नई दिल्ली, [अवधेश कुमार]। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एक ही साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान से अपील कर रही हैं कि जम्मू-कश्मीर को जंग का अखाड़ा मत बनाइए। उन्होंने कहा है कि सीमा पर खून की होली चल रही है। पहली नजर में ऐसा लगता है कि महबूबा मुफ्ती भावुक होकर ऐसी अपील कर रही हैं जिनके पीछे खून-खराबा का अंत और शांति स्थापित करने की मानवीय कामना है। देश का एक-एक व्यक्ति चाहेगा कि जम्मू-कश्मीर के अंदर एवं उससे लगी नियंत्रण रेखा एवं अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शांति स्थापित हो, लेकिन क्या यह एकपक्षीय तरीक से संभव है? अगर भारत के चाहने से यह संभव होता तो कब का हो चुका होता। जम्मू-कश्मीर के लोग आज शांति और अमन की जिंदगी जी रहे होते तथा भारत और पाकिस्तान दोस्ती की मिसाल होते। ऐसा नहीं हुआ तो उसमें भारत कहीं भी कारण नहीं है। यहीं पर महबूबा की अपील पर प्रश्न खड़ा हो जाता है?

वह जम्मू-कश्मीर प्रदेश की मुख्यमंत्री हैं। इस नाते उनको प्रदेश के अंदर तथा सीमा पर जो कुछ हो रहा है उसका और उसके पीछे की ताकतों के बारे में पूरा सच पता है। बावजूद इसके यदि वह एक ही सांस में भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान का नाम लेती हैं तो इसे क्या कहा जा सकता है? क्या अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम का उल्लंघन भारत कर रहा है? अगर नहीं तो फिर भारतीय प्रधानमंत्री से अपील क्यों? यह प्रश्न इसलिए बनता है, क्योंकि 19 जनवरी से बिना किसी उकसावे के जिस तरह पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी हुई है और वह भी रिहायशी इलाके में वर्तमान समस्या उससे पैदा हुई है। स्वयं जम्मू-कश्मीर पुलिस का बयान है कि अखनूर से लेकर आरएस पुरा तक पाकिस्तानी रेंजर्स ने बिना किसी कारण के अंधाधुंध गोलाबारी कर भारतीय नागरिकों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है। रिहायशी इलाकों में की गई अंधाधुंध गोलाबारी में कई मवेशी भी मारे गए हैं। आज का सच यह है कि जम्मू के सीमावर्ती इलाकों में अनेक गांव सुनसान हो गए हैं।

लोगों को उनकी बस्तियों से निकालकर सुरक्षित जगह पहुंचाना भी इस समय एक चुनौती बन गया है। अपने स्थाई वास से किसी के लिए अचानक पलायन करना कितना कठिन हो सकता है इसका अनुमान आप स्वत: लगा सकते हैं वह भी सीमा पार से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी के बीच। प्रशासन ने जम्मू क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा से लगे इलाकों में 300 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया है। यह नौबत क्यों आई है? साफ है कि समस्या हमारी ओर से है ही नहीं। जो कुछ है वह पाकिस्तान की ओर से है।

इसमें यदि महबूबा मुफ्ती एक साथ भारत के प्रधानमंत्री एवं पाकिस्तान का नाम लेती हैं तो उनके इरादे पर संदेह होना स्वाभाविक है। अगर इसकी जगह वह पाकिस्तान को दुत्कारतीं तो व्यावहारिक होता। यदि वह पाकिस्तान को ललकारते हुए कहतीं कि आप इस तरह बिना उकसावे के हमारी ओर गोलीबारी करेंगे तो फिर हमें भी आपको आपकी भाषा में जवाब देने को मजबूर होना पड़ेगा तो उनको पूरे भारत का समर्थन मिलता। इसके विपरीत महबूबा के बयान से ऐसी ध्वनि निकलती है मानो इसमें भारत भी पाकिस्तान की तरह बराबर का हिस्सेदार है। मोदी विकास की बात अवश्य करते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई हम पर गोलीबारी करे और हम उसको जवाब में केवल फूल भेजें।

क्या महबूबा यह नहीं जानतीं कि पाकिस्तान ने पिछले वर्ष 860 बार युद्धविराम का उल्लंघन किया? कोई देश इतनी बड़ी संख्या में युद्धविराम का उल्लंघन करे यानी बिना उकसावे के गोलीबारी करे तो फिर उसके साथ दोस्ती का पुल कैसे बन सकता है जिसकी अपील महबूबा कर रही हैं। हमारे प्रधानमंत्री ने तो अपने शपथग्रहण समारोह में ही दक्षिण एशिया के सारे नेताओं को आमंत्रित कर शुरुआत ही दोस्ती के पैगाम से किया था। क्या हुआ उसका परिणाम? बिना पूर्व कार्यक्रम के केवल तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्म दिवस पर लाहौर चले गए और उनके घर पर बैठकर बातचीत की, उनकी मां के चरण छुए। इससे ज्यादा दोस्ती का पुल बनाने के लिए कोई कर सकता है? लेकिन जवाब में जब उड़ी होगा, पठानकोट होगा, गुरुदासपुर होगा तो दोस्ती का पुल नहीं बन सकता। इससे तो बने बनाए पुल ढह जाएंगे। वही हुआ है।

महबूबा को समझना होगा कि भारत पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और हिंसावाद से पीड़ित होकर मजबूरी में हिंसक जवाब देता है। आप यदि आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के लिए शिविर सहित सारी सुविधाएं देंगे, उनको घुसपैठ कराने के लिए गोलीबारी करेंगे तो ऐसी कार्रवाई करनी होगी। यह अपनी रक्षा के लिए हिंसक होना है। पाकिस्तान ने भारत के पास तीन ही विकल्प छोड़ा है या तो आप आतंकवादियों एवं उनकी सेना, रेंजर की मार ङोलिए या फिर इनका हिंसक प्रतिकार करिए या उनके होने वाले हमले का पूर्वानुमान कर उसे रोकने के लिए कार्रवाई कर दीजिए। इसमें दोस्ती का विकल्प है ही नही। यही भारत कर रहा है। अभी ही भारत ने पाकिस्तानी गोलीबारी का माकूल जवाब दिया है।

अब तक भारत द्वारा पाकिस्तान के सात जवानों को मार गिराने, अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे पाकिस्तान की चार सीमा चौकियों को तबाह करने तथा वहां की सेना का एक पेट्रोलियम डिपो नष्ट करने की सूचना है। अगर पाकिस्तान अपनी हरकत से बाज नहीं आता तो ऐसी कार्रवाई हमें और करनी पड़ेगी। ऐसी स्थिति में मेहबूबा की यह अपील हर दृष्टि से केवल अस्वीकार्य ही नहीं है, आपत्तिजनक भी है। हिंसा और अशांति पैदा करने के मामले में पाकिस्तान एक विकृत मानसिकता वाले खलनायक की तरह है जिससे आज की स्थिति में दोस्ती संभव नहीं। जब तक वह कश्मीर में हिंसा पैदा करके उसे भारत से अलग करने की अपनी खतरनाक सोच से बाहर नहीं आता उसके रवैये में परिवर्तन मुश्किल है। महबूबा यह बात अच्छी तरह जानती हैं। बावजूद इसके यदि वह इस तरह दोनों देशों को एक ही पलड़े में रखकर अपील कर रही हैं तो फिर उनके पूछना ही होगा कि आपका इरादा क्या है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

यह भी पढ़ें: Analysis: कचरा प्रबंधन में क्यों पिछड़ रहीं सरकारें आजकल, नहीं हैं जागरूक