नई दिल्ली [डॉ. वेंकटेश दत्ता]। पिछले एक महीने में दुनिया भर में काफी कुछ बदल गया है। हवा साफ हो गई है। वाहनों के आवागमन का शोर गायब हो गया है। गंगा और यमुना जैसी नदियां अधिक स्वच्छ पानी के साथ बह रही हैं। हम पक्षियों की कई किस्मों को देख रहे हैं और आसमान में पक्षियों को गाते सुन सकते हैं। हम घर का बना खाना खा रहे हैं। मॉल और सिनेमा हॉल हमारे मानसिक पटल से अचानक गायब हो गए हैं। हमारी खरीदारी की सूची से कई महत्वहीन चीजें लुप्त हो गई हैं। हम जीने के मौलिक और स्थायी समझ

को याद कर रहे हैं।

हालांकि पृथ्वी और पर्यावरण में यह सुखद परिवर्तन कोरोना वायरस के कारण दुनियाभर में लागू हुए लॉकडाउन की वजह से दिखाई दे रहा है। जाहिर है कोरोना भले अपने साथ भयानक बीमारी की लहर लेकर आया है, लेकिन इसमें जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक भी छुपे हैं। दरअसल विकास की अंधी दौड़ में हम पारिस्थितिकी तंत्र को ‘समस्याओं के  रूप में देखने लगे थे। हमने पारिस्थितिकी तंत्र को कभी अपनी समस्याओं के समाधान के रूप में नहीं देखा। हम यह भूल गए थे कि स्वच्छ पानी और उपजाऊ मिट्टी हमारे विषाक्त मुक्त भोजन के लिए आवश्यक हैं।

एक गिलास पीने के साफ पानी के लिए हमारे भूजल और नदियों को साफ होना जरूरी है। इसके चलते जैसे-जैसे दुनिया की आबादी 10 अरब की ओर बढ़ रही है, जलवायु परिवर्तन मौसम के पैटर्न को अप्रत्याशित बना रहा है। ऐसे में सतत विकास सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है। चिंता की बात है कि कई उद्योगों और सरकारों ने पर्यावरण को विकास अवरोधक के रूप में देखा है। आज सतत विकास को गति देने और कोरोना जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। हम प्रकृति केसाथ कैसा व्यवहार करते हैं, यह हमारे जीवन को प्रभावित करता है।

प्राकृतिक आवास और जैव विविधता का नुकसान कोविड-19 जैसी घातक बीमारियों के पनपने के लिए स्थितियां बनाता है। यदि हम अन्य जीवों और उनके आवास के अधिकारों का सम्मान नहीं करेंगे तो कोविड-19 जैसी महामारी बार-बार आएगी। यह भी स्पष्ट है कि जंगली जानवरों के नए रोगजनकों से हमारी प्राकृतिक प्रतिरक्षा सुरक्षा को चुनौती मिलती रहेगी। प्राकृतिक दुनिया के साथ अनैतिक मानवीय व्यवहार महामारी के जोखिम को बहुत बढ़ा रहा है।

वायरस से होने वाले अधिकांश रोग जंगली जीवों से आते हैं। ऐसे में हमें जंगली जानवरों से वायरस आदान-प्रदान की सबसे कमजोर कड़ी को खत्म करने के लिए पूरी वन्यजीव खाद्य शृंखला को फिर से देखना होगा। और अगर हम अपनी भूमि को नष्ट करना जारी रखते हैं तो आने वाले दिनों में हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को भी नष्ट कर देंगे और कृषि प्रणालियों को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाएंगे। 15 वर्षों में, 1990 और 2016 के बीच, दुनिया ने लगभग 1.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर जंगलों को खो दिया है, इसका सबसे बड़ा भाग उष्णकटिबंधीय वर्षावन है, जो दक्षिण अफ्रीका से बड़ा क्षेत्र है।

जंगलों के साथ-साथ, हमने वन्यजीवों के लिए सबसे मूल्यवान और अपूरणीय निवास स्थान भी खो दिया है।

आज कई जंगली जानवर विलुप्त होने के कगार पर हैं और कई मानव-वन्यजीव संघर्षों की बढ़ती घटनाओं के साथ मानव बस्ती में आ रहे हैं। जाहिर है सतत विकास के लिए नए और बेहतर तरीके खोजने का यह सही वक्त है। इसके लिए आने वाले दिनों में हमें विकास के नए संकेतकों को परिभाषित करना पड़ सकता है जो हमारे नैतिक और आंतरिक संतुष्टि, स्वास्थ्य, सुरक्षा और सतत संसाधन विकास प्रणाली पर आधारित हों।

हमें समझना होगा कि जीवाश्म ईंधन की अत्यधिक खपत, वनों की कटाई, जैव विविधता में कमी तथा सुविधा और उपभोग के लिए प्रकृति का विनाश जलवायु परिवर्तन की दर को बढ़ा रहे हैं। जिस दर से हम ग्रीनहाउस गैसों को बढ़ा रहे हैं, उससे धरती के तापमान में वृद्धि निश्चित है। इसे रोकने के लिए हमें विकास का एक ऐसा मॉडल विकसित करना होगा जो प्राकृतिक दुनिया को कम से कम नुकसान पहुंचाता हो।

इसके तहत सम्मेलनों, कार्यशालाओं और बैठकों को डिजिटल प्लेटफार्मों के जरिये किया जा सकता है। कुछ यात्राओं से बचा जा सकता है। अनावश्यक चीजों को हम जरूरत की अपनी सूची से बाहर कर सकते हैं। साथ ही कम कार्बन जीवनशैली को अपना सकते हैं। हमें विशेष रूप से कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा स्रोतों का विकास करना होगा। 

लगभग 40 प्रतिशत वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हमारे घरों और इमारतों से होता है। हम नेट शून्य उत्सर्जन मानकों की ओर जाने के बारे में सोच सकते हैं। इसी तरह का समर्पण हमारी ऊर्जा खपत को बदल सकता है। हम सभी इस बदलाव में योगदान कर सकते हैं और वास्तविक बदलाव ला सकते हैं। हम एक साथ सामूहिक सोच और ज्ञान-साझाकरण के साथ इस संकट को समाप्त कर सकते हैं और एक बेहतर, अधिक टिकाऊ दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।

इस तरह हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोरोना वायरस या अन्य महामारियों के प्रकोपों को जल्दी से पहचाना और रोका जा सके। 2020 को एक ऐसे समय के रूप में याद किया जाएगा जब मानवता एक महामारी से उबर रही थी, लेकिन इस वर्ष को एक ऐसे समय के रूप में भी याद किया जाएगा जब हम सभी अचानक यह सोचने के लिए मजबूर हो गए थे कि हम प्रकृति के साथ क्या कर रहे हैं और क्या समावेशी

विकास हमें भविष्य के लिए ताकत देगा। (नदी और पर्यावरण वैज्ञानिक)