style="text-align: justify;">नई दिल्ली, [आशा त्रिपाठी]। इक्कसवीं सदी जवान हो गई है। हम सदी के 18वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। इसका मतलब यह नहीं कि समाज में ‘सिहरन’ पैदा करने वाले ‘गैंग रेप’ की घटनाओं में बेतहासा बढ़ोतरी कर जवान होने का ‘जश्न’ मनाया जाए। पता नहीं ‘गैंग रेप’ शब्द सुनकर लोगों के मन-मस्तिष्क पर कैसा चित्र उभरता होगा, पर लगातार हो रही इस तरह की घटनाएं ‘सिहरन’ तो पैदा करती ही हैं। 1आखिर इस तरह के कुकृत्यों को रोकने के लिए किस तरह के ‘जादू-मंतर’ का सहारा लिया जाए। ‘जादू-मंतर’ का सहारा लेने की बात इसलिए कह रही हूं कि राज्यों की सरकारें व पुलिस महकमा ‘गैंग रेप’ रोकने में नाकाम साबित हो रहा है।
उत्तर प्रदेश में बीते वर्ष नई योगी सरकार के गठन के बाद एक ‘एंटी रोमियो स्क्वायड’ बना था। उम्मीद जगी थी कि शायद यह प्रयोग सफल रहा तो देश के अन्य राज्य भी इस फामरूले को अपने यहां आजमाएंगे, लेकिन अफसोस कि यह यूपी में ही फेल हो गया। अब कहीं इसकी चर्चा तक सुनने को नहीं मिलती। हां, ‘गैंग रेप’ को सुर्खियां बनते-सुनते जरूर देखा जा रहा है। मैं चर्चा कर रही हूं हरियाणा की। बेशक, हरियाणा में कानून-व्यवस्था की हालत बेहद चिंताजनक हो चुकी है। एक तरफ तो केंद्र व राज्य सरकारें ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा दे रही है, वहीं दूसरी तरफ न बेटी बच रही है, न पढ़ रही है, गैंग रेप का शिकार होकर काल का ग्रास बन रही है। आप खुद आकलन कीजिए कि यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक प्रति एक लाख आबादी पर गैंग रेप के मामले में हरियाणा सबसे आगे है। राज्य की एक लाख महिला आबादी पर 2016 में गैंगरेप की दर 1.5 फीसद थी। 2016 में हरियाणा में गैंग रेप के 191 मामले दर्ज कराए गए। हालांकि पिछले साल 2017 से यह कम है। इन सबके बावजूद गैंग रेप के मामले में हरियाणा देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा शीर्ष पर है।
यदि कहें कि हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार राज्य की कानून व्यवस्था संभालने में बुरी तरह से नाकाम है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हाल ही में डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम पकड़े गए तो दर्जनों की जान चली गई थी। राज्य की मौजूदा दशा बेहद डरावनी हो चली है। पिछले करीब एक पखवाड़े में हरियाणा में सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटनाओं से साफ है कि राज्य में राजकाज का क्या आलम है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि दिनदहाड़े कॉलेज छात्र को अगवा कर लेते हैं और फिर बलात्कार कर फेंक जाते हैं। दूसरी ओर गैंग रेप जैसी घटनाओं को रोक पाने में नाकाम हरियाणा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आरसी मिश्र का यह गैरजिम्मेदाराना बयान सामने आता है कि बलात्कार की घटनाएं समाज का हिस्सा हैं और अनंत काल से चली आ रही हैं।
जाहिर है, राज्य पुलिस की दशा और मानसिकता क्या है। एक पखवाड़े के अंतराल में वहां दस दिन में बलात्कार की आठ और चार दिन के भीतर छह वारदातें किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक हैं, लेकिन राज्य की पुलिस यह जताने की कोशिश कर रही है, मानो सब कुछ सामान्य है। हरियाणा में बलात्कार-हत्या जैसी घटनाओं का ताजा सिलसिला 13 जनवरी को शुरू हुआ जब जींद में नहर के पास पंद्रह साल की एक लड़की की लाश मिली थी। इस लड़की के साथ हुई दरिंदगी ने लोगों को दिल्ली के निर्भया कांड की याद दिला दी। इतना ही नहीं, इस मामले के एक नामजद आरोपी की भी हत्या हो गई। पूरी घटना से लगता है कि शायद इसके तार कहीं और हों और पूरे मामले को छिपाने-सबूत मिटाने का खेल चल रहा हो।
हद तो तब हो गई जब इस घटना के बाद नाबालिग बच्ची से लेकर शादीशुदा महिला तक के सामूहिक बलात्कार की घटनाएं सामने आईं। इसी क्रम में पिछले दिनों हरियाणवी लोकगायिका ममता शर्मा की लाश मिली। चार दिन से लापता ममता शर्मा की गला रेत कर हत्या कर लाश गन्ने के खेत में फेंक दी गई थी। लाश रोहतक जिले के जिस बनियानी गांव में मिली वह मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का गांव है।
अब इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि अपराधी कितने बेखौफ हो चुके हैं। सवाल है कि सरकार आखिर कर क्या रही है। राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख बीएस संधू को बुला कर हालात पर चर्चा की। पुलिस प्रमुख ने बताया कि पंद्रह साल तक की लड़कियों से बलात्कार के मामले में त्वरित अदालतें बनाने और सजा के कड़े प्रावधानों पर विचार किया जा रहा है। सरकार दुष्कर्म के ऐसे मामलों में फांसी की सजा के प्रावधान की सिफारिश कर सकती है जैसा कि मध्य प्रदेश सरकार ने कदम उठाया है। हरियाणा में महिलाओं का खौफ में जीना कोई नई बात नहीं है। चाहे खापों के अमानवीय फैसले हों, डेरों के कारनामे हों या फिर आपराधिक वारदातें, सबसे ज्यादा शिकार स्त्रियां ही हुई हैं। मगर राज्य सरकार का रवैया अपने कर्तव्य के प्रति सचेत रहने के बजाय उदासीनता का ही रहा है।
राजनीतिक पार्टियां वोट का ख्याल कर न अमानवीय पंचायती फैसलों के खिलाफ बोलती हैं न संदिग्ध बाबाओं के खिलाफ। जिनकी पहुंच सत्ता के गलियारे तक है, ऐसे भी कई लोग अपने को कानून से ऊपर समझने से बाज नहीं आते। पिछले साल अगस्त में हरियाणा भाजपा अध्यक्ष के बेटे ने राज्य के एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी की बेटी के साथ छेड़छाड़ की थी। सवाल है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली सरकार आखिर बेटियों की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है? समाज में यह क्या हो रहा है। बलात्कार की घटनाओं के बाद हरियाणा राज्य में कई जगह प्रदर्शन भी हुए। विपक्ष ने अपराध रोकने की क्षमता पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे तक की मांग की। साढ़े तीन वर्ष के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो अपराध में भी भारी वृद्धि हुई है।

(लेखिका उत्तर प्रदेश सरकार में राजपत्रित अधिकारी हैं)
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