[ ब्रह्मा चेलानी ]: पूरी दुनिया इस प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा कर रही है कि आखिर वुहान में पैदा हुए वायरस ने कैसे पूरी दुनिया में तबाही मचा दी? इससे जान-माल का जो नुकसान जारी है उसकी थाह लेना मुश्किल है। ऐसे में इस वायरस को लेकर स्वतंत्र जांच अपरिहार्य हो गई है, लेकिन चीन उससे कन्नी काटता दिख रहा है। उलटे वह इस मामले में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए दबाव डाल रहे देशों को हड़का रहा है। जापान के साथ सेनकाकू द्वीप में झड़प और ऑस्ट्रेलिया पर बीफ प्रतिबंध और टैरिफ की झिड़की इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। असल में कोविड-19 की पूरी कुंडली जानना अत्यंत आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसी किसी आपदा से निपटने की बेहतर तैयारी की जा सके।

इससे पहले 2002-03 में चीन से फैली महामारी ने दुनिया को गर्त में झोंक दिया था

आखिरकार यह पहली बार नहीं जब चीन से ऐसी कोई महामारी फैली हो। 2002-03 में सार्स पर पर्दा डालने की उसकी कवायद ने दुनिया को 21वीं सदी की पहली महामारी की गर्त में झोंक दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति दो-टूक कर रहे हैं कि अगर यह कोई भूल थी तो भूल मानी जाएगी, लेकिन यदि चीन ने जानबूझकर इसे अंजाम दिया तो इसके गंभीर परिणाम भी भुगतने होंगे। इसके बावजूद बीजिंग बुनियादी सवालों के जवाब देने से पल्ला झाड़ रहा है।

चीन ने विदेशियों की आवाजाही जारी रखकर बीमारी के अंतरराष्ट्रीय प्रसार को दिया बढ़ावा

चीन ने 23 जनवरी को वुहान से घरेलू उड़ानों पर तो प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन चार्टर फ्लाइट्स सहित कुछ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के संचालन की अनुमति जारी रखी थी। मार्च के अंत तक दूसरे चीनी शहरों में विदेशियों की आवाजाही जारी रखकर उसने इस बीमारी के अंतरराष्ट्रीय प्रसार को ही बढ़ावा दिया। उसने वुहान में लॉकडाउन लगाने में भी इतनी देरी कर दी कि तब तक पचास लाख लोग शहर से निकल चुके थे। इसे सीधे अर्थों में समझें तो वुहान के संक्रमित लोगों ने इस महामारी के बीज दुनिया के तमाम देशों में बो दिए।

जानलेवा कोरोना वायरस संभवत वुहान की प्रयोगशाला में जन्मा है

जब तमाम चीनी शोध पत्र बैट कोरोना वायरसों पर चल रहे खतरनाक काम को रेखांकित कर रहे थे तब चीन ने उनके लिए पुनरीक्षण की एक नई अनिवार्य नीति बना दी। ऐसे ही एक शोध का निष्कर्ष था कि जानलेवा कोरोना वायरस संभवत वुहान की प्रयोगशाला में जन्मा है। शंघाई की एक प्रयोगशाला ने 12 जनवरी को कोरोना वायरस का जीनोम यह कहते हुए प्रकाशित किया कि इससे पूरी दुनिया के लिए इस बीमारी की पड़ताल का रास्ता खुलेगा। अगले ही दिन चीनी प्रशासन ने उस पर ताला जड़वा दिया। तब तक चीन ने लाइव वायरस को लेकर शेष विश्व के साथ कोई महत्वपूर्ण जानकारी साझा नहीं की थी। इसी कारण अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा कि इस बीमारी के उद्गम का पता लगाना असंभव है।

पोंपियो ने कहा- तमाम साक्ष्य इसकी पुष्टि करते हैं कि कोरोना वायरस वुहान प्रयोगशाला की देन है

चीन ने उन स्थानों तक किसी विदेशी विशेषज्ञ को फटकने तक नहीं दिया है जिनके बारे में आशंका जताई जा रही कि कोरोना वहीं से पनपा होगा। इनमें वह वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी भी शामिल है जहां चीन की कुख्यात ‘बैट वूमन’ शी झेंगली चमगादड़ों से स्वाभाविक कोरोना वायरसों के खतरनाक प्रयोगों में जुटी है। केक्सिन ग्लोबल न्यूज साइट के अनुसार ये खतरनाक प्रयोग चीन की बदनीयती को ही जाहिर करते हैं। चीन ने बाहरी दुनिया के साथ कोरोना वायरस के नमूने साझा करने के बजाय अपने लैब सैंपल्स को नष्ट करना मुनासिब समझा। अमेरिकी खुफिया विभाग ने पुष्टि की है कि वह इसकी जांच में जुटा है कि कोरोना वायरस कहीं वुहान प्रयोगशाला में किसी दुर्घटना का परिणाम तो नहीं? पोंपियो का कहना है कि पहले से ही ऐसे तमाम साक्ष्य हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं कि यह वायरस वुहान प्रयोगशाला की देन है।

चीन वुहान की घटना को लीपापोती में जुटा है

चीन प्रारंभ में जब संक्रमण के प्रसार के खतरे को खारिज कर रहा था तब वह मास्क से लेकर स्वास्थ्य सुरक्षा उपकरणों के आक्रामक आयात में भी जुटा था। अमेरिकी गृह विभाग की एक मई की खुफिया रिपोर्ट के अनुसार इस आपदा में भी चीन जमाखोरी में लगा रहा। जब तक इस बीमारी ने यूरोप में भीषण कहर बरपाया तब तक चीन प्रोटेक्टिव गियर का अधिकांश वैश्विक भंडार अपने यहां भर चुका था। जनवरी के अंतिम सप्ताह में ही उसने 5.6 करोड़ रेस्पिरेटर्स और मास्क खरीद डाले। वुहान में जो हुआ, चीन उसकी लीपापोती में जुटा है। इसके खिलाफ आवाज उठाने वालों के घरों पर दबिश दी जा रही है।

चीन कह रहा कि दुनिया उस पर अंगुली उठाने से बाज आए

जरा सोचिए कि अगर चीन ने कोई गड़बड़ न की होती तो क्या वह स्वतंत्र जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय मांग का समर्थन कर उसमें सहयोग की पेशकश नहीं करता? इसके बजाय वह यह कह रहा कि दुनिया उस पर अंगुली उठाने से बाज आए।

घुड़कियों वाली चीन की मिश्रित रणनीति उसके खिलाफ अविश्वास एवं असंतोष को बढ़ाएगा

जी-7 के देशों के अलावा भारत और तमाम मुल्क डब्ल्यूएचओ में सुधार के लिए आवाज उठा रहे हैं। ऐसे में चीन द्वारा इस एजेंसी को तीन करोड़ डॉलर की अतिरिक्त मदद इन आवाजों की राह भटकाने की कोशिश ही अधिक है। अंतरराष्ट्रीय नियम यही कहते हैं कि ऐसी किसी बीमारी जिसमें वैश्विक महामारी बनने की आशंका हो, उसका 24 घंटे में आकलन कर जानकारी डब्ल्यूएचओ को दी जाए। इसमें चीन की लगातार नाकामी इस वैश्विक संस्था में ऐसे निरीक्षकों को शामिल करने की जरूरत जता रही है जो जांच के लिए किसी भी देश जा सकें। पैसों के दम पर चीन न तो इस वैश्विक आपदा का ठीकरा किसी और पर फोड़ सकता है और न ही इससे उसके खिलाफ आक्रोश शांत होने वाला है। वित्तीय अंशदान और घुड़कियों वाली उसकी मिश्रित रणनीति उसके खिलाफ अविश्वास एवं असंतोष को ही बढ़ाएगी।

चीन के वर्चस्व को तोड़ने की जरूरत

कोविड-19 ने दुनिया को इस कड़वे सच से रूबरू कराने का काम किया है कि प्रमुख वस्तुओं के मामले में चीन के वर्चस्व को तोड़ने की जरूरत है। इसके लिए चीन छोड़ने वाली कंपनियों को राहत-रियायत देने से भी गुरेज न किया जाए। यदि ऐसा न किया गया तो जोखिम बढ़ता जाएगा।

चीनी साम्राज्यवाद की काट के लिए यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी में नए नियम बनाए जा रहे हैं

चीनी साम्राज्यवाद की काट के लिए यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्पेन और इटली में नए नियम बनाए जा रहे हैं। इस मामले में चीनी निवेश की राह कठिन बनाकर भारत ने अपने किस्म की अनूठी पहल की है। जापान ने भी चीन से पलायन करने वाली अपनी कंपनियों के लिए 2.2 अरब डॉलर का कोष बनाया है।

दुनिया को प्रश्नों के उत्तर स्वतंत्र जांच से ही मिल सकते हैं

दुनिया को जिन प्रश्नों के उत्तर चाहिए वे स्वतंत्र जांच से ही मिल सकते हैं। अगर चीन इससे इन्कार करता है तो तमाम तरीकों से उसका वैश्विक बहिष्कार किया जाना चाहिए।

( लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं )