवाधिकार समूह के अनुसार, वर्ष 2016 में चीन में लगभग 2,000 लोगों को फांसी दी गई थी।

चीन में धार्मिक स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है

चीन में धार्मिक स्वतंत्रता का भी गला घोंटा जा रहा है। जहां तिब्बत में सांस्कृतिक और भाषाई विरासत का दमनचक्र पहले से ही अपने चरम पर है, वहीं शिनजियांगांत में उइगर मुस्लिमों को कुरान पढ़ने, रोजा रखने, दाढ़ी बढ़ाने और बुर्का पहनने आदि पर सरकारी निषेध है। अवैध निर्माण के नाम पर कई मस्जिदों को भी ढहा दिया गया है। हाल में चीन ने मजहबी कट्टरता पर अंकुश लगाने हेतु गंसूांत के मुस्लिम बहुल लिंक्सिया काउंटी में स्कूली बच्चों के किसी भी तरह के मजहबी कार्यक्रम में भाग लेने पर रोक लगा दी। इससे पहले वेनझाउ के दक्षिण-पूर्व शहर में एक स्कूल को सरकार ने इसलिए बंद कर दिया था, क्योंकि उसमें ईसाई बच्चों की जनसंख्या अधिक हो गई थी। यही नहीं, उत्तरी चीन के शांक्सीत में एक चर्च को भी सरकारी आदेश पर जमींदोज कर दिया गया था। मई 2014 के बाद से भारत में अब तक सामने आए कुछ अपवादों को असहिष्णुता और मानवाधिकारों पर आघात की संज्ञा देकर वामपंथी दुनिया में भारत को कलंकित करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। चीनी सरकार द्वारा उपरोक्त तिबंध और अत्याचारों पर भारतीय वामपंथियों की चुप्पी का अर्थ क्या है?

उत्तर कोरिया दमनकारी और अधिनायकवादी देश है

साम्यवादी और परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया विश्व के सबसे दमनकारी और अधिनायकवादी देशों में से एक है जहां किम परिवार का बीते सात दशकों से शासन है। पूर्ववर्तियों की भांति तानाशाह किम जोंग-उन के दौर में भी राजनीतिक दमन, यौन हिंसा, सार्वजनिक मृत्युदंड, श्रम उत्पीड़न, यात्र पर प्रतिबंध और मजहबी संपर्क पर निषेध- शासन व्यवस्था के मुख अंग हैं। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2014 में एक वर्ष की पड़ताल के बाद उत्तर कोरिया में वामपंथियों की बर्बरता को विश्व के समक्ष रखा। रिपोर्ट तैयार करते समय जांच समिति को ऐसी कई महिलाएं मिली जिन्हें अपने बच्चों को मौत के घाट उतारने के लिए विवश किया गया था। 1975-1979 के कंबोडियाई नरसंहार के बाद कोई संदेह नहीं रह जाता कि वामपंथियों के लिए मानव-जीवन और उसके सभी मूल अधिकार गौण हैं। इस कालखंड में पोल पोट की क्रांति ने लाखों राजनीतिक और वैचारिक विरोधियों को मार दिया था। लेनिनवाद, स्टालिनवाद और माओवाद सेेरित इस खूनी क्रांति में सामूहिक फांसी, निर्मम हत्या, श्रम यातना सहित कुपोषण और भयंकर बीमारियों के कारण 25 तिशत कंबोडियाई आबादी (20-30 लाख) समाप्त हो गई थी। वर्ष 2009 तक लगभग 24 हजार सामूहिक कब्रें भी मिल चुकी थीं।

 मार्क्सवादी सांस्कृतिक क्रांति लहू से सिंचित है

वर्गभेद मिटाने के लिए वामपंथी जिस मार्क्सवादी सांस्कृतिक क्रांति का यशगान करते हैं, वह वास्तव में वैचारिक विरोधियों के लहू से सिंचित है। केरल में आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ताओं की निरंतर होती निर्मम हत्या-इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। इतिहास साक्षी है कि विश्व के जिस भूभाग में मार्क्सवादी व्यवस्था स्थापित हुई, वहां हिंसा को ही वैचारिक पोषण का माध्यम बनाया गया। इस रुग्ण प्रदर्शन में एक नेता और एक ही विचार पर विश्वास रखने का सिद्धांत है। जो असहमत हैं, उन्हें मत रखने की स्वतंत्रता तो दूर सर्वहारा हित के नाम पर जीने के अधिकार से भी वंचित कर दिया जाता है। भारतीय वामपंथियों की विशेषता है कि सत्ता से बाहर वे लोक-अधिकारों, अभिव्यक्ति, प्रजातंत्र और संविधान की बात करते है, किंतु सत्ता में आने के बाद उन्ही मूल्यों की अविलंब हत्या कर देते है। वर्ष 1975 में आपातकाल का आरंभिक समर्थन और पश्चिम बंगाल में 34 वषों (1977-2011) के वामपंथी शासनकाल में राजनीतिक विरोधियों का दमन और मानवाधिकारों को कुचलना इसका प्रमाण है।

 

[ लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं स्तंभकार हैं ]