नई दिल्ली [ बलबीर पुंज ]। यदि शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार न हो तब सीमित संसाधनों में भी देश का विकास किया जा सकता है। बीती एक फरवरी को लोकसभा में प्रस्तुत वर्ष 2018-19 का बजट उसकी बानगी है और इससे चार संदेश स्पष्ट हैं। पहला- संप्रग शासनकाल में नीतिगत पक्षाघात की शिकार हुई अर्थव्यवस्था अब रफ्तार पकड़ चुकी है। दूसरा-नेतृत्व आत्मविश्वास से लबरेज है और देशहित में बड़े निर्णय लेने का साहस कर रहा है। तीसरा-दो बड़े आर्थिक निर्णय-जीएसटी और नोटबंदी के परिणाम आने लगे हैं और चौथा-सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे को वास्तविक रूप देने का गंभीर प्रयास कर रही है। बजट में सरकार ने जो घोषणाएं की हैं उससे स्पष्ट है कि वह बड़े फैसले लेने से हिचकिचाती नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब यह सरकार अस्तित्व में आई, तब गत 10 वर्षों के कार्यकाल में भ्रष्टाचार की अथाह चर्चा और कुछ खास फैसलों के कारण जनता का व्यवस्था से विश्वास उठ चुका था।

मोदी सरकार को पंगु शासन व्यवस्था के साथ भारी राजकोषीय संकट विरासत में मिला

मोदी सरकार को पंगु शासन व्यवस्था के साथ भारी राजकोषीय संकट विरासत में मिला। उनसे उबरने में कई महीने लग गए। फिर प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी जैसा ऐतिहासिक कदम उठाकर साहसिक राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया। उसके कुछ माह पश्चात सरकार जीएसटी लेकर आई। यह जानते हुए कि कड़वी दवा रूपी इन फैसलों से जनता को तात्कालिक परेशानी होगी और विपक्षी दलों को सरकार पर हमला करने का अवसर मिलेगा जो व्यापक स्तर पर हुआ भी, फिर भी सरकार ने देशहित को ही वरीयता दी।

जीएसटी और नोटबंदी के बाद अप्रत्यक्ष कर संग्रह 50 प्रतिशत और प्रत्यक्ष कर संग्रह 19 प्रतिशत बढ़ा

यह दो बड़े आर्थिक सुधारों का सकारात्मक असर ही कहा जाएगा कि अप्रत्यक्ष कर संग्रह में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। चालू वित्त वर्ष में 15 जनवरी, 2018 तक प्रत्यक्ष कर संग्रह लगभग 19 प्रतिशत बढ़ा है। 2016-17 में 85 लाख नए करदाता (अग्रिम कर और टीडीएस सहित) कर प्रणाली से जुड़े हैं। कर संग्र्रह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर व्यापक प्रभाव डालता है। जीडीपी में बढ़ोतरी के लिए निजी कर संग्रह बढ़ने का अनुपात वर्ष 2009-10 से लेकर 2014-15 तक औसतन 1.1 रहा था जो वर्ष 2016-17 में 1.91 से बढ़कर 2017-18 में 15 जनवरी 2018 तक 2.11 पहुंच गया।

दो वर्ष में सरकार को अतिरिक्त राजस्व के रूप में 90 हजार करोड़ प्राप्त हुए

पिछले दो वर्ष में सरकार को अतिरिक्त राजस्व के रूप में 90 हजार करोड़ भी प्राप्त हुए। संगठित क्षेत्र में जीएसटी के अंतर्गत स्वैच्छिक पंजीकरण और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में नवीन प्रवेश के संयुक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि गत वर्षों में 12.5 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। अब तक मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यमियों को वित्तीय सहायता हेतु ठोस नीति का अभाव था। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के पश्चात इन क्षेत्रों का आकार बढ़ा। इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2015 से शुरू हुई मुद्रा योजना के अंतर्गत 4.6 लाख करोड़ रुपये का ऋण भी दिया गया और आगामी वित्त वर्ष 2018-19 में इसके तहत तीन लाख करोड़ रुपये के ऋण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसका अर्थ है कि रोजगार के और अधिक अवसर पैदा होंगे।

नोटबंदी और जीएसटी ने देश की आर्थिकी को चिरंजीवी बनाने का काम किया

मई 2014 से पहले विनिर्माण क्षेत्र रसातल में पहुंच गया था। उसमें भी अब सुधार हो रहा है। सेवा क्षेत्र का दायरा बढ़ रहा है। निर्यात क्षेत्र पुन: विकास की पटरी पर है। गत साढ़े तीन वर्षों में अनेक ढांचागत सुधारों और दो बड़ी आर्थिक क्रांतियों के कारण आर्थिक विकास दर और अन्य क्षेत्र में व्यापक सुधार स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हैं। इसी पृष्ठभूमि में जहां अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2018 में भारत की वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत और 2019 में 7.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, वहीं कारोबारी सुगमता में भी भारत ने ऊंची छलांग लगाई है। क्या यह सब तत्काल हुआ? इस मंथन में नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधार वे अमृत है जिन्होंने देश की आर्थिकी को चिरंजीवी बनाने का काम किया है। कोई भी नई व्यवस्था एकदम से प्रतिपादित नहीं होती। इन दोनों व्यवस्थाओं में आम नागरिकों को परेशानियों का सामना इसलिए करना पड़ा, क्योंकि वह अपने परिवर्तनकाल में कई संशोधनों से गुजरा। किंतु अब सुखद परिणाम सार्वजनिक हैं।

देश में शासक तो बदले, किंतु व्यवस्था नहीं

स्वतंत्रता के बाद कालांतर में शासक तो बदले, किंतु व्यवस्था नहीं। प्रारंभ में आयातित समाजवादी सोच पर नीतियां और सिद्धांत बने जिसमें मौलिक चिंतन का नितांत अभाव रहा। यहां तक कि औपनिवेशिक काल की विरासत में शाम पांच बजे बजट पेश करने की परंपरा भी वर्ष 2000 में जाकर खत्म हुई। इसी प्रथा को मोदी सरकार ने भी आगे बढ़ाया, जब वर्ष 2017 में उसने 92 वर्ष पुरानी रेल बजट की परिपाटी को खत्म कर उसका आम बजट में ही विलय कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों का सपना देखा, तब विपक्षी दलों और कई चिंतकों ने भारत को निर्धन देश बताकर इसे खारिज करने का प्रयास किया। बहरहाल उन आशंकाओं को धता बताकर आज देश के अधिकतर शहर चौड़ी लेन वाले उन्हीं राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ गए हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना में 10 करोड़ गरीब परिवारों को शामिल किया गया

इसी तरह विश्वस्तरीय आधुनिक चिकित्सीय सेवा भारत के बड़े वर्ग के लिए आज भी स्वप्न सरीखी है जिसे पूरा करने का साहस प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है। इसके तहत 10 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को दायरे में लाने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना प्रारंभ होगी। यह विश्व की सबसे बड़ी सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य योजना है जिसमें प्रति परिवार को पांच लाख रुपये वार्षिक तक का कवरेज दिया जाएगा। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी के अलावा कृषि क्षेत्र के लिए संस्थागत ऋण को बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपये कर दिया है।

योजनाओं के अमल में आने से भारत की नई आर्थिक तस्वीर अवतरित होगी

आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश की लगभग आधी आबादी कृषि संबंधित रोजगारों पर आश्रित है। अधिकतर किसानों के पास खेती के लिए दो हेक्टेयर या उससे कम भूमि है। यानी देश में खेती की जमीन तो सीमित है, लेकिन किसानों और उसके आश्रितों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। यदि किसानों को संकट से बाहर निकालना है तो गांवों में शिक्षा का स्तर सुधारना होगा। किसानों को अन्य क्षेत्रों के रोजगारों से जोड़ने की दिशा में कौशल विकास का प्रशिक्षण देना होगा। आधारभूत ढांचा विकसित करना होगा। इस दिशा में केंद्र सरकार की कई प्रभावी योजनाएं पहले से लागू भी हैं। बजट कई महत्वाकांक्षी योजनाओं से भरा है जिनके अमल में आने से आगामी वर्षों में भारत की नई आर्थिक तस्वीर अवतरित होगी। ये परियोजनाएं राज्यों के सहयोग से पूरी होंगी, किंतु सफलता सरकारी अधिकारियों पर टिकी है जिनका एक बड़ा भाग वर्षों से अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार का पोषक बना हुआ है।

[ लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य और स्तंभकार हैं ]